बाइट प्लीज (उपन्यास-भाग 9)

0
14

17.

दूसरे दिन नोएडा स्थित चैनल 11 के दफ्तर में कदम रखते ही वहां के माहौल को देखकर उसे अपने आप में एक नई उर्जा का अहसास हुआ था। एक बड़े से अहाते के बीचो-बीच चैनल की बिल्डिंग थी, बाहर मुख्य द्वार पर चार सुरक्षाकर्मी हमेशा तैनात रहते थे। बिल्डिंग के दायीं तरफ  पार्किंग स्थल बना हुआ था, जिनमें एक ही रंग की कई गाड़ियां कई लगी रहती थीं जिन पर बड़े-बड़े अक्षरों में चैनल 11 लिखा हुआ था। बिल्डिंग के दायीं तरफ एक बड़ा सा मैदान था, जिस पर दूब के घास की हरियाली फैली हुई थी। बिल्डिंग के ठीक सामने एक बड़ा सा पोर्टिको था और उसके सामने एक सुंदर सा गार्डेन। गार्डेन के चारों ओर कई तरह के सुंदर-सुंदर फूल खिले हुये थे।

पोर्टिको के सामने चार-पांच सीढ़िया चढ़ने के बाद एक बड़ा सा रिस्पेशन का डेस्क बना हुआ था, जिस पर कई फोन रखे हुये थे। डेस्क के दूसरी तरफ एक सुंदर सी चुलबुली लड़की हमेशा बैठी रहती थी। उसका सारा वक्त लगातार बज रहे फोन को मैनेज करने में ही व्यतीत होता था। उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कराहट रहती थी और कभी-कभी बिना बात के ही खिलखिलाकर हंस पड़ती थी। डेस्ट के दायीं तरफ की दीवार पर एक बड़ा सा टीवी लगा हुआ था, जिस पर चैनल 11 की खबरें चलती रहती थी। इस दीवार के दोनों ओर शीशे के दो दरवाजे थे, जो हमेशा बंद रहते थे। इन बंद दरवाजों को खोलने के लिए यहां काम करने वाले लोग अपने गले में लटके हुये इलेक्ट्रानिक आई कार्ड का इस्तेमाल करते थे। आई कार्ड को दरवाजे पर लगे हुये एक लाल बटन के पास ले जाते थे, फिर पीं की आवाज के साथ ही दरवाजा खुद ही खुल जाता था।

दोनों दरवाजों से लगी हुई खूबसूरत गलियां दो दिशाओं से होती हुई न्यूज रूम तक जाती थी। बड़े से न्यूज रूम में छोटे-बड़े कई डेस्क बने हुये थे, जिनपर कंप्यूटर और एडिटिंग सिस्टम लगे हुये थे। न्यूज रूम के ठीक सामने शीशे की दीवार से बना हुआ बड़ा सा स्टूडियो था, स्टूडियो के अंदर छोटे-बड़े करीब ढेर सौ लाइटें, एक टेली प्राम्पटर, एक स्क्रीन और स्टैंड पर चार-पांच कैमरे रखे हुये थे। तेज लाइट की वजह से चैनल 11 का बड़ा सा डेस्क जिसके पीछे ऊंची-ऊंची कुर्सियों पर बैठकर एंकर खबरें पढ़ते थे हमेशा चमकता रहता था। न्यूज रूम के बायें साइड एक छोटा सा स्डूडियो था जिसके बैकग्राउँड में शीशे की दीवार तक खुले मैदान को कवर किया गया था। सुबह के साफ्ट प्रोग्राम के लिए अमूमन इसी स्टूडियो का इस्तेमाल होता था। इस स्टूडियो के ठीक बगल में एमसीआर था और उसी जुड़ा हुआ टेक्निकल रूम। न्यूज रूम के दूसरी तरफ पारदर्शी शीशे के चार चैंबर बने हुये थे, जिनमें कंप्यूटर, टेलीफोन और व्हाइट बोर्ड के अलावा एक-एक पोर्टबल टीवी लगा हुआ था। इन चैंबरों के सामने न्यूजरूम वाले हिस्से में चार स्क्रीन को ऊपरी दीवार के सहारे कस कर हवा में लटका दिया गया था, जिनपर प्रमुखता के हिसाब से चार अलग-अलग राष्ट्रीय न्यूज चैनल चल रहे थे। न्यूज रूम का फर्श चमकते पत्थरों से बना था, ऊपर से आ रही लाइट की वजह से वहां पर काम करने वाले लोगों की आकृतियां रिफ्लेट होती थी। वहां का तापमान हमेशा 10 से 13 डिग्री सेल्सियस के बीच होता था।  बाहर झुलसती गर्मी होने के बावजूद अंदर लोग स्वेटर या शाल का इस्तेमाल करते थे। चश्मा पहने कोई व्यक्ति अंदर से बाहर निकलता था उसके चश्मे पर पानी की बूंदी नजर आती थी। न्यूज रूम में एक बड़ा सा प्रिंटर रखा हुया था, जो वहां मौजूद सारे कंप्यूटरों से कनेक्ट थे। लोग अपनी कंप्यूटर से कमांड मारने के बाद उस प्रिंटर के पास आते थे और अपना मैटर उठा कर ले जाते थे। पारदर्शी चैंबरो के पीछ एक छोटी सी गली थी। गली के एक तरफ तीन एटिडिंट सिस्टम लगे हुये थे, दूसरी तरफ रिसर्च वालों के आफिस के साथ-साथ एक लाइब्रेरी और रिपोटरों को अपना फीड देखने और काटने के लिए आठ कंप्यूटरों से भरा हुआ एक छोटा सा हाल बना हुआ था। इसी कतार में गली के बीचो बीच बड़े-बड़े सर्वर रखे हुये थे। गली का एक सिरा एसाइमेंट हाल में आकर खुलता था, जहां एक डेस्क पर कतार में 12 कंप्यूटर रखे हुये थे और हाल के एक कोने में एक बड़ा सा डेस्क रखा हुआ था, जिसके पीछे कुर्सी पर एक दढ़ियल व्यक्ति हमेशा बैठा रहता था। उसके मुंह से हमेशा अंग्रेजी ही निकलती थी। देश भर में फैले चैनल के नेटवर्क को वहीं से कंट्रोल किया जाता था।

मुख्य दरवाजे से इंट्री लेने के बाद नीलेश को एक सुरक्षाकर्मी ने अपनी देख रेख में न्यूज रूप के अंदर विभूति त्रिपाठी के पास पहुंचा दिया था। विभूति त्रिपाठी उन पत्रकारों में थे जिन्होंने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत साइकिल से की थी और धीरे-धीरे ऊपर चढ़ते गये थे। पत्रकारिता के लंबे कैरियर में हर परिस्थिति में अपने आप को समायोजित करने की कला से वह लैस हो चुके थे। इलेकट्रानिक मीडिया में काम करने का उनका यह पहला तर्जुबा था। दैनिक जागृति की ओर से उनके सुलझे हुये कार्य शैली को देखकर उन्हें यहां एक अहम पद पर भेजा गया था और अब वह प्रिंट मीडिया से निकल इलेक्ट्रानिक मीडिया के तौर तरीके सीख रहे थे।

विभूति त्रिपाठी ने निलेश का स्वागत करते हुये कहा था, “ तो न्यूज कार्डिनेटर के लिए तुम्हारा चयन किया गया है। यहां की अहम खबरों को अखबार के लिए भेजना है। बस चैनल 11 के खबरों पर नजर रखना है और जो महत्वपूर्ण लगे उसे बना कर भेज देना, फोटो के साथ। ”

पहले दिन ही उसने तीन खबरें बनाई थी और चैनल 11 के दफ्तर से दैनिक जागृति स्थित दफ्तर दौड़ता रहा। दोनों दफ्तरों के बीच की दूरी करीब छह किलोमीटर थी। इस भागदौड़ से निजात पाने के लिए अगले दिन उसने दैनिक जागृति के टेक्निकल हेड से संपर्क करते हुये दोनों जगहों के साफ्ट वेयर को आपस में जोड़ने को कहा था। टेक्लिनकल हेड ऐसा करने के लिए तैयार था लेकिन इसके लिए प्रबंधक रवि मिश्रा से बात करने को कहा। रवि मिश्रा से बात हो जाने के बावजूद तीन दिन तक दोनों साफ्ट कानेक्ट नहीं हो सके थे, नीलेश को खबरों को लेकर बदस्तूर दोनों दफ्तरों के बीच भागते रहना पड़ा था। पहले वह चैनल 11 में बैठकर खबर लिखता था, फिर उन खबरों का प्रिंट निकालता था, फिर आफिस की गाड़ी से दैनिक जागृति पहुंचता था।

चौथे दिन दैनिक जागृति के मालिक और मुख्य संपादक रजनीश गुप्ता चैनल 11 के न्यूज रूम में टहल रहे थे। नीलेश पर नजर पड़ते ही उन्होंने पूछा था, “कैसा चल रहा है?”

“मेरा आधा समय तो खबरों को लेकर भागने में ही निकल जाता है। कई बार बोल चुका हूं कि यहां का साफ्टवेयर अखबार के साफ्टवेयर से कनेक्ट कर दिया जाये, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है,” अपनी आदत के मुताबिक नीलेश ने बेबाकी से कहा था।

अगले ही दिन दोनों जगहों के साफ्टवेयर को कनेक्ट करने के लिए दैनिक जागृति से एक इंजीनियर पहुंच चुका था। न्यूज रूम आते ही उसने पूछा था किस कंप्यूटर पर साफ्टवेयर डालना है। अपने लिए एक कंप्यूटर निश्चत करने के उद्देश्य से जब वह चैनल हेड अभिजित साही के पहुंचा तो अभिजित साही ने पूछा था, “यहां की खबरे दैनिक जागृति में तुम्ही भेजते हो? ”

“जी सर”

अविजित साही एक ठिगने कद का इनसान था, जिसकी आंखों पर मोटे-मोटे लेंश का चश्मा चढ़ा हुआ था, जिसकी वजह से उसकी आंखें बड़ी-बड़ी दिखती थी। उसके बाल पूरी तरह से फौजी अंदाज में कटे हुये रहते थे। गर्दन की लंबाई काफी कम थी, और खोपड़ी का आकार बड़ा। अविजित साही की प्रतिष्ठा एक खोजी पत्रकार के रूप में थी। वह अपने आप को गांधीवादी कहता था और उसकी लगातार बोलते रहने की आदत थी। गांधीवादी समाजवाद का बेहतर प्रयोग वह पत्रकारिता की संस्कृति को बदलने के लिए कर रहा था। इसकी झलक उसके हाव भाव में दिखती थी। जब कोई उसे सर कहता था या फिर उसके नाम के साथ जी लगाता था तो वह अपने खास अंदाज में ऐसा कहने वाले व्यक्ति का मजाक उड़ता था।

नीलेश की तरफ मुस्करा कर उसने कहा था,“मैं सर नहीं हूं पैर हूं। यार मेरा नाम अविजित है, मुझे अविजीत बोलो। तुम्हारा पसंदीदा नेता कौन है? ”

“अविजीत जी, आप आजकल के नेताओं के बारे में पूछ रहे हैं या….. ”

“यार पहले तो तुम मेरा नाम ठीक से लो, अविजीत, मेरी मां मुझे इसी नाम से पुकारती है और मेरी कानों को भी यही सुनने की आदत है। मैंने तुमसे पूछा कि तुम्हें कौन नेता अच्छा लगता है और इसमें भी तुम टैग प्रश्न लगा रहे हो। ”

“मेजिनी”, नीलेश ने अविजित की आंखों में झांकते हुये कहा था।

नीलेश के मुंह से उसके पसंदीदा नेता का नाम सुनते ही अविजीत थोड़ी देर के लिए अपनी कुर्सी से उछल कर खड़ा हो गया था, लेकिन फिर अपने आप को संयमित करते हुये पूछा था, “ तुम तो इटली पहुंच गये।  जो लोग भारत में अंग्रेजी बोलते हैं, या फिर अंग्रेजी कल्चर को लीड करते हैं क्या उन्हें यहां से भगा देना चाहिये? ”

“नहीं, जिसका जिस भाषा में मन करे बात करे, ये व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह किस भाषा में सहजता से बात कर सकता है।”

“मेरे पास क्यों आये हो। यदि कोई प्रोबल्म लेकर आये हो तो सोल्यूशन भी तुम्हें ही देना होगा। इस देश की सबसे बड़ी समस्या है कि हर व्यक्ति के पास कुछ न कुछ समस्या है, लेकिन सोल्यूशन नहीं है। इसलिये बिना सोल्यूशन वाले प्रोब्लम को मैं अटेंड नहीं करता हूं। खैर बोलो क्या बात है?,”

“यहां से दैनिक जागृति में खबरे भेजने में परेशानी होती है, मैं चाहता हूं दैनिक जागृति का साफ्टवेयर यहां के किसी एक कंप्यूटर में डलवा दूं। इंजीनियर को मैंने बुला लिया है, अब बस मुझे एक कंप्यूटर चाहिये।”

“न्यूज रुम में बहुत सारे कंप्यूटर हैं. जिस पर  मन करे डलवा लो. कोई कुछ बोले तो उसे मार कर भगा देना, और मेरे पास कभी किसी की शिकायत लेकर नहीं आना. अब तुम जा सकते हो, किसी दिन फुरसत मैं रहूंगा तो तुमसे बात करूंगा.”

अविजित साही के चेंबर से बाहर निकलने के बाद न्यूज रूम में नीलेश की नजर कुछ देर तक इधर उधर दौड़ती रही. स्टूडियो से सटे एक बड़े से डेस्क को उसने टारगेट करते हुये इंजीनियर से वहां रखे एक कंप्युटर में साफ्टवेयर डालने को कहा। बाद में उसी डेस्क पर उसने अपने लिए एक पोर्टबल टीवी और एक फोन भी खींच लाया था।

चमकते हुये न्यूज रूप का वह कोना करीब ढेढ़ साल तक उसके पत्रकारिता गतिविधियों का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा था। न्यूजरूम की हर गतिविधि उसके आंखों के सामने होती थी, और वहां काम करने वाले सारे रिपोटरों की कोशिश होती थी कि उनकी खबरें दैनिक जागृति में भी छपे, इसलिये वे व्यक्तिगत रुप से उसके साथ गुड टर्म बनाये रखते थे।

कुछ समय बाद उसने दैनिक जागृति के वायर का इस्तेमाल करते हुये चैनल 11 के स्क्राल पर स्थानीय खबरों का फ्लो भी बढ़ा दिया था। दैनिक जागृति के देश के दूर दराज के कस्बों के रिपोर्टर भी नीलेश के संपर्क में आ गये थे। नीलेश की वजह से क्राइम की अमूमन सारी खबरों में चैनल 11 देश के अन्य चैनलों से आगे रहता था। यहां तक कि क्राइम पर बनने वाले विशेष प्रोग्राम में भी अधिक नीलेश की तलाशी हुई खबरें ही होती थीं।

लंबे समय तक काम करने के दौरान थकान महसूस होने पर वह न्यूजरूम की ठंडक में अपने बड़े से डेस्क पर ही सिर रखकर एक छोटी सी छपकी ले लेता था।

“ओतना देर से खबरे भेजी थे रे, अब हटबे की न, ” कान के पास ही एक रिपोर्टर के चिल्लाने की आवाज से नीलेश को ऐसा लगा मानों अचानक किसी ने उसके दिमाग पर एक जोर का हथौड़ा मार दिया हो। आंख खोलने पर उसने अपने आप को एक बार फिर कंट्री लाइव चैनल के उस छोटे से दरबे में पाया, जहां लोगों के पसीने की बदबू एक दूसरे के नथूनों से टकरा रही थी। वहां से निकलने की तीव्र इच्छा उसके अंदर जोर मारने लगी और बिना कुछ कहे सिर झुकाये अपनी कुर्सी से उठकर बाहर की ओर निकलने लगा। गली से निकलने के दौरान उसने एक नजर स्टूडियो में डाली, जहां तेज रोशनी से जूझते हुये सुमित अपने लाल-लाल आंखों से कागज पर प्रिंट किये हुये शब्दों को कैमरे के सामने पढ़ने की कोशिश कर रहा था।

18.

बाहर रिस्पेशन के पास खाली जगह देखकर नीलेश थोड़ी देर के लिए वहीं बैठ गया। रिस्पेश्निस्ट कृति एक छोटे से डेस्क के पीछे लगी एक कुर्सी पर बैठकर गृह शोभा में छपी कोई कहानी पढ़ रही थी। वह दुधिये रंग की एक खूबसूरत महिला थी। उसके होठों पर हमेशा मुस्कान रहता था जिस देखकर यह आभास होता था कि उसकी आंखे भी मुस्करा रही है।

नीलेश को इस तरह से अकेले बैठे देखकर उसने पूछा, “क्या हुआ सर, काम करने में मन नहीं लग रहा है क्या? ”

“अंदर बैठने पर उल्टी सी होती है। मेरा तो सिर ही घूम रहा है, ” नीलेश ने जवाब दिया।

“आपको पता है सर यह मीडिया में मेरी पहली नौकरी है। यहां ज्वाइन करते वक्त मुझे बहुत खुशी हुई थी। लेकिन अब देखती हूं कि मीडिया के लोग बहुत गाली देते हैं। रिपोटर तो बिना गाली की बात ही नहीं करते हैं। मैंने तो सबको मना कर रखा है कि मेरे सामने कोई गाली नहीं देगा। इसके पहले आप कहां काम करते थे? ”

“मैं दिल्ली में था।”

“तो आप यहां क्यों चले आये?”

“इच्छा हुई कि बिहार में चल कर काम करूं। आप कहानियां खूब पढ़ती हैं?”

“मुझे खाली बैठना अच्छा नहीं लगता, इसलिये कुछ पढ़ती रहती हूं और वैसे भी खुद को इंप्रूव करते रहना चाहिये।”

“अच्छी बात है। टाइपिंग आती है?”

“नहीं।”

“तो आप सीख लिजीये, काम देगा।”

“चाहती तो हूं सर, लेकिन सीखू कहां। यहां कंप्यूटर तो खाली रहता ही नहीं है,” कृति ने कहा।

“तुम यहां हो, मैं तुम्हें अंदर खोज रहा हूं,” अंदर से निकलते हुये सुकेश ने नीलेश की तरफ देखते हुये कहा।

“अंदर सब मछली बाजार बनाये हुये है, हेडक होने लगा, ” नीलेश ने जवाब दिया।

“चलो बाहर चाय पीते हैं।”

थोड़ी देर बाद दोनों बाहर सड़क के दूसरी ओर एक चाय की दुकान में बैठे हुये थे।

“तुम्हें स्टूडियो में वैसे रियक्ट नहीं करना चाहिय था, ” चाय की चुस्की लेते हुये सुकेश ने कहा।

“तो कैसे रियेक्ट करता ? आप अमानवीय तरीके से थोड़े ही किसी से काम ले सकते हैं? यहां हम काम क्या करेंगे, यहां तो बेसिक सुविधायें भी नहीं है, टेली प्राम्टर तो होना ही चाहिये।”

“होना तो बहुत कुछ चाहिये, लेकिन वह हमलोगों की चिंता नहीं है। जो काम हमें दिया जाता है वह करके दे देना है।”

“ प्रोग्राम बनाने के लिए जिले से जो फीड आ रहे हैं उन्हें आपने देखा है?”, नीलेश ने पूछा।

“नहीं, क्यों?”

“जिस कैसेट से गांव में शादी ब्याह को शूट किया जाता है उन्हीं का इस्तेमाल रिपोटर कर रहे हैं। कैसेट में शादी और न्यूज दोनों हैं और कैसेट इतनी बार चल चुकी है कि उसकी क्वालिटी भी खराब हो गई है, प्रोग्राम क्या खाक बनेगा।”

“अभी कुछ देर में भुजंग के साथ मीटिंग है प्रोग्रामिंग को लेकर, चाय खत्म करो और अंदर चलो। लेकिन मीटिंग में ज्याद बोलने की जरूरत नहीं है, बस सुनना है। यहां पर मूल सुविधाओं को लाने की जिम्मेदारी भुजंग पर है, हमलोगों का इन सब से कोई मतलब नहीं है।”

“ठीक है मैं कुछ बोलूंगा नहीं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि इस परिस्थिति में यहां पर ज्यादा दिनों तक काम किया जा सकता है,” नीलेश ने सुकेश की ओर देखते हुये कहा।

जारी….

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here