मैं और मुसीबतें(कविता )

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(धर्मवीर कुमार,   बरौनी)

मुसीबतें आतीं रहेंगी, आना उनका काम है.

धैर्य का इम्तिहान लेंगी, लेना उनका काम है.

मुझको तो चलने से मतलब, चलना अपना काम है.

मुसीबतें आतीं रहेंगी, आना उनका काम है.

मझधार में लहरें उठाना गर उनकी आदतों में शुमार है.

मैं नाव किनारे पर लाऊंगा ही, मेरे हाथ भी पतवार है.

पथ पर रहना है अग्रसर बिना थके, बिना रुके.

आजमाने का गर निश्चय उनका, हम भी उनसे क्यूँ झुंके.

अवरोध बनकर रोकने का स्वभाव गर न वो छोर सके.

चलने का संकल्प लिया तो , हम भी आखिर क्यूँ रुकें

लगता है कोशिश है उनकी मंजिल मुझसे दूर रहे,

फिर भी चलने की आदत से हम सदा मजबूर रहें.

अक्सर मुझको समझाया है जाता, मुसीबत अकेले आती नहीं,

जिद्दी होती , आकर यह जल्दी फिर जाती नहीं .

मुझको तो ऐसा लगता है, मेरे चलते रहने की जिद से , यह खुद ही डर जाती है.

अकेले आखिर क्यूँ न आकर हमेशा एक साथ ही आती है.

खैर! उनको उनका काम मुबारक, मुझको तो चलते जाना है.

रोक सकें तो रोक लें मुझको, मुझको तो आगे जाना है.

पथ पर चाहे शूल रखें वो या निष्कंटक ही रहने दें,

ये सब बातें उनके जिम्मे, यह उनका अपना काम है.

मुझको तो चलने से मतलब, चलना अपना काम है.

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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