हर भ्रष्ट को मारो जूते जी

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फिलहाल भारत में सिविल सोसाइटी की धूम मची हुई है। बहुत कुछ हो रहा है, बहुत कुछ होनवाला है। राजू मिश्रा लंबे समय से अपने खास अंदाज में देश-दुनिया के पियक्कड़ों को एक जुट करने में लगे हैं। अब उनका प्रयास रंग लाने लगा है। विश्व पियक्कड़ महासभा का गठन इसी दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। हर गली सड़ी चीजों पर बेबाक टिप्पणी पियक्कड़ों का खास अंदाज होता है। इसी का एक नमूना यहां देखिये, बातों बातों में कही गई विश्व पियक्कड़ महासभा के संयोजक राजू मिश्र की यह कविता।

हर भ्रष्ट को मारो जूते जी

जब अंतिम बूँद बची मदिरा
ये जर्जर जर्जर प्यास मिटे ना मिटे
हम दिल से दिल को प्यार करे
सीने से सीने सटे ना सटे …. ( केवल गले मिलने सी प्यार नहीं होता )…

.जियो धतूरा ..पियो धतूरा

हर भ्रष्ट को मारो जूते जी
कालिख से मुह फिर पूते जी

गधे पीठ  पर बिठलाकर

चाबुक से इनको सूते जी ………

जियो धतूरा ..पियो धतूरा …..

दारु बाज खुश हुए
जीत गए भाई अन्ना
पियक्कड़ सारे नाच रहे
लिए हाथ में गन्ना
दारु कहा मिलेगी
महफ़िल कहाँ जमेगी …………..जय अन्ना की

अन्ना जी की भूख से
मिट गया भ्रष्टाचार
बोतल सारी दारु की
हो गई महंगी यार
दारु कहा से लाये
कौन अब हमें पिलाए ………जय अन्ना की .

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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