ईश्वर तुम्हें धिक्कार है! (कविता)

2
21

चंदन कुमार मिश्रा

निर्मल  हृदय की  प्रार्थना

निष्कपट मन की  भावना

कोई    नहीं   सम्भावना

फिर   भी तुम्हारी साधना

यह  कर  रहा  संसार है!

ईश्वर  तुम्हें  धिक्कार है!

ये  चीख कैसी आज सुन

तनिक   ये  आवाज सुन

ले  सुनाता,   राज  सुन

तेरा  ही  ये  व्यापार  है!

ईश्वर  तुम्हें  धिक्कार है!

कहीं  तंत्र है, कहीं मंत्र है

चमचा  तेरा   स्वतंत्र  है

क्या  खूब!  ये  षडयंत्र है

हर  जगह  अत्याचार  है!

ईश्वर  तुम्हें  धिक्कार  है!

है   एक   मेरी   चाहना

हो  अगर  मुझसे  सामना

एक  प्रश्न  मुझको  पूछना

क्या दिल में  तेरे प्यार है?

ईश्वर तुम्हें  धिक्कार  है!

2 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here