एक बार फ़िर आ जाओ (गीत)

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चंदन कुमार मिश्रा

बापू आपसे फ़िर आने का,

विनती करता शरणागत है।

एक बार फ़िर आ जाओ तुम,

आ पड़ी तेरी ज़रूरत है।

छुआछूत को तुमने बापू,

हमसे दूर हटाया था।

सत्य, अहिंसा और प्रेम का,

हमको पाठ पढ़ाया था।

हिंदी को ही तुमने बापू,

राष्ट्रभाषा स्वीकार किया।

थी जन के हृदय की भाषा,

तुमने देशोद्धार किया।

बापू आपसे फ़िर … … … …

दलितों को तुमने समाज में,

उच्च स्थान दिलाया था।

तुमने अपने उत्तम चरित्र से,

पूरा संसार हिलाया था।

ना जाने है कैसी हो गयी,

बापू युग की हालत है।

एक आदमी को दूज़े से,

ना जाने क्यों नफ़रत है।

आवश्यकता आन पड़ी अब,

एक नहीं शत गाँधी की।

जड़ से इस तम की बगिया को,

फेंके ऊँखाड़, उस आँधी की।

बापू आपसे फ़िर … … … …

चारों तरफ़ पश्चिम-पश्चिम की,

लगी ना जाने क्यों रट है।

सूख रहा बूढ़ा बेचारा,

इस भारत का यह वट है।

बढ़ती जाती आज ज़रूरत,

बापू हमको तेरी है।

भारत के इस दीपक गृह में,

छायी आज अँधेरी है।

मुक्त देश को किया तुम्हीं ने,

लोकप्रियता प्राप्त हुई।

हम जिस दिन आज़ाद हुए,

उस दिन उन्नति समाप्त हुई।

बापू आपसे फ़िर … … … …

क्या मुंबई है, क्या काशी है,

होता चारों तरफ़ पतन।

छोड़ के सब भारतीय संस्कृति,

अपनाते केवल फ़ैशन।

दिन प्रतिदिन जाता है भारत,

तीव्र गति से रसातल में।

केवल तुमसे आशा बापू,

इस विनाश के दलदल में।

अंत में कहता तुमसे बापू,

बिलखता ये शरणागत है।

ऐसी हालातों में बापू,

तेरी सिर्फ़ ज़रूरत है।

बापू आपसे फ़िर … … … …

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