रेट फिक्स है..!!(व्यंग्य)

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हमारी संस्कृति में एक छोटी से छोटी मशीन का उद्घाटन बिना पूजा पाठ के वर्जित है.कोई भी नयी चीज़ हमारे घर आती है तो उसकी लम्बी आयु के लिए इश्वर से प्रार्थना कि जाती है.यद्यपि इश्वर सिर्फ मौकों में याद करने कि चीज़ है.जब आनंद एक सरिता कि तरह निर्बाध बहा चला आ रहा हो तो लड्डू क्या, एक मिश्री का ढेला भी दिल से नहीं निकलता.पर जब वही आनंद बरसाती नदी कि तरह गर्मी में सुख जाए तो हमलोग ” हा इश्वर”…कह के उसकी सहायता मांगते हैं.

वैसे हम मशीनों के उदघाटन की बात कर रहे थे.एक साईकिल भी अगर घर में आती थी तो शहर के तमाम मंदिरों में उसकी हाजिरी लगाकर पूजा-पाठ करते थे . एक लाल चुनरी लेकर उसके हैंडिल में बांधा जाता था ताकि माता रानी कि कृपा बनी रहे और कभी दुर्घटना ना हो.वो लाल चुनरी हर रास्ता काटने वाली काली-से-काली बिल्ली के लिए एक चेतावनी होती थी.

वैसे छोटेलाल के घर में ऐसे पूजा पाठ कि शिकायत कुछ ज्यादा ही है .साईकिल कि बात क्या करूं, छोटे लाल जी अगर एक बनियान और अंडरवियर भी खरीदते हैं तो उसे लेजाकर भगवान् के चौखट पर पटक आते हैं.इश्वर भी सोचते होंगे कि अगर इनको शर्म नहीं आती तो कम-से-कम मेरा तो लिहाज़ करें .इसमें भी ऐसी गुस्ताख़ी ब्रह्मचारी हनुमान चन्द्र के सामने नहीं बल्कि छोटेलाल जी के ‘इष्ट’..’सहस्त्र गोपियों से घिरे’.. मुरलीमनोहर के सामने कि जाती है. वैसे कन्हैया को इन हालातों में उन्हें ये श्राप देना चाहिए कि उनके ये अंतर-वस्त्र दो दिन में ही नष्ट हो जाएँ. पर विश्वास मानिए..छोटे लाल जी के ये वस्त्र साल दो साल आसानी से चल जाते हैं. अगर वो फट भी जाएँ..उनके चीथड़े भी हो जाएँ..तो बदन पर ऐसे धारण किये घूमते हैं..जैसे कोई लाखों कि चीज़ पहन कर फैशन-शो में कैटवाक कर रहें हों. पर भाई! पर भगवान् की हर ईक्षा के पीछे कोई ना कोई गूढ़ रहस्य छुपा होता है. इश्वर ने अपनी झेंप से बचने के लिए छोटेलाल जी के बनियान को अमरता प्रदान किया है ताकि ये महाशय फिर जल्दी ध्रिष्ट्ता ना करें. क्योंकि अंतर-वस्त्र अगर जल्दी फट गए, तो भी छोटे लाल अपनी भक्ति से बाज नहीं आएँगे. फिर एक नया जोड़ा खरीद कर चौखट पर पटक देंगे. इसी तरह छोटे लाल के जूते भी बहुत दिन चलते हैं.अब इसमें क्या बताना .क्योंकि दूर से ही सही..छोटे लाल उसके लिए भी प्रार्थना करना नहीं भूलते.

ये सब भक्ति में किये गए वो अपराध हैं जिसे पुण्य के लिस्ट में शामिल करना ईश्वर की मज़बूरी है.

हम फिर से मशीनो कि बात करते हैं. छोटे लाल जी के स्कूटर का पुर्ननवीकरण(रेपैरिंग) हुआ. स्कूटर रिपेयर होना भी उनके लिए एक ख़ास मौका था.वर्षों से खटारे कि अनगिनत परिणामहीन किक मारते-मारते उनके पैर थक गए थे. एक ही किक में हुए फर्र से स्टार्ट स्कूटर को देख उनका रोम-रोम प्रफुल्लित हो गया. ख़ुशी में छिपी भक्ति के प्रभाव में उन्हें भगवन को याद करने से कोई नहीं रोक सकता था.इसलिए अपने सुपुत्र मनोहर को बीवी रंगिमा के साथ स्कूटर की पूजा के लिए मंदिर भेज दिया . चांदी सा चमकता स्कूटर लग भी आकर्षक रहा था. वैसे छोटे लाल जी स्वयं भी पूजा के लिए जा सकते थे.पर उनके रुतबे को देखते हुए पुजारी कुछ ज्यादा ही आशा रखते थे. छोटेलाल शहर के जाने माने प्राध्यापक थे.परन्तु अर्थहीनता ने तो सुदामा जैसे भक्त को संकोची बना दिया था. फिर छोटेलाल की क्या औकात !

अनपढ़ पुजारियों को तत्कालीन कॉलेज के प्राध्यापकों की माली हालत का पता नहीं था शायद. मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव कि कुछ ओछी शिक्षा-नीतियों ने बिहार के कॉलेज के प्राध्यापकों को कुछ ज्यादा ही सोचने पर मजबूर कर दिया था. दान दक्षिणा में भी टाल-मटोल करना पड़ रहा था. छोटे लाल जी का हाल में ही यूनिवर्सिटी-प्रोफेसर से रीडर के पद में डिमोसन हो गया था. पैसे तो पूछिए मत..कभी किसी माह तनख्वाह मिल भी गयी तो १२-१३ प्रतिशत.क्योंकि लालू यादव के हिसाब से सरकारी खज़ाना खली हो गया था.वैसे लालू भी सच बोल रहे थे शायद.उनके भी खाने के लाले पड़े हुए थे. पशुवो के चारे के सहारे बेचारे अपना काम चला रहे थे.

रंगिमा एक सच्ची जीवन संगिनी थीं . घर के मालिक का हुक्म बजाना भी जरुरी समझती थीं .दोनों थोड़ी देर में ही काली माता के मंदिर के बाहर अपने लाडले स्कूटर के पुनर्विवाह की ख़ुशी में खड़े हो गए. मंदिर के बाहर पूजा सामग्री कि तीन दुकाने थीं.तीनों दुकानदार कातर नज़रों से उन्हें घूर रहे थे. रंगिमा की जान-पहचान सिर्फ एक से थी . पर उन्हें जानते तीनो थे. क्योंकि रंगिमा का अक्सर यहाँ आना था. हर बार की तरह रंगिमा ने उस दिन भी अपने ‘परिचित’ दाहिने कोने वाले दुकानदार से नारियल ख़रीदा. बाकी दोनों दुकानदारों के चेहरे पर उनकी खीज़ दिख रही थी. नारियल कि थाली लेकर रंगिमा ने मंदिर में प्रवेश किया.मनोहर भी घंटियाँ बजाता पीछे हो लिया. प्रांगण में दो पुजारी आसन लगा के बैठे हुए थे…कुछ कागज़-पत्तर लेकर. उनके सामने एक मजदूर सा आदमी बैठा था.मंदिर कि दीवारों पर हुए ताज़े चकाचक रंग और उस आदमी के अर्ध-नग्न शरीर पर पेंट की छीटें साफ़ बता रहे थे कि वो मंदिर के रंग-रोगन के काम में लगा हुआ था.पर उसे गिडगिडाते हुए देखा तो समझ में आया. पंडित जी उसकी सही मजदूरी देने में आना-कानी कर रहे थे.

पर रंगिमा को तो पूजा करना था.रंगिमा ने उनमे से एक पंडित को कहा:

रंगिमा -पंडित जी! थोडा गाडी की पूजा करनी थी.

पंडित ने ललचाई नजरों से बाहर देखा.कुछ नजर नहीं आया तो बोले

पंडित- कहा बा?

रंगिमा -वो रहा..(बाहर इशारा करते हुए) !

पंडित ने गाडी शब्द सुन कर कुछ बड़ी आशा कि थी. पर ये तो बड़ी छोटी सी चीज़ है. स्कूटर ! वो भी रिपेयर्ड ! पंडित ने मुंह बनाते हुए दूसरी और इशारा किया…एक पंडित टाइप के किशोर की तरफ. वो ऐसा दिखा रहे थे कि मानो ये छोटी मोटी चीज़ है, कुछ हमारे लियाकत कि चीज़ लाओ तो बात बनती. वैसे उनके रंग-रूप से साफ़ झलक रहा था कि उनकी कम से कम आठ पिछली पुश्तों ने ‘चरण-सिंह’ कि सवारी में दम तोड़ दिया होगा तब कही जा कर उन्हें एक खड़खडाती साईकिल कि सावारी का सौभग्य मिला होगा. उनकी साईकिल बाहर ही मंदिर कि दिवार के सहारे खड़ी थी.वो भी बिना लॉक के. शायद पंडित को उसकी चोरी का भय नहीं था.वैसे एक बात और थी की कोई चोर भी उसे ले जाना नहीं चाहेगा.उस साईकिल की स्थिति देख कर तो यही लग रहा था.

एक लम्बे चोगेनुमा कुरते में घुसा वो मरियल सा किशोर-पंडित जम्हाई लेता आया. गर्दन और केशों पर काले बदल कि भांति छायी गंदगी ने कई दिन से ना नहाने का संकेत दिया.खैर ठण्ड भी तो बहुत थी. मनोहर तो भिनक उठा. हाथों में मार्जक जल और हनुमान जी कि मूर्ति में लगा सिन्दूर पोंछ वो दौड़ कर बाहर आया. अपने फटे हांथों से स्कूटर कि बाड़ी पर कुछ चिन्ह बनाया. बड़ी कोशिश करने पर पता चला…वो स्वस्तिक का चिन्ह था. एक विद्वान् कि तरह आँखें मूंद कर थोड़ी देर तक मंत्र पढने का प्रपंच करता रहा वो . पर पास गुजरती एक लड़की से आती टैलकम की खुशबू ने बीच में ही उसकी आँखें खोल दी. पर रंगिमा की नजरें उसी पर टिकी थीं..सो वो झेंप गया.फिर मार्जक जल से स्कूटर को नहला दिया गया.नारियल मान के हाथों से लेकर सड़क पर ही दे मारा.

रंगिमा -पंडित जी, ये यही तोड़ दिया तो अंदर क्या चढ़ाऊँगी ?

पंडित-माताजी, ये विश्वकर्मा जी के लिए था. कालीमाता के लिए दूसरा ले कर आइये. और हाँ ( रंगिमा के परिचित दुकानदार के तरफ इशारा करते हुए ) नारियल यहाँ से नहीं ,वहां से लीजिये.अच्छा क्वालिटी मिलता है.

रंगिमा नए युग के लाल-लपेटो से परिचित थी , सो नारियल उसी अपने दूकानदार से ख़रीदा. पंडित तो जल-भुन गया. रोष तब सामने आया जब पूजा-उपरान्त एक पांच रूपए का नोट उसे थमाया गया.

पंडित बिफर गया-(नोट वापिस देते हुए)ये लीजिये और जा के हेड-पंडित जी को दे दीजिये , हम नहीं लेंगे.

रंगिमा ने भी हार नहीं मानी.

रंगिमा -अरे तो क्या पूरी दौलत तुम्हारे नाम कर दूँ?

पंडित-ना ना!

रंगिमा कभी भोजपुरी तो कभी खड़ी बोली में बोलती थी..एक साहित्य के शिक्षक की पत्नी होने के लिहाज़ से हमेशा अपनी भाषा को चुस्त रखती थी. पर गुस्से में भोजपुरी मुह से निकल आता था.

रंगिमा -अरे पंडित जी, दक्षिणा तो ख़ुशी के बात होला, जे बन पावे ऊहे देवे के चाहि.लिही रखीं.

पंडित-ख़ुशी के बात है तो आप एको रुपया मत दीजिये! जादा खुश रहिएगा.नहीं चाहिए…और आपको पता नहीं है का…? स्कूटर का ग्यारह रुपया फिक्स है. कौनो मंदिर में जाइए..सेम रेट है. कौनो अंतर नहीं मिलेगा…ऊ जो बढ्का काली मदिर है ना..ऊंहा भी सेम रेट है.पता कर लीजिये आप.

रंगिमा ने ज्यादा बहस करना उचित नहीं समझा…और पांच रूपए का वो नोट मंदिर के दान पत्र में डाल कर स्कूटर पे बैठ गयी.

हर्र्र्रर्र्र्र.र्र्र्रर्र्र्रर ..करता स्कूटर थोड़ी देर में ही घर के आँगन में था.

अगली सुबह कॉलेज जाते समय छोटेलाल ने इश्वर को मन-ही-मन प्रणाम कर मार्जक जल और सिन्दूर के निशानों को रगड़ रगड़ कर साफ़ किया..और बुद-बुदाये: हे परमपिता…परमेश्वर…रक्षा करना.!

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