विलक्षण अभिनय प्रतिभा के धनी थे दादा मुनि

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छुपा लो यू दिल में प्यार मेरा , कि जैसे मंदिर में लौ दिये की
तुम अपने चरणों में रख लो मुझको तुम्हारे चरणों का फूल हूँ मैं …

भारतीय फ़िल्मी इतिहास में जब यहाँ बोलती फिल्मों का दौर शुरू हुआ उस वक्त अभिनय में काफी लाउडनेस हुआ करती थी।  इसके साथ ही उस वक्त रंगमंच का भी अच्छा  दौर था जिसके कारण पारसी रंगमंच के प्रभाव के कारण संवाद अदायगी पर काफी जोर दिया जाता था।  उस दौर में अशोक कुमार ” दादामुनि ” हिन्दी सिनेमा  में ऐसे कलाकार के रूप
में सामने आये जिनके अभिनय में सहजता और स्वाभाविकता थी । दादामुनि ने अपने अभिनय की क्षमता से भारतीय सिनेमा को एक  स्टारडम को नया आयाम दिया अशोक कुमार ने ऐसे तमाम सामाजिक और मनोरंजन पूर्ण फिल्में दी जो उस समय के काल परिस्थितियों की कुरीतियों पर जबर्दस्त चोट करती हैं और उनसे उबरने का सकेत और दिशा प्रदान करती हैं । तक्षशिला वर्तमान में बिहार के भागलपुर में गंगा के तट पर स्थित आदमपुर मुहल्ले में 13  अक्तूबर 1911 को जन्में कुमुद लाल गांगुली उर्फ़ अशोक कुमार ने हिन्दी सिनेमा को एक नया आयाम देते हुए अपने को किसी इमेज में नहीं बंधने दिया और उस वक्त के नायक को नई छवि दी | ऐसे वक्त में जब हीरो को अच्छाई का प्रतीक समझा जाता था ,  उस समय उन्होंने ” फिल्म ”  किस्मत में एंटी हीरो की भूमिका निभाते हुए उस दौर के प्रचलित मान्यताओं को खारिज कर दिया।  उन्होंने ऐसे दौर में अभिनय को सम्मानजनक स्थान दिलाया जब फिल्मों को सम्मान की नजरों से नही देखा जाता था।  अपनी विलक्षण प्रतिभा से कई पीढ़ी के दर्शकों के दिलो पर राज करने वाले अशोक कुमार की रूचि अभिनय में नहीं थी वह फिल्म के तकनीकी पक्ष से जुड़ना चाहते थे लेकिन किस्मत ने अभिनय के क्षेत्र में ला खड़ा किया और उन्होंने अभिनय को इस कदर अपने अंदर आत्मसात कर लिया  कि उनके अभिनय का जादू लोगों के सर पर चढ़कर बोलने लगा। ” अशोक कुमार के  कैरियर की शुरुआत बाम्बे टाकिज से हुयी वो उस वक्त एक तकनीशियन थे। उनके हीरो बनने का क़िस्सा कुछ यू है ,  एक बार देविका रानी के एक हीरो नजीमुल हुसैन सेट से भाग गये थे । जिस वजह से बाम्बे टाकिज के मालिक हिमांशु राय को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा उसके बाद हिमांशु राय ने अशोक कुमार को देविका रानी का हीरो बना दिया।  देविका रानी और अशोक कुमार की जोड़ी खूब जमी। ”अछूत कन्या ” में इन दोनों के अभिनय को लोगों ने खूब सराहा। उस वक्त देविका रानी फ़िल्मी दुनिया की सफल नायिका थी।  इस फिल्म में अशोक कुमार का आत्मविश्वास देखते ही बनता है और कही से यह प्रतीत नहीं होता है कि एक स्थापित नायिका के सामने एक नवोदित अभिनेता है। अशोक कुमार और देविका रानी ने ” सावित्री ” निर्मला और इज्जत में भी साथ – साथ काम किया। बाम्बे टाकिज कि फिल्म ” किस्मत ” अशोक कुमार के लिए मील का पत्थर साबित हुई। ज्ञान मुखरी द्वारा निर्देशित ” किस्मत ” हिन्दी सिनेमा की बहुचर्चित फिल्मों से एक है।  एक ओर इसमें नायक अशोक कुमार एंटी हीरो की भूमिका में थे वही कवि प्रदीप के गीतों में राष्ट्रवाद भी परोक्ष रूप से परिलक्षित हो रहा था।  यह फिल्म जब प्रदर्शित हुई,  उस समय दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था और ब्रिटेन युद्ध में जर्मनी एवं जापान जैसे देशों से जूझ रहा था।  इस फिल्म का एक गीत ” दूर हटो ऐ दुनियावालों हिन्दुस्तान हमारा है …” काफी सफल सिद्ध हुआ।  इसी गीत में आगे जर्मन और जापान का भी जिक्र आता है । दरअसल अंग्रेजों की सख्त सेंसरशिप से बचने के लिए उन दोनों देशों का नाम लिया गया था और इसमें परोक्ष रूप से अंग्रेजों से भी भारत छोड़ कर जाने की  बात कही गयी थी।  इसके बाद अशोक कुमार की एक और चर्चित फिल्म ” महल ”  आई जिसमें उन्होंने अपेक्षाकृत नई अभिनेत्री मधुबाला के साथ काम किया।  अशोक कुमार ने उस वक्त की ट्रेजडी नायिका मीना कुमारी के साथ भी सफलता पाई। उन्होंने  मीना कुमारी के साथ ‘ पाकीजा ,  बहू बेगम , आरती में काम किया इसके साथ ही चलती का नाम गाड़ी ,  आशीर्वाद , आदि शामिल है। अशोक कुमार सिर्फ एक गंभीर कलाकार ही नहीं थे बल्कि उन्होंने कामेडी की दुनिया में अपने को स्थापित किया था।  उम्र के बधने के साथ ही अशोक कुमार ने चरित्र भूमिकायें निभानी शुरू कर दी।  इन भूमिकाओं में भी उन्होंने अपनी अलग छाप छोड़ी।  उन्होंने कुछ एक फिल्मों में विलेन की भूमिका की।  ऐसी ही एक चर्चित फिल्म ज्वैल थीफ थी।  इसका कथानक ऐसा था जिसमें आखरी क्षण तक दर्शकों को यह पता नहीं  लग पाता कि अशोक कुमार ही विलेन की भूमिका में हैं।
अशोक कुमार ने  दूरदर्शन धारावाहिकों में भी काम किया देश के पहले सोप ओपेरा ” हम लोग ” में वह सूत्रधार की भूमिका में नजर आये।  और चर्चित धारावाहिक ” बहादुरशाह जफर में उन्होंने वृद्ध हो चुके बादशाह की अविस्मर्णीय भूमिका अदा करके  अपने को मील का पत्थर साबित कर दिखाया।  दादामुनि बहुमुखी प्रतिभा के धनी  थे जिनके शौक में पेंटिंग बनाना और होम्योपैथिक के डाक्टर भी थे दादामुनि। अशोक कुमार ने ममता फिल्म में वो गीत ” छुपा लो यूं दिल में प्यार मेरा कि  जैसे मंदिर में लौ दिए की… उनका यह गीत जीवन के प्रेम का अदभुत दर्शन दे जाता है।  आज उनका जन्मदिन है इस अवसर पर हम उनको शत शत नमन करते हैं।

………………………..सुनील दत्ता ..पत्रकार

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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