बनारस की हर गली में मिल जाएंगे चुलबुल पांडे: अभिनव कश्यप

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दुर्गेश सिंह, मुंबई

अंधेरी के रेड बॉक्स कैफे का फ्लोर, दो क्लासिक माइल्ड की डिब्बियां लिए अभिनव कश्यप का प्रवेश। पूछे जाने पर एक में ऐश झाडऩे की बात बताई फिर शुरू हुआ बतकही का एक लंबा दौर: 

मुंबई में आए एक अर्सा बीत चुका है, टीवी पर बहुत काम किया। दोस्त बनाए और दोस्ती निभाई। तिगमांशु धुलिया के साथ राजधानी में काम किया था, जब तिशु हासिल शूट करने चले गए तो पूरी तरह से उसका जिम्मा मेरे ऊपर आ गया। पीयूष मिश्रा की प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुआ दिल्ली में। दूरदर्शन के लिए एक सीरियल में उनके साथ काम किया और एक कम पैसों वाला चेक दिया और बोला कि आपको बंबई में मैं साइन करूंगा। सुना है कि उन्होंने आज तक वो चेक संभाल कर रखा है। उनका बड़प्पन है। आज हमारी पत्नियां ही नहीं हमारे बच्चे भी बहुत अच्छे दोस्त हैं। किस्मत देखिए मैं नहीं लेकिन अनुराग ने उनको साइन कर लिया। गुलाल का रंग बहुत गहरा था, उड़ान भी देखी मैने। कमाल किया है भाई और मोटवानी ने। अनुराग की सफलता से खुशी होती है, इंडिपेंडेंट फिल्म मेकिंग में आज वह एक ब्रांड है। बचपन का ऐसा कोई गोल्डन मोमेंट याद नहीं आ रहा है जब लगा हो कि हम ऐसा कुछ करने जा रहे हैं। हम दोनों ने ही यहां तक पहुंचने में कड़ी मेहनत की है और सीख-सीखकर आगे बढ़े हैं। बुरे अनुभव भी रहे इस दरम्यान। 2003 में एक  कामेडी फिल्म बनने वाली थी कि मेटलाइट प्रोडक्शन हाउस की एक फिल्म फ्लॉप हो गई और मेरी कहानी आज तक हार्ड बाउंड ही रह गई। अब उस पर फिल्म नहीं बनाऊंगा क्योंकि वक्त बदल चुका है लोग बदल चुके हैं। अप्रासंगिक तो नहीं  है लेकिन अब उसको बदलने में काफी समय लग जाएगा। “दबंग “2006 में लिख ली थी। साथ के सब लोग फिल्म बना रहे थे। लगा कि निर्देशन करना चाहिए। वांटेड हिट होने के पहले ही सलमान खान को इस फिल्म के लिए साइन करने के बारे में सोच चुका था। क्योंकि चुलबुल पांडे का किरदार निभाने का माद्दा सिर्फ उन्हीं के पास था। जो खुराफात चुलबुल पांडे में है वो सलमान खान के अलावा किसी में नहीं है। चुलबुल नाम किसी बाहुबली के नाम से इंस्पायर्ड नहीं है। मेरे घर में एक बच्चे का नाम चुलबुल था जिसको देखकर ही मैंने लीड एक्टर का नाम चुलबुल रखा है। हां यह जरूर है कि वांटेड की सफलता के बाद से हमने कहानी के ट्रीटमेंट में कुछ बदलाव किए हैं। अब पांच फीसदी एक्शन दृश्यों की संख्या बढ़कर पच्चीस फीसदी हो गई है। एकाध बार हो सकता है कि आप कहीं न कहीं वांटेड से कनेक्ट कर लें लेकिन कहानी के स्तर पर वांटेड से दबंग का कोई लेना देना नहीं है। साऊथ के सीनियर स्टंट मास्टर एस विजयन को हमने दबंग के एक्शन सीन शूट करने के लिए हायर किया था। साठ दिन तक हमने इसके लिए कड़ी मेहनत की तब जाकर कहीं स्टंट सीन फिल्माए गए। वाई, सातारा और कर्जत के नितिन मनमोहन देसाई के स्टूडियों में की गई है शूटिंग। बाकी कई जगहों पर सेट्स भी लगाए हैं। दुबई के सबसे बड़े शॉपिंग मॉल में गाने की शूटिंग भी की है। संगीत का सुपरहिट होना पक्का है। वांटेड के गाने जितने लोकप्रिय हुए थे उससे अधिक दबंग के गाने होंगे। दबंग एक ड्रामा फिल्म है और ऐसा कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है। सोनाक्षी सिन्हा का काम देखकर आप उनकी क्षमता का अंदाजा लगा सकते हैं। बहुत आइडिया हैं दिमाग में बस एक बार दबंग रिलीज हो जाए सितम्बर के महीने में उसके सब एक के बाद एक एक्सप्लोर किए जाएंगे।

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