चतुर्भुज स्थान की महिलाओं ने दिखाया विकास यात्रा को आईना

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मुजफ्फरपुर के खुदी राम बोस स्टेडिम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जनता दरबार लगाया और इस दरबार में अपनी शिकायत लेकर पहुंचने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी। इनमें महिलाओं की संख्या अधिक थी। किसी का नाम बीपीएल सूची में है , लेकिन उसे राशन नहीं मिल रहा है, किसी से जमीन दाखिल खारिज कराने के लिए सीओ 40 हजार रुपये मांग रहा है, तो कोई शहर में सक्रिय भू-माफियाओं से परेशान है। कतार में खड़े लोगों के हाथ शिकायती आवेदनों से भरे हुये थे और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक-एक करके उन आवेदनों को संबंधित विभाग के अधिकारियों के हवाले कर रहे थे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सेवा यात्रा के दूसरे पड़ाव का यह तीसरा दिन था। अधिकारियों की लंबी चौड़ फौज लेकर नीतीश कुमार इन सेवा यात्राओं के माध्यम से सरकार को जनता तक लाने का दावा कर रहे हैं। तो क्या वाकई में अब तक सरकार जनता से दूर थी ?  और यदि थी तो इस यात्रा के माध्यम से सरकार जनता के कितने करीब आ रही है?

मुख्यमंत्री की सेवा यात्रा से एक बात खुलकर सामने आ रही है कि तमाम जन शिकायतें सूबे में कार्यरत अधिकारियों को लेकर है। नीतीश कुमार का कहना है कि लोगों से बात करके उन्हें जमीनी स्तर पर उनकी समस्याओं को समझने का मौका मिल रहा है। बिहार में रहने वाला एक अदना सा आदमी भी यह बता देगा कि किस तरह से बिहार में नौकरशाही हावी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ यहां मुहिम चलाने का दावा किया जा रहा है, नये-नये कानून बनाये जा रहे हैं, सरकारी महकमों को पुर्नगठित किया जा रहा है और इनका प्रचार-प्रसार भी खूब किया जा रहा है , लेकिन हकीकत में बिहार में भ्रष्टाचार पहले की तरह ही कायम है , सिर्फ अधिकारियों के रेट में इजाफा हो गया है। एक महिला से जमीन दाखिल खारिज कराने के लिए सीओ अब 40 हजार रुपये मांगता है, जबकि पहले यह काम महज चार या पांच हजार रुपये में हो जाता था। अमूमन सभी सरकारी महकमों की स्थिति ऐसी ही है, बढ़े हुये रेट के  साथ घूसखोरी जारी है।

सवाल उठता है कि अधिकारियों की इस प्रवृति पर लगाम कसने के लिए जनता के बीच जाने की क्या जरूरत है। जब जनता ने एक बार आपको चुन लिया है तो फिर जनता के बीच बार-बार दरबार लगाने का क्या औचित्य है ? सेवा यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास जो भी शिकायतें आ रही हैं उसे देख और सुनकर स्पष्ट हो जाता है कि बिहार आज भी न सिर्फ विकास से कोसो दूर है, बल्कि यहां के लोगों की नागरिक सेवाओं से संबंधित समझ भी काफी कमजोर है। अब मुजफ्फरपुर शहर में गंदगी फैली हुई है तो क्या उसको साफ कराने का काम भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का है?

15 साल पहले सत्ता में आने के तत्काल बाद पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद भी नौकरशाहों को लेकर जनता के बीच जाते थे, गरीब- गुरबों के बच्चों के बीच साबुन बांटते थे ताकि वे अच्छे से नहा सके , पटना में सचिवालय के गेट का ताला लगवाकर कर्मचारियों की गिनती करते थे कि कौन-कौन देर से आ रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी कमोबेश इसी रास्ते पर चलते हुये दिख रहे हैं , कम से कम इनकी सेवा यात्रा का रंग-ढंग तो यही है। इसके पहले भी नीतीश कुमार मुजफ्फरपुर में लोगों के पास सरकार को ले जाने की कवायद कर चुके हैं। खुदी राम बोस स्टेडिम में मुजफ्फरपुर के चर्तुभुज स्थान की महिलाओं ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आईना दिखाते हुये एक आवेदन देकर इसकी याद दिलाई। अपने आवेदन में उन्होंने लिखा है कि 2009 में अपनी यात्रा के दौरान उन्हें विश्वास दिलाया था कि उनके और उनके बच्चों की जिंदगी को बदलने की कोशिश की जाएगी, लेकिन अभी तक उनके लिए कुछ नहीं किया गया है। विदित है कि चतुर्भुज स्थान मुजफ्फरपुर की बदनाम बस्ती है, जो लंबे समय से एक नई रोशनी के इंतजार में है। तो क्या नीतीश कुमार की सेवा यात्रा इन अंधेरी गलियों में रोशनी लेकर आएगी?

बिहार की राजनीति में महादलित जैसे शब्द को इजाद करने का श्रेय नीतीश कुमार को ही जाता है। 2010 के बिहार विधानसभा में महादलित का बटखारा निसंदेह नीतीश कुमार के पक्ष में गया। अपनी सेवा यात्रा के दौरान नीतीश कुमार इस बटखारे का भार निरंतर बढ़ाने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं। मुजफ्फरपुर में महादलितों की एक बस्ती में मुख्यमंत्री की पंचायत इसी ओर इशारा करते हैं। महादलितों के परिवार वालों को भरपेट भोजन देने का वादा कर रहे थे नीतीश कुमार साथ ही उनके समुदाय को विकसित करने की भी बात कर रहे थे। इसका मतलब साफ है कि बिहार आज भी भूख से जूझ रहा है और कसीदे विकास के लिखे जा रहे हैं।

3 COMMENTS

  1. चतुर्भुज स्थान से शायद गुजरा था पिछले साल। वहाँ छतों या घर के बाहर ही छत पर जाने के लिए सीढ़ी देखकर पुरानी फिल्मों या उनके कोठे का साफ स्मरण हो आता था। …चूँकि मुजफ्फरपुर में इन दिनों इक्कीसवीं सदी के विक्रमादित्य घूम रहे हैं, इसलिए यह कहना आवश्यक है कि लोगों को लालू के जनता के बीच जाने की बात ठीक से याद नहीं या पता नहीं, इसे बताने की आवश्यकता है। शायद खुदीराम बोस की समाधि पर शौचालय बना हुआ है, मुजफ्फरपुर वही जगह है। लेकिन खुदीराम बोस का आकार बहुत छोटा है, हमारे यहाँ लालू द्वार भी बना हुआ है। अब नीतीश द्वार भी देखने को मिल सकता है बिहार में, भारत में और शायद विदेशों में भी।

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