बाइट प्लीज (उपन्यास- भाग 10)

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करीब आधे घंटे बाद नीलेश, सुकेश, रंजन, तृष्णा, मानसी, सुमन, सुमित और शिव भुजंग के दरबे में बैठे हुये थे। टेबल पर लगे कंप्यूटर के बगल में स्टील की एक बड़ी सी चुनौटी पड़ी हुई थी। भुजंग बड़े आराम से अपनी हथेलियों पर खैनी मल रहा था। उसके बाल मोटे और खड़े-खड़े से था और बोलने के दौरान अपने होठों को कई तरह से नचाता था और वाक्य समाप्त करने के पहले नीचले होठ को कुछ चौड़ा कर देता था।

“मैं चाहता हूं कि कुछ नया प्रोग्राम बने, इसलिये सोचा कि आप लोगों के साथ विचार–विमर्श कर लिया जाये। खबर लोग कितना देखेंगे, असल चीज तो प्रोग्राम होता है,” भुजंग ने कहा।

“फिलहाल एक प्रोग्राम के लिए तो ठीक से संसाधन जुट ही नहीं रहा है। हमारे पास खराब कैसेटो में फीड आ रहे है, स्टूडियो में टेली प्राम्पटर तक नहीं है,” नीलेश ने कहा।

“इन सब चीजों से क्या होता है, हौसला बुलंद रहना चाहिये। प्रोग्राम की तो झड़ी लगा देंगे। एक ब्यूटी टिप्स पर प्रोग्राम चाहिये, उसकी एंकरिंग तृष्णा करेगी। एक हेल्थ का कार्यक्रम बनेगा, इसे मानषी हैंडल करेगी और सुमन कार्डिनेट करेगी।  ”, खैनी को अपनी होठों में दबाते हुये भूजंग ने कहा और तृष्णा पर भूरपूर नजरें डाली,  “क्यों तृष्णा ठीक है ना?”

“मैं युवाओं पर आधारित एक प्रोग्राम करना चाहती थी, जिसमें डायरेक्ट उनके सवालों का जवाब देती और उनसे सवाल पूछती, जैसे उनका लाइफ स्टाइल क्या है, वे क्या पसंद करते हैं, क्या करना चाहते हैं, ” कंधे पर फैले अपने बालों को झटकते हुये तृष्णा ने कहा।

“फिलहाल तो तुम ये ब्यूटी वाला प्रोग्राम करो, इस प्रोग्राम का नाम होगा चेहरा जैसे चांद खिला है ?  हमलोग एक और बोल्ड ग्राम बनाएंगे, भोजपूरी फिल्मों के गानों को लेकर। उसमें बहुत कुछ दिखाने का मौका मिलेगा। इस प्रोग्राम का नाम होगा मैं अश्लील नहीं हूं, लेकिन पूरी अश्लीलता दिखा देंगे, साथ में भोजपूरी फिल्मों से जुड़े लोगों को भी इसमें शामिल करेंगे,” भुजंग अपने पूरे रंग में आ गया।

“भोजपूरी फिल्मों में तो वैसे ही अश्लीलता भरी होती है और उसी अश्लीलता को हम टीवी पर परोसेंगे। क्या यह उचित है?”

रंजन ने पूछा।

“देखिये मार्केट में धूम मचाना चाहते हैं तो यह सब करना पड़ेगा और फिर हम अपने प्रोग्राम का नाम ही रख रहे हैं कि मैं अश्लील नहीं हूं। वैसे आप लोगों के दिमाग में भी कुछ है तो बताइये, उस पर विचार किया जाएगा,” भूजंग के चेहरे पर नाराजगी, उसे ऐसा लगा था उसके अब तक के बेहतरीन आइडिया पर रंजन ने उंगली उठा दी थी।

“मैं लोगों से जुड़ा हुआ प्रोग्राम बनाना चाहता हूं, हमारी भी सुनिये, प्रत्येक वार्ड के गली मुहल्लों में जाकर इसकी शूटिंग करेंगे और फिर किसी नुक्कड़ पर मजमा लगा के लोगों से बातचीत करेंगे,” सुमित ने कहा।

“इस तरह के प्रोग्राम को लोग देखते हैं, और सबसे बड़ी बात यह है कि इससे चैनल का बेहतर प्रचार प्रसार भी होता है, लोग सीधे तौर पर चैनल से जुड़ते हैं,” रंजन ने जोर सुमित के पक्ष में जोर देते हुये कहा।

“ठीक है इस पर भी काम कीजिये, मैं चाहता हूं कि एक फिक्शन भी बने, सामाजिक समस्या को लेकर। इस पर भी कुछ सोचिये । मेरे दिमाग में एक आइडिया है। पहला एपिसोड हम एक कामकाजी महिला पर बनाएंगे। कैसे वह बाहर काम करते हुये घर की समस्याएं फेस करती हैं, कैसे उसका लड़का अकेले रहता है। नीलेश जी, इस थीम को दिमाग में रखकर आप एक स्क्रीप्ट लिख दीजीये,” अपने आइडिया को रखते हुये भुजंग के चेहरे पर उत्साह झलक रहा था।

“इसको शूट कहां करेंगे और कलाकार कहां से लाएंगे ? इसके लिए अलग से एक बजट की जरूरत होगी। स्क्रीप्ट लिखना बड़ी बात नहीं है ”, नीलेश ने कहा।

“पैसों की चिंता आप मत किजीये, मैं रत्नेश्वर सिंह से बात कर लूंगा। अब बेहतर प्रोग्राम बनाएंगे तो उस पर खर्चा तो आएगा ही। इसके अलावा आप लोग भी कुछ और कंसेप्ट दीजिये। जो बेहतर होगा उस पर काम किया जाएगा,” भुजंग ने बेहतर शब्द पर जोर देते हुये कहा।

“सर, मैं कुछ इंडिपेन्डेंट करना चाहती हूं। इन दोनों के प्रोग्राम में मैं मदद करूंगी ही, लेकिन मैं चाहती हूं कि इसके अलावा एक प्रोग्राम मैं भी बनाऊं,” भुजंग की तरफ देखते हुये सुमन ने कहा। सुमन का चेहरा बच्चों जैसा था, लेकिन शरीर अमान्यतौर पर फूला हुआ था।

“आप लोगों को भरपुर मौका मिलेगा, अभी जितना कहा है उतना किजीये।”

कुछ देर तक इधर उधर की बात होने के बाद मीटिंग भंग कर दी गई। उस कबूतर खाने से बाहर निकलते ही रंजन ने धीरे से सुकेश के कान में कहा, “ये आदमी तो किसी भी तरह से जर्नलिस्ट दिखता ही नहीं है। केवल भांड वाला प्रोग्राम बनवा रहा है। रत्नेश्वर सिंह किसी भी प्रोग्राम पर एक भी पैसा खर्च करने वाले नहीं है, मुझे पता है। जो भी करना है इसी में करना है। इधर यह प्रोग्राम का बाजा बजा रहा है और उधर महेश सिंह न्यूज का. ”

20.

महेश सिंह की आंखे बिलार की तरह चमकती थी, और दिमाग से भी पूरी तरह बिलार ही था। लोगों को रौब में लेने की लिए वह किसी भी सीमा तक चला जाता था, इसका परवाह किये बिना कि सामने वाले पर इसकी क्या प्रतिक्रिया हो रही है। उसका दबदबा रिपोटरों और कैमरा मैन पर पूरी तरह से स्थापित हो चुका था, हालांकि कुछ रिपोटर अंदर खाते उसके कट्टर विरोधी भी होते जा रहे थे, खासकर उसके गाली गलौच करने को लेकर। रिपोटरों के साथ उसका व्यवहार ईंट भट्टा में काम करने वाले ठेकेदार और मजदूरों जैसा था, हालांकि संगठित होने की वजह से ठेकेदार भी मजदूरों के साथ गाली-गुप्ता करने की हिम्मत नहीं कर पाता है।

लंबे कद और चौकर चेहरे वाला वाला रिपोटर महादेवा तो महेश सिंह के व्यवहार से खासा नाराज था। दिल्ली में रहकर लंबे समय तक उसने यूपीएससी की तैयारी की थी। वहां मिली असफलता के बाद कुछ दिनों तक वह डिप्रेशन में चला गया था। फिर अपने को संभालते हुये उसने पत्रकारिता की दुनिया में कदम रखा और पलामू से एक रिपोटर के तौर पर उसने नये कैरियर की शुरुआत की। बेहतर समझ और खबरों के प्रति गंभीर होने की वजह से जल्द ही उसकी पहचान बन गई थी। फिर उसे पटना में कंट्री लाइव चैनल में आने का मौका मिला तो उसे लगा कि यहां रहकर वह और बेहतर कर सकेगा। लेकिन जिस अंदाज में महेश सिंह रिपोटरों को हांक रहा था उसे देखते हुये महादेवा अपने आप से सवाल करने लगा था कि कहीं यहां आकर उसने गलती तो नहीं कर दी।

पत्रकारिता की दुनिया में किसी एक सवाल से ज्यादा देर तक जुझने का मौका किसी को नहीं मिलता है। खबरों के दबाव में वाजिब सवाल भी दफन हो जाते हैं। महादेवा की कोशिश होती थी कि महेश सिंह के सामने पड़े बिना ही उसका दिन ठीक से निकल जाये। अपने बीट की खबरों को लेकर वह खासा सतर्क रहता था ताकि महेश सिंह के साथ मुठभेड़ की स्थिति न बने। उसके खाते में विपक्ष की कुछ पोलिटिकल पार्टियां थी।

पटना में कदम रखने से पहले उदित भी बिहार के एक जिले में रह कर लंबे समय से इलेक्ट्रानिक मीडिया की पत्रकारिता कर रहा था। उसकी आंखे भूरी थी और हर समय वह अलसाया सा रहता था, जैसे रात में किसी ने उसे निचोड़ दिया हो। जिले स्तर की पत्रकारिता की सारे गुर उसने सीख लिये थे, खबरों से लेकर एड मैनज करने की कला में वह दक्ष था। इसके अलावा उसे इस बात में पक्का यकीन था कि पत्रकारिता की दुनिया में आगे बढ़ना है तो बौस से कभी पंगा मत लो। अपने लचीले व्यवहार से उसने महेश सिंह को यह यकीन दिला दिया था वह उसके लिए खतरानक नहीं हो सकता है। महेश सिंह की गालियां खाने के बावजूद वह हमेशा मुस्कराते रहता था, हालांकि अपने छोटे ओहदे के लोगों के साथ बात करने के दौरान उसकी यह प्रवृति पूरी तरह से बदल जाती थी। एक हद तक वह धौंस की मुद्रा अख्तियार कर लेता था। इसके साथ ही संगठन में अपने से बड़े ओहदों पर बैठे तमाम लोगों के साथ वह व्यक्तिगत ताल्लुकात बढ़ाने की जुगत में रहता था। यहां भी माहुल वीर, भुंजग, नरेंद्र श्रीवास्तव और महेश सिंह को यह अहसास कराने में एक हद तक सफल हुआ था कि वह उनके लिए कुछ भी करने को तैयार है। यही वजह थी कि उसे सचिवालय ओर जदयू जैसे महत्वपूर्ण बीट मिल गये थे।

क्राइम रिपोटर अजय की पूरी निष्ठा महेश सिंह के प्रति थी। उसके मुंह से हर वक्त या तो शराब की बदबू आती थी या फिर गुटखा की। उसकी लाल-लाल आंखों को देखकर लगता था कि वह पिछले कई वर्षों से ठीक से सोया नहीं है।  उसे कंट्री लाइव में लाने का श्रेय महेश सिंह को ही था। इसके पहले वह पटना से निकलने वाले पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ कुछेक केबल न्यूज चैनल में क्राइम रिपोटर के तौर पर काम कर चुका था। शहर भर के रिपोटरों के बीच वह शराबखोरी के लिए कुख्यात था और एक बार शराब पीने के बाद खुद को भूल कर किसी भी सीमा तक जाने के लिए तैयार रहता था। वैसे होश में रहने पर ओहदे के अनुसार सामने वाले व्यक्ति की वह खूब कद्र करता था। वह खुद कहता था, “क्राइम रिपोटर दारू नहीं पीयेगा तो काम ही नहीं चलेगा। क्राइम रिपोटर और मुर्दाघर में काम करने वाले डोम का काम एक जैसा है। दोनों दिन भर लाश ही गिनते रहते हैं। ” पटना में लंबे समय तक रहने की वजह से शहर में मौजूद तमाम रिपोटरों के बीच उसकी नेटवर्किंग अच्छी थी। कोई खबर छूटने की स्थिति में वह मैनेज कर लेता था। महेश सिंह भी उसे अपनी टीम का एक मजबूत स्तंभ मानता था।

रिपोटर धनंजय सिंह की रूचि राजनीति में अधिक थी। उसका शरीर थुलथुल था और गालों पर बेतरतीब तरीके से दाढ़ियां उगी हुई थी। राजनीतिज्ञ बनते-बनते घर गृहस्थी का बोझ आने पर वह पत्रकार बन गया था, लेकिन राजनीतिक महत्वकांक्षा आज भी उसके मन में कुलांचे मारती थी। भविष्य में चुनाव लड़ने की बात वह बार-बार कहता था। उसे भी राजनीतिक बीट ही मिले हुये थे, जिन्हें वह अपने तरीके से कवर करता था। धीरे-धीरे वह भी महेश सिंह की गालियों का अभ्यस्त हो गया था।

माहुल वीर का साला होने की वजह से तमाम रिपोटरों के बीच  भूपेश की एक अलग पहचान तो बनी ही हुई थी, इससे महेश सिंह को उसे गाली देने का लाईसेंस भी पूरी तरह से हासिल हो गया था। उसका रंग पूरी तरह से काला था, जिसकी वजह से उसके दांतों की चमक कुछ और निखर जाती थी। महेश सिंह ने उसे संस्थान का सार्जनिक साला बाना दिया था। अन्य लोग भी उसके साथ इसी रूप में चुटकी लेते थे। ऊंची आवाज में हर बात में उसे अपनी अधकचड़ी जानकारी उड़ेलने की आदत थी। अपने मन मुताबिक कोई काम न होने पर कभी-कभी वह असामान्य रूप से जोर-जोर से चिल्लाने लगता था। चूंकि वहां काम करने वाले यह जानते थे कि वह माहुल वीर का साला है, इसलिये उनकी यही कोशिश रहती थी इससे पंगा न हो। वह दुनिया के उन सौभाग्यशाली लोगों में शामिल था, जो अपने जीजा के रुतबे से अपनी जिंदगी का भरपूर लुत्फ उठाते हैं, खासकर अपने जीजी के बदौलत किसी संस्थान में नौकरी पाने के बाद। अपनी योग्यता पर प्रश्न चिन्ह लगाने का हक वह किसी को नहीं देता था और वक्त पड़ने पर सांड़ की तरह किसी से भी उलझने को तैयार रहता था। वहां काम करने वाली तमाम महिला कर्मचारियों में उसकी खास आशक्ति थी और उसे जब भी मौका मिलता था, उन महिला कर्मचारियों का चित्रण बड़े वीभत्व तरीके से करता था। हालांकि सामने रहने पर उसकी कोशिश अपने आप को पूरी तरह से एक सभ्य प्राणी दिखाने की होती थी। गालियां निकालने के मामले में वह महेश सिंह से भी चार कदम आगे था।

सूखे गालों वाला कैमरा मैन अंजनी पूरी तरह से हनुमान भक्त होने का दावा करता था, अध्यात्म में उसकी खास रुचि थी। वह हमेशा महिलाओं से दूरी बनाये रखने की बात करता था, लेकिन महिलाओं का साथ उसे बेहद पसंद था। हर वक्त वह महिलाओं के करीब ही बैठने की जुगत में रहता था और विभिन्न मामलों पर उनसे खुलकर बातें भी करता था। कैमरे पर उसका हाथ सधा हुआ था और भागदौड़ करने में भी वह आगे रहता था। सामने वाले व्यक्ति को भरपूर सम्मान देना उसकी सबसे बड़ी खासियत थी, जिसके कारण न सिर्फ रिपोटर बल्कि वहां काम करने वाले अन्य लोग भी उसे पसंद करते थे। माहौल को देखते हुये महेश सिंह की टीम में वह भी अपने को पूरी तरह से फीट कर चुका था।

कैमरा मैन प्रकाश को लेकर कंट्री लाइव चैनल में थोड़ा उठा-पटक हुआ था। भुजंग प्रकाश को बिल्कुल पसंद नहीं करता था और उसने प्रकाश को बाहर का रास्ता दिखाने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन रत्नेश्रर सिंह से कह कर रंजन ने उसे बचा लिया था। कैमरा संभालने के बाद कुछ दिन तक वह रंजन के प्रति अपनी वफादारी दर्शाता रहा लेकिन भुजंग और महेश सिंह के बीच टशन शुरु होने के साथ ही वह खुलकर भुजंग का विरोध करते हुये पूरी तरह से महेश सिंह का साथ देने लगा। महेश सिंह के साथ चलने वाले दारू के दौर में उसकी महत्वपूर्ण मौजूदगी रहती थी। कैमरा वर्क में भी वह माहिर था। महेश सिंह के गुड बुक में वह शामिल था और  भुजंग के खिलाफ उसके हर षडयंत्र को व्यवहारिकतौर पर अंजाम तक पहुंचाने में जी जान लगा देता था।

तृष्णा को अधिक से अधिक स्क्रीन पर लाने की भुजंग की कोशिश होती थी और इसके लिए वह हमेशा किसी न किसी तरीके से जुगत में लगा रहता था। भुजंग के इरादे को प्रकाश ताड़ गया था। उसे जब कभी तृष्णा को शूट करने के मौका मिलता था, वह जानबुझकर कुछ ऐसी हरकत कर देता था कि तृष्णा अपसेट हो जाती थी और स्क्रीन पर उसका मूड बिगड़ा हुआ सा लगता था, हालांकि तृष्णा इन सारी बातों से पूरी तरह से अनजान थी। अपनी हरकतों की वजह से वह कई बार भूजंग से डांट भी सुन चुका था, लेकिन बाज नहीं आता था। उसके मुंह में हमेशा गुटखा होता था, जिसकी वजह से वह अक्सर चुप ही रहता था।

ज्योति की नियुक्ति स्टोर कीपर के रुप में हुई थी, लेकिन वह अपने आप को कैमरा मैन ही समझता था और शुरु से ही इस बात की पूरी कोशिश कर रहा था कि उसे संस्थान के अंदर कैमरा मैन के रूप में मान्यता मिल जाये। ज्योति की नियुक्ति में भुजंग ने अहम भूमिका निभाई थी, इसलिये ज्योति की पूरी निष्ठा भुजंग के प्रति थी। उस पर महेश सिंह का रंग नहीं चढ़ पा रहा था। ब्यूरो हेड के ओहदे पर काम करते हुये महेश सिंह एक सोची समझी रणनीति के तहत भुजंग को एक दायरे में कसने की कोशिश कर रहा था, और अपनी खामियों की वजह से भुजंग भी स्टेट हेड के अपने ओहदे के अनुकूल आचरण नहीं कर पा रहा था। दूर दराज के जिले के रिपोटर भी महेश सिंह के इशारे पर ही चल रहे थे। रांची में बैठकर माहुल वीर महेश सिंह को अपने तरीके से भुजंग के खिलाफ इस्तेमाल कर रहा था, क्योंकि माहुल वीर हर स्थिति में भुजंग को कमजोर बनाये रखना चाहता था। भुजंग को कमजोर करने का सीधा सा मतलब था संदीप सिंह को कमजोर करना जो दूर बैठकर कंट्री लाइव पर अपने तरीके से हुकूमत करने की जुगाड़ में था। हालांकि संदीप सिंह का सह लेकर भुजंग भी रत्नेश्वर सिंह की नजरों में अपना नंबर बढ़ाने की कोशिश जारी रखे हुये थे।

जारी….

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