पल पल में अब बनेगा तेरा कल… (कविता)

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दीपशिखा शर्मा

कुछ जिंदगी के पल…

सपने बुनते – बुनते हमको कहते हैं कि चल

कुछ जिंदगी के पल…

कह गए मेहनत कर , बेहतर होगा तेरा कल।

कुछ जिंदगी के पल…

जिंदगी को बिखरा गए

आरंभ जहां से जिंदगी का था,

आज फिर वापस वहीं आ गए

आरंभ को अंत बना गए।

छीना इन पलों ने सबकुछ

पर जिंदगी को न छीन सका,

पल ने जिंदगी के पास आ कर कहा ,

अपने विश्वास से तू चल

अंत से नया आरंभ कर

पल पल में अब बनेगा तेरा कल…

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

5 COMMENTS

  1. hi deep

    mujhe lagta hai ki zindagi ke
    gujarte waqt ko aapne bahut sahi se read kiya hai

    KI

    aap apne har pal ko sahi bana lo

    behtar kal apne aap ban jayegi

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