—क्योंकि मुझे अमरत्व में यकीन है (कविता)

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सिगरेट की धुयें की तरह

तेरे दिल को टटोल कर

तेरे होठों से मैं बाहर निकलता हूं,

हवायें अपने इशारों से मुझे उड़ा ले जाती है।

 तुम देखती हो नीले आसमान की ओर

मैं देखता हूं तुम्हे आवारा ख्यालों में गुम होते हुये।

 तुम सिगरेट की टूटी को

जमीन पर फेंककर रौंदती हो,

और मैं बादलों में लिपटकर मु्स्कराता हूं।

 मुझे यकीन है, तमाम आवारगी के बाद

इन बादलों में बूंद बनकर फिर आऊँगा

और भींगने की चाहत

तुझे भी खींच लाएगी डेहरी के बाहर।

 हर बूंद तेरे रोम-रोम को छूते

हुये निकल जाएगी,

धरती पर पहुंचने के पहले ही

तेरी खुश्बू मेरी सांसों में ढल जाएगी

 मैं बार-बार आऊंगा, रूप बदलकर

——-क्योंकि मुझे अमरत्व में यकीन है।

3 COMMENTS

  1. अच्छी कविता है.
    वैसे आपने यह कविता लिख कर अमरत्व तो प्राप्त कर ही लिया है रचना संसार में .

  2. रवि जी, शुक्रिया…लेकिन इस कविता के लिए असली हकदार वो है जिसने मुझे इसे लिखने के लिए विवश कर दिया था।

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