बाइट प्लीज (उपन्यास, भाग-8)

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16.

करीब छह साल पहले दैनिक जागृति में उसकी नौकरी पहले पेज पर लगी थी। उसकी अच्छी अंग्रेजी को देखते हुये महाप्रबंधक शशिकांत ने उप संपादक के तौर पर नियुक्त करते हुये डेस्क इंचार्ज भूषण से कहा था, “ इसे अपनी टीम में रख लो, इसकी अंग्रेजी अच्छी है। तुम्हारे साथ रहेगा तो और निखर जाएगा।”

भूषण बिहार का ही रहने वाला था। दिल्ली में ही पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद कई अखबारों में काम करते हुये दैनिक जागृति तक की यात्रा तय की थी। पिछले छह महीने से वह दैनिक जागृति में जेनरल डेस्क का काम कुशलता से संभाल रहा था।

नीलेश की तरफ देखकर उसने हंसते हुये कहा था, “इससे मैं इतना काम लूंगा कि यहां से निकलने के बाद कहीं भी यह काम करने की स्थिति में आ जाएगा। एक बार जो मेरे साथ काम कर लिया समझो वह कहीं भी काम कर लेगा। ” और वाकई में भूषण ने उसे रगड़ मारा था। भूषण ने उसका एक फोल्डर बनावा दिया था और उसके फोल्डर में खबरों की बौछार कर देता था। सारी की सारी खबरें अंग्रेजी एंजेसियों की होती थी, हर तरह की खबरें होती थीं, न्यूयार्क की गलियों से लेकर अफगानिस्तान के दरारों तक की, उन नये जन्तुओं की खबरें जिन्हें समझने-समझाने और जानने के लिए ग्लोबल बहस चल रही थी, फिल्मी खबरें।

नीलेश उन खबरों को दो बार पढ़ता था, फिर उन्हें अपने तरीके से हिन्दी में लिख मारता था। उसकी पूरी कोशिश होती थी कि इंट्रो धांसू हो, खबरे के नेचर को सूट करने वाला और फिर तमाम पैराग्राफ में कही गई बातों को अपने अनुसार क्रम बदलते हुये लच्छेदार भाषा में ढाल देता था। बनाने के बाद उन खबरों को वह जेनरल डेस्क के फोल्डर में डाल देता था, प्राथमिकत,सहूलियत और अपनी गति के मुताबिक भूषण खबरों को उठाता जाता था। एक बार कुर्सी पकड़ लेने के बाद  भूषण अपनी जगह से हिलता नहीं था, तब तक जब कि बगल के शीशे वाले चैंबर से जीतेंद्र कट हेयर स्टाइल वाला एक न्यूज एडिटर हांक नहीं मारता था।

भूषण लगभग छह महीने तक उसे इसी तरह से रगड़ते रहा। शाम चार बजे से लेकर रात बारह बजे तक वह इसी तरह से अंग्रेजी एजेंसियां की छांटी हुई खबरों को अखबार के अनुकूल बनाता रहता था। अमूमन अधिकतर खबरों को अखबार में जगह मिल जाती थी, लेकिन शुरु-शुरु में उनका हेडिंग बदला रहता था। उस समय तक उसके बैठने की कहीं फिक्सड व्यवस्था नहीं थी। भूषण ने कह रखा था, जो भी कंप्यूटर खाली देखो उसी पर बैठ जाओ। मतलब काम से है कंप्यूटर से नहीं।

छह महीने बाद उसे रमा के बगल वाले कंप्यूटर पर बैठाते हुये भूषण ने उससे कहा,  अब बायर छांटना सीखो, और हां खबरे बनाते रहो। वो एडिशनल काम होगा।

रमा तीन बजे ही आ जाती थी, और दस बजे चली जाती थी। आधे घंटे से अधिक कभी कुर्सी पर बैठती ही नहीं थी। उसका  कंप्यूटर हमेशा खुला रहता था। प्रत्येक दिन सभी एजेंसियों को मिलाकर कुल पांच- छह हजार खबरें उसके कंप्यूटर पर गिरती थी। उसका काम था खबरों को रिजेक्ट करना। बची हुई खबरें भूषण के पास जाती थी, जिन्हें एक लाइन में कई कंप्यूटरों पर काम कर रहे लोगों के नाम से बने फोल्डर में वह डालता जाता था। सभी लोगों को वह हिन्दी वाली खबरें देता था, और साथ में अंग्रेजी वाली भी। इसका इल्म नीलेश को करीब एक सप्ताह तक रमा के बगल में बैठने के बाद हुआ तो उसने भूषण से पूछा, “सर आप मुझे अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी वाली खबरें भी क्यों नहीं देते हो? ”

“कुछ ज्यादा ही बुझाने लगा है तुमको, सिर्फ हिन्दी की खबरें बनाने से भाषा नहीं मंजेगा। अभी भाषा को मांजते जायो, ऊ लौंडिया पर लाइन-उइन मारते हो कि नहीं?”, नीलेश के चेहरे की तरफ देखते हुये उसने थोड़ा मुस्करा के पूछा था।

“अब यही मेरा काम रह गया है,” नीलेश ने थोड़ी तल्खी से जवाब दिया था।

“हां थोड़ा बहुत यह भी किया करो। चोरी करके पास किया था?”

“नहीं।”

“बोलेगा झूठ, चोरी करके पास किया है। स्त्रिलिंग-पुलिंग तुमको नहीं बूझाता है ना? तुम्हारा स्त्रीलिंग-पुलिंग ठीक करते करते मेरा हालत खराब है। इसलिये तुमको उसके बगल में बैठाया हूं। सबकुछ अंग्रेजिये नहीं होता है, हिन्दी अखबार में काम करने आये हो। जेतना बिहारी पत्रकार मिलेगा दिल्ली में  सब के साथ यही प्राब्लम है, लिंगे पता नहीं है। खाते कहां हो?

-जहां मन किया।”

“मेरा टिफिन खा लेना, डेली लौटा के ले जाये पड़ता है। बीवी डांटती है।”

इसके बाद भूषण की टिफिन वह डेली चट कर जाता था, और रमा के प्रति भी थोड़ा कंशस हो गया था। और जब रमा के प्रति थोड़ा कंशस हुआ तो उसे अहसास हुआ कि वह लगातार उसके बिहैवियर को वाच कर रही है, हालांकि स्पष्टतौर पर दोनों इसका इजहार नहीं कर रहे थे। रमा उससे काम के बारे में छोटे-मोटे सवाल करती रही। उसकी नजर मानिटर पर लिख रहे नीलेश की खबरों पर होती थी, और अक्सर वाक्यों में उसके लिंग दोष के लिए उसे टोक देती थी। बिना कुछ कहे वह उसके कहे मुताबिक उसे ठिक कर देता था। एक दिन थोड़ी चिढ़कर बोली, “ लिंग तुम्हारी समझ में नहीं आती?  कौन स्त्रिलिंग है कौन पुलिंग है, ये तो कामन बात है ना।  ”

“मेरा कामन सेंस अनकामन है और मेरा सबसे बड़ा प्राब्लम यही है। इसी के चलते मैं हिन्दी से भाग गया था, लेकिन फिर लौट आया, क्योंकि मुझे इसको ठीक करना था।”

“तुम अंग्रेजी अखबार में काम करते थे और अब हिन्दी में काम कर रहे हो?”, उसने थोड़ा आश्चर्य से पूछा था।

“तो !”

“कुछ नहीं।”

नीलेश ने पहली बार उसे गौर से देखा था। वह एक दुबली पतली हरियाणवी छोरी थी। चेहरा गोल था और आंखे बड़ी-बड़ी। होठ बहुत ही पतले थे। रमा के लगातार टोकते रहने के कारण वह हिन्दी ग्रामर की एक मोटी सी किताब ले आया था और ड्यूटी के बाद अपने कमरे में जब भी फ्री रहता, उसी को पढ़ता रहता था। कुछ सुधार हो गया था, लेकिन बीमारी जड़ से नहीं हटी थी।

इस बीच रमा से उसने वायर पर खबरों को छांटने का गुर सीख लिया था। रात में नौ और दस बजे के बीच रमा अपना बैग उठा के चल देती थी, उसके बाद वायर पर आने वाली खबरों को छांटने का काम वही करता था। इस दौरान खबर बनाने के काम से उसे मुक्त कर दिया जाता था। रमा सिर्फ हेडिंग और इंट्रो देखकर खबरों को उड़ा देती थी या फिर सलेक्ट करती थी, जबकि नीलेश प्रत्येक खबर को पूरी तरह से पढ़ने के बाद ही ऐसा करता था। रमा की छुट्टी के दिन वायर का पूरा जिमा उसी के ऊपर होता था। उसकी कोशिश होती थी करीब तीन सौ खबरें सलेक्ट करने की। रात ग्यारह बजे के बाद भूषण खुद अंदर के पेज बनाने के काम में जुट जाता था और एक बजते-बजते अमूमन चार पेज बना ही लेता था। डम्मी के आधार पर पेज बनाने वाले पेजिनेटरों की कमी नहीं थी, लेकिन भूषण को पेजिनटरों से संतोष नहीं होता था। एक दिन रात को अंतिम पेज छोड़ने के बाद उसने नीलेश से कहा था, “वायर से इतनी अधिक खबरें क्यों देते हो मुझे? और किल करो. ”

“तीन सौ तो देता हूं, और कितना किल करूं?”

“पचहत्तर से ज्यादा नहीं होना चाहिये, ज्यादा से ज्यादा सवा सौ। ध्यान रखना। और ऊ लौंडिया के साथ मामला कहां पहुंचा? ”

“कहीं नहीं”

“मौका है, चूको मत।”

इसके बाद से नीलेश वायर पर कुछ ज्यादा ही अलर्ट हो गया था। रमा की अनुपस्थिति में जब भी उसे वायर पर बैठने का मौका मिलता था उसकी पूरी कोशिश होती थी अस्सी से ज्यादा खबरें सलेक्ट न हो। इसी बीच रमा की शादी हो गई और उसने दैनिक जागृति को छोड़ दिया। वायर की पूरी जिम्मेदारी नीलेश को दे दी गई। अब नीलेश का काम सिर्फ सलेक्ट या रिजेक्ट करना था। प्रत्येक दिन आठ घंटे में करीब करीब पांच-छह हजार खबरों को वह हैंडल करता था। यह सिलसिला एक साल तक चलता रहा।

दैनिक जागृति नये-नये संस्करणों के माध्यम से अपना विस्तार करने में लगा हुआ था। इसी क्रम में पानीपत में एक नयी यूनिट खोली गई और भूषण को वहां का इंचार्ज बना कर भेज दिया गया। भूषण नीलेश को भी अपने साथ ले जाना चाहता था, लेकिन दिल्ली न छोड़ने की अपनी विवशता बता कर पानीपत जाने से उसने इन्कार कर दिया। इसी क्रम में न्यूज एडिटर का भी तबादला हो गया। नये न्यूज एडिटर मनोहर सिंह ने आते ही पुराने लोगों को एक-एक करके साइड करना शुरु कर दिया। अपने साथ वह कुछ नये लोगों को लेकर आया था, जिन्हें संस्थान के अंदर प्रमुख स्थानों पर सेट करना था। नीलेश के साथ उसकी खटपट शुरु हो गई थी।

दैनिक जागृति ने  चैनल 11 के रूप में नया एडवेंचर शुरु किया। अखबार में काम करने वाले अधिकतर कर्मचारी इस बात के लिए जोड़ लगाये हुये थे कि उन्हें चैनल  11 में शिफ्ट कर दिया जाये। नीलेश की इच्छा भी चैनल 11 में जाने की थी लेकिन वह जानता था मनोहर सिंह कभी भी उसके नाम की सिफारिश नहीं करेगा। एक दिन मनोहर सिंह ने नीलेश को वायर पर से हटाकर उसे गाजियाबाद के डेस्क पर शिफ्ट कर दिया। नीलेश की तत्काल इच्छा हुई थी कि इस्तीफा उसके मुंह फेंककर चल दे। लेकिन उसके शुभचिंतकों ने उसे समझाया था कि इस्तीफा देने के पहले एक बार शशिकांत ठाकुर या संपादक रजनीश गुप्ता से बात कर ले। आमने  सामने बात करने के बजाय उसने संपादक रजनीश गुप्ता को मेल भेजना उचित समझा। मेल भेजने के दो दिन बात शशिकांत ठाकुर ने उसे बुलाक हंसते हुये कहा था, “आजकल संपादक जी को बहुत मेल कर रहो, मेल में क्या लिखा है, आतंकवाद पर रिपोर्टिंग करने के लिए अफगानिस्तान जाना चाहते हो?”

“अब यहां गाजियाबाद के डेस्क पर बैठ कर झक मारने से अच्छा है न कि फिल्ड में वर्क करूं। जामिया मिलिया में मेरे कई अफगानी मित्र हैं। बहुत दिन से अफगानिस्तान घूमने का न्यौता दे रहे हैं। सोच रहा हूं अफगानिस्तान चला जाऊं और वहीं से रिपोर्टिंग करूं। यदि सब कुछ बेहतर रहा तो लादेन का इंटरव्यू तक कवर कर सकता हूं। यदि आप भेजते हैं तो बेहतर हैं नहीं तो किसी और अखबार में बात कर लूंगा,” नीलेश ने संयत स्वर में बोला था।

“ फिलहाल हम यह रिस्क नहीं ले सकते हैं। वैसे तुम्हें चैनल 11 भेजा जा रहा है। वहीं जाकर तुम काम करो, न्यूज कोर्डिनेटर के तौर पर। कल से ज्वाइन कर लो। वहां जाकर विभूति त्रिपाठी को रिपोर्ट करो, क्या करना है वह तुम्हें बता देंगे। ”

नीलेश ने चैनल 11 ज्वाइन करने के लिए तत्काल हामी भर दी थी। शशिकांत ठाकुर के चैंबर से निकलने के बाद उसके चेहरे पर संतोष के भाव थे। वापस संपादकीय विभाग में आकर उसने अपने शुभचिंतकों से विदा ली और अगले दिन चैनल 11 ज्वाइन करने का मूड बनाते हुये दफ्तर के बाहर निकल गया।

जारी….

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