मैंने देखा (कविता)

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-नलिन,

 

भीड़ देखी,

और भीड़ मेँ तन्हा इन्सान देखा।

घर देखेँ,

और सुनसान मकान देखा।

बस्ती देखी,

और आबाद श्मशान देखा।

रिश्ते देखेँ,

रिश्तोँ का खालीपन देखा।

गैर देखेँ,

गैरोँ का अपनापन देखा।

दोस्त देखेँ,

उनका दीवानापन देखा।

प्रीत देखीं,

और उसमेँ पागलपन देखा।

प्रेमी देखेँ,

उनका बाँबरापन देखा।

जुदाई देखी,

और जीवन का सूनापन देखा।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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