झंडे के धंधे पर चुनाव आयोग का डंडा

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एक ओर टिकट बंटवारे से नाराज विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता और कार्यकता पटना स्थित तमाम पार्टियों के कार्यालयों में लगातार मारा-मारी मचाये हुये हैं, तो दूसरी ओर डंडा और झंडा समेत तरह-तरह के चुनाव सामग्री बेचने वाले व्यवसायी बिक्री न होने के कारण चुनाव आयोग के आचार संहिता को कोस रहे हैं। इन व्यवसायियों का तो यहां तक कहना है कि बिहार चुनाव आयोग को आचार संहिता को लागू करने का सहूर नहीं है, जिसके कारण डंडा और झंडा का यह धंधा चौपट होता जा रहा है। यदि चुनाव आयोग सही तरीके से आचार संहिता को लागू करता तो अभी बिहार में चुनाव सामग्री से करोड़ों रुपये का धंधा होता, जिसका सकारात्मक असर राजस्व पर भी पड़ता।

वीरचंद पटेल स्थित राष्ट्रीय जनता दल के कार्यालय में चुनाव सामग्री की दुकान लगाने वाले सत्येंद्र नारायण सिंह सवाल उठाते हुये कहते हैं कि चुनाव आचार संहिता में किस जगह पर यह बात लिखी हुई है कि हम अपनी गाड़ी में डंडा और झंडा लगाकर नहीं घूम सकते हैं? हम व्यवसायी हैं और अपना माल बेचने के लिए उन्हें दिखाना जरूरी है। ऐसी स्थिति में आचार संहिता के नाम पर हमें अपनी गाड़ी में झंडा लगाकर घूमने से रोकना कतई उचित नहीं है। इससे धंधे को नुकसान हो रहा है। वह आगे कहते हैं कि हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि अपने घर पर अपने मनपसंद राजनीतिक पार्टी का झंडा लहरा सके। लेकिन बिहार चुनाव आयोग हमें ऐसा भी नहीं करने दे रहा है। जब तक घर पर झंडा लहराएंगे नहीं तब तक यह कैसे पता चलेगा कि हमलोग यहां से झंडे की बिक्री कर रहे हैं। झंडा व्यवसाय को आचार संहिता से कोई लेना देना नहीं है। इसे शुद्ध रुप से एक धंधा के रूप में देखा जाना चाहिये। मैं कोई अकेले झंडे नहीं बना रहा हूं। हजारों लोग इस धंधे से जुड़े हुये हैं। कई परिवार का पेट पल रहा है। ऐसे में इस धंधे पर आचार संहिता की कैंची चलाना किसी भी नजरिये से उचित नहीं है। अधिक से अधिक माल तैयार करने के लिए हमलोगों ने बैंक से कर्ज ले रखा है। बिहार में चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन कर रहा है। देश के किसी भी कोने में किसी भी व्यक्ति को अपने घर पर पसंदीदा पार्टी का झंडा लहराने से नहीं रोका जा सकता है। एक सप्ताह के अंदर इसका निदान नहीं हुआ तो हम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। आप नेताओं के फोटो पर प्रतिबंध लगा सकते हैं, लेकिन चुनाव चिन्ह या अन्य संकेतों पर रोक लगाना सरासर गलत है।

सत्येंद्र नारायण सिंह आगे कहते हैं कि कुछ समय पहले बिहार विधान सभा में एक विधेयक पारित हुया था, जिसे लेकर हम सब काफी उत्साहित थे। इससे धंधा को बढ़ाने में मदद मिलती। लेकिन बिहार चुनाव आयोग उस विधेयक की भी अनदेखी कर रहा है। मामला चाहे जो हो सत्येंद्र नारायण सिंह का कहना है कि बिहार चुनाव आयोग पूरी तरह से इस धंधे को चौपट करने पर तुला हुआ है। यह बिहार चुनाव आयोग के अधिकारियों की मनमानी है।

वीरचंद पटेल मार्ग पर ही स्थित चुनाव प्रचार घर में तमाम पार्टियों से संबंधित चुनाव सामग्री उपलब्ध हैं, लेकिन वहां पर भी कोई खरीददार नहीं आ रहा है। चुनाव प्रचार घर के संचालक रमेश गुप्ता बताते हैं कि चुनाव सामग्री बेचने का उनका पुराना धंधा है। देश में जहां कहीं भी चुनाव होता है वह अपनी तमाम सामग्री लेकर पहुंच जाते हैं और चुनाव खत्म होने के बाद डेरा डंडा उठाकर चल देते हैं। बिहार में अभी तक बिक्री शुरु भी नहीं हुई है और पता नहीं कि आगे होगी या नहीं। उनके पास बना-बनाया रेडीमेड माल होता है और राज्य विशेष में जरूरत के मुताबिक वह नये सामग्री का निर्माण करते हैं। रमेश गुप्ता इलाहाबाद के रहने वाले हैं और इस धंधे को चलाने के लिए इसमें काफी पूंजी लगा रखी है। चुनाव सामग्री तैयार करने के लिए देश के विभिन्न स्थानों पर कई स्तर पर काम होता है। कच्चा माल कहीं और से मंगाया जाता है और उन्हें तैयार कहीं और किया जाता है। इस काम में उनके साथ बहुत सारे लोग लगे हुये हैं। इनके पास भी लगभग सभी दलों के चुनाव सामग्री उपलब्ध है।

वीरचंद पटेल मार्ग स्थित ही भाजपा के कार्यालय के सामने अपना चुनावी माल बेच रहे दीपक कुमार के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ रही है। वह बताते हैं कि प्रत्येक दिन 25-30 हजार रुपये तक का माल वह बेच रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि चुनाव खत्म होने तक वह 10-15 लाख रुपये तक की बिक्री कर लेंगे। इसमें से 5-6 लाख रुपये तक का शुद्ध मुनाफा होगा। वह भाजपा के साथ-साथ जदयू की भी चुनाव सामग्री बेच रहे हैं। इस संदर्भ में पूछने पर वह कहते हैं कि जबतक गठबंधन है तब तक तो उन्हें दोनों पार्टियों का माल बेचना ही पड़ेगा।

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