इन्हें मर्यादा व गरिमा जैसे शब्दों से खुजली होने लगती है

अनिकेत प्रियदर्शी, पटना

एक के बाद एक सात गमलों का काम तमाम कर दिया ..ऐसी हुंकारे भर रही थी मानो साक्षात देवी काली प्रलय मचाने विधानमंडल में उतर गई हों । अचानक एक गमला श्वेत वस्त्र मे खडी महिला मार्शल को भी दे मारा । तीन महिला मार्शलों ने इसके बाद मिलकर जोर लगाया और पार्षद कुमारी ज्योति चारो खाने चित ! उसके बाद उनके दोनो हाथों को पकडकर महिला मार्शलों द्वारा घसीट- घसीट कर बाहर ले जाने की प्रक्रिया शुरू हुई । इस दौरान वो उसी मिट्टी मे घसीटी गई जिसे उन्होंने उस बेजुबान गमले से अलग कर दिया था । चश्मा आंखो की जगह अब मुंह पर आ लगा था और खींचातानी का दौर बदस्तूर जारी था। रौद्र रूप अख्तियार किये हुए ही बेहोश हो चुकी थी कुमारी ज्योति ।

 एक नया दिन और एक नहीं…कई नये हंगामे । अचानक दिखा एक और नजारा जब लगा कि चप्पल काटने से क्रुद्ध एक विधायक बाबू ने अपनी पादुका स्पीकर महोदय के तरफ उछाल देना उचित समझा । अब एक पैर में चप्पल और एक पैर खाली ! इन्हें जरा भी इस बात का आभास नहीं था कि ये चप्पल उन्होंने सदन के सबसे गरिमामयी आसन के तरफ उछाल दिया था । मगर शायद इस बात को ये जानकर भी क्या करेंगे । इन्हें मर्यादा और गरिमा जैसे शब्दों से खुजली जो होने लगती है । 67 विधायक सस्पेंड और 14 विधान पार्षद सस्पेंड । 

 एक विधायक जी हरे रंग के फटे हुए कुर्ते मे निकले ..बताया कि अंगूठा फट गया है और कुर्ता भी फाड़ दिया गया है । अभी चोट का इलाज भी नहीं करवाया है । फिर थोड़ी ही देर बाद एक चैनल के स्टूडियों में उसी फटे हुए कुर्ते मे पहुंच गये । वाह वाह…ये कैमरा भी बड़ी जुल्मी होती है .. क्या क्या नहीं करवाती । विधायक जी इस स्टूडियो में बोलते कम नजर आये…. देखते ज्यादा । उनकी आखों को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वो इस लोकतांत्रिक देश से अपने लिए असीम सहानुभूति का मौन अपील कर रहे हों । दे दो भाई दे दो…इन विधायक जी को आपकी सहानुभूति की बहुत अधिक आवश्यकता है ।

 उधर खबर आयी कि कांग्रेस की महिला पार्षद कुमारी ज्योति को पटना मेडिकल कांलेज अस्पताल मे भर्ती करवाया गया । खबर ये भी आयी कि उनकी हालत चिंता से बाहर है । भगवान का लाख लाख शुक्र है, तो चिंता अब उन लोगों को करनी है जिन्होंने उन्हें घसीटने का प्रयास किया था । लेकिन अब सवाल तो ये भी है एक महिला पार्षद का इस तरह से पूरे मीडिया की उपस्थिति में गमला चला चला कर आसपास खड़े लोगों को मारना क्या जायज था ? कहते है कि कोई भी कठिनाई क्यों न हो, अगर हम सचमुच शान्त रहें तो समाधान मिल जाएगा। तो फिर ये सब क्यूं ????????

जिस तरह से गुस्से में अपने आप को नुकसान पहुंचाने में कुमारी ज्योति लगी हुई थी उससे वो साबित क्या करना चाहती थी ? प्रगति के लिए संघर्ष करो। अनीति को रोकने के लिए संघर्ष करो और इसलिए भी संघर्ष करो कि संघर्ष के कारणों का अन्त हो सके। मगर संघर्ष के नाम पर इस तरह से अभद्रता पर उतर जाना क्या वाकई जरूरी था ?? अपने अभद्र कर्मों के लिए अंतरात्मा मनुष्य को धिक्कारती भी है तो हम ऐसा कार्य क्यूं करें जिसमें अपनी अंतरात्मा ही अपने को धिक्कारे ? ये जन प्रतिनिधि है ..तो अपने आचरण से ये किस जनता का प्रतिनिधित्व कर रही है ?

कल कांग्रेस के एक वरिष्ट नेता किसी न्यूज चैनल पर एक बड़ी अच्छी बात कह रहे थे कि इस तरह के वाकयात जब भी होते हैं तो आप गौर करेंगे इसमें कांग्रेस के लोगों का आचरण हमेशा से सम्मानित रहता है । और कांग्रेस की महिला पार्षद ने आज जो किया वो तो वाकई सम्मान की पराकाष्ठा हो गई । इस हमाम में सभी नंगे हैं , चाहे वो किसी भी पार्टी से क्यूं न हो…. अब कोई सम्मान से भरा आचरण इस राजनीति जैसे बदबूदार जगह पर करे भी तो कैसे ?? राजनीति के शब्दकोश मे सम्मान, मर्यादा, आचरण, निर्मल उद्देश्य, सदुद्देश्य, पुरुषार्थ, शुचिता, पवित्रता, सच्चरित्रता, समता, उदारता, शालीनता जैसे शब्दों के लिए कोई जगह अब नहीं बनता है । ये सत्य है..या कह ले शाश्वत सत्य है ।

मनुष्य परिस्थितियों का दास नहीं, वह उनका निर्माता, नियंत्रणकर्ता और स्वामी है। बीती रात से ही विधानमंडल मे जमे हुए विधायक सुबह सुबह दातून करते नजर आये । उनकी बात से तो ऐसा लग रहा था कि आज भी कुछ बहुत सही नहीं होने वाला है । और दिन के आगे बढ़ते ही ये आशंका सही सिद्ध हो गई । अर्थात ये तय था कि आज भी सदन कि ऐसी की तैसी होने वाली है । इन सारी परिस्थितियों का एक तरह से निर्माण करके सदन को ठप्प कर दिया गया । आसक्ति संकुचित वृत्ति है ये साफ साफ दिख रहा था । सच में इस संसार में अनेक विचार, अनेक आदर्श, अनेक प्रलोभन और अनेक भ्रम भरे पड़े हैं। ये सब देख तो ऐसा लग रहा था कि अब राजनीति कुछ विशेष तरह के इंसानो के लिए ही सार्थक है ।

जो घटना घटी उसे थोड़ी सी विवेकशीलता दिखाकर रोका जा सकता था और साथ ही उस मसले पर कोई सार्थक बात की जा सकती थी । कहते है कि विवेकशील व्यक्ति उचित अनुचित पर विचार करता है और अनुचित को किसी भी मूल्य पर स्वीकार नहीं करता। मगर इस तरह के आचरण को अपनाकर भी किसी अनुचित का सामना नहीं किया जा सकता है । राष्ट्र को समृद्ध और शक्तिशाली बनाने के लिए आदर्शवाद, नैतिकता, मानवता, परमार्थ, देश भक्ति एवं समाज निष्ठा की भावना की जागृति नितान्त आवश्यक है। क्या आज कि राजनीति में ये सब कहीं दिख रहा है ??

अंतत: मेरा प्रश्न इन सभी दलो के नेतृत्व से भी है क्यूंकि नेतृत्व का अर्थ तो वह वर्चस्व है जिसके सहारे परिचितों और अपरिचितों को अंकुश में रखा जा सके, तथा उन्हें अनुशासन में चलाया जा सके। कहां है अनुशासन ?? कहां है नेतृत्व ?? कहां है इंसान ?? कहां है वो नेता जो शिक्षित और सुयोग्य ही नहीं, प्रखर संकल्प वाला भी होता था, जो अपनी कथनी और करनी को एकरूप में रखने के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार रहता था ?? स्वतंत्रता दिवस बहुत करीब है पर हम स्वतंत्र क्यूं हुए ?? कितने बलिदान को हमने भुला दिया क्या इसका जरा सा भी अहसास है हमे ?? बिहार विधानसभा के सामने सात बलिदानियों की पाषाण प्रतिमाएं भी शायद आज अश्रुपूर्ण अवस्था मे रही होगी , और हो भी क्यूं न उन्हें अपने नौनिहालों द्वारा सात गमलो और तमाम ओछी हरकतों की श्रद्धांजलि जो मिली । इस निरंकुश स्वतंत्रता ने देश को कहां लाकर छोड़ दिया……………………….।

1 COMMENT

  1. Really a good work is going on.U guys r writing something new & interesting.
    Nice design.

    Best of luck!!!!

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