FDI :आखिर विरोध कहां है, किसका है ?

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सुनील दत्ता//

    • ( फुटकर दुकानदारी में विदेशी कम्पनियों को छूट , जैसी नीतियों और सुधारों के संदर्भ में )

      फिर खुदरा व्यापार में छूट देने के लिए तो अमेरिका व अन्य विकसित साम्राज्यी देशों की सरकारे पिछले दो — तीन सालों से चौतरफा दबाव डालती आ रही हैं | सत्ता पक्ष व विरोध पक्ष के नेताओं से इस संदर्भ में बातचीत करती रही है | इनके अलावा देश की धनाढ्य कम्पनियां भी अपने विदेशी सहयोगियों के लिए फुटकर दुकानदारी में छूट के अधिकार की माँग करती आ रही हैं |

      फुटकर दुकानदारी में विदेशी निवेश को छूट के साथ अन्य नीतिगत सुधारों की घोषणाओं के लिए केन्द्रीय सरकार और प्रधान मंत्री की हिम्मत को दाद दी जा रही है | प्रचार माध्यमो में आम तौर पर प्रधान मंत्री द्वारा देर से लेकिन मजबूती से उठाये कदम को सराहा जा रहा है | उद्योगपति और उनके सगठनों द्वारा खुलकर और पूरी तरह से सरकार के समर्थन में बयान न दे रहे हैं | विदेशी धनाढ्य हिस्सों व प्रचारों ने खासकर अमेरिका के संचार पत्रों एवं उद्योग समूहों ने भारत सरकार द्वारा खुदरा और विमानन क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी  निवेश की मंजूरी को पिछले दो दशको में सबसे बड़ा सुधार बताया है |

      विपक्ष के नेताओं ने विरोध व्यक्त किया है | दर असल उन्होंने विरोध नही किया है , बल्कि विपक्ष होने की मजबूरी गाया है | फिर उनका थोड़ा भूत प्रदर्शित होने वाला यह विपक्षीय विरोध तो ” भारत बंद ” के आयोजन के साथ ही लगभग समाप्त हो गया है | रहा सहा जुबानी विरोध भी जुबानी विरोध तक ही सिमट कर हवा हो गयी है | ठीक उसी तरह जैसे कोयला खदानों के आवंटन में घपले — घोटाले को लेकर संसद के पूरे मानसून सत्र  में मचा हल्ला,  हंगामा तथा भाजपा द्वारा प्रधानमन्त्री के इस्तीफे की माँग आदि,  सरकार द्वारा डीजल मूल्य वृद्धि , गैस सिलेन्डर की नियंत्रित मूल्य वृद्धि तथा इन नीतिगत सुधारों की नई घोषणाओं के साथ हवा हो गया है | जब राजनीतिक पार्टियों एवं गैर राजनीतिक संगठनों से लेकर आम समाज के पढ़े लिखे माध्यम वर्गीय हिस्से के वर्षो से पसंदीदा बने आर्थिक भ्रष्टाचार के मामलो को प्रचार माध्यम के  झोकों से फैलाया और फिर उड़ाया जा सकता है तो सरकार के नीतिगत फैसलों की चर्चा तो फिलहाल और भी टिकने वाली नहीं है | क्योंकि उसे लेकर कोई भी पार्टी संगठन टिकने या अनशन — आन्दोलन करने वाला नही है | फिर वह इसलिए भी टिकने वाली नही है, क्योंकि उसके समर्थन में देश — दुनिया के धनाढ्य वर्ग व कम्पनिया तथा उनके प्रचार माध्यमी सेवक समर्थक मजबूती से और काफी पहले से डटे हुए हैं | लम्बे समय से नीतिगत सुधारों को आगे बढाने की माँग करते रहे है | देश की तीव्र आर्थिक वृद्धि के लिए इसे अत्यंत आवश्यक बताते रहे है | अगर विपक्षी पार्टिया इन मुद्दों को लेकर अपनी विपक्ष की ( न कि विरोध की ) राजनीति करती कुछ दिखाई भी पड़ रही है तो भ्रष्टाचार विरोधी जनहितैषी  संगठनों की तो कही – कही कोई आवाज सुनाई नही पड़ रही है | आम समाज का  सुशिक्षित हिस्सा तो पहले से ही नीतिगत मामलों पर आम तौर से शाँत बना रहता है | शाँत रहकर उन नीतिगत नीतियों से अपने निजी या अपने वर्गीय फायदे  नुक्सान का आकलन करता रहता है |
      अगर इन स्थितियों के वावजूद देश में फुटकर दुकानदारों, व्यापारियों को विपक्षी पार्टियों द्वारा किये जा रहे  विरोध से कहीं कोई उम्मीद हो तो उन्हें नीतिगत सुधारों के पिछले 20 सालो के अनुभवों से सबक लेना चाहिए | इन 15 – 20 सालो के के अनुभव हमारे सामने है | 1991 में शुरू किये गये नीतिगत बदलावों – उदारवादी , विश्ववादी , निजीवादी , कहे जाने वाले बदलावों के विरोध में विरोधी पार्टियों ने देश इस पर विदेशी प्रभुत्व व गुलामी के खतरे के साथ आम जनता के शोषण लूट के बढ़ने  का भी खतरा बताया व प्रचारित किया था | इसे बताते हुए प्रमुख विपक्षी पार्टियों ने कुछ दिनों में ही वह विरोध भ्रष्टाचार और मन्दिर – मस्जिद आदि के विवादों में हवा –  हवाई हो गया | फिर 1996 — 97 तक आते – आते तो  सारी पार्टियां उन्हीं नीतियों को आर्थिक सुधार कह कर लागू करने में लग गयी |  उसे आगे बढ़ाने में जुट गयी | इन सुधारों के अगले चरण के साथ खड़ी हो गयी | अगर किसी पार्टी/ पार्टियों ने उन नीतियों का जबानी और यदा कदा प्रचार  माध्यमी विरोध जारी रखा तो केन्द्रीय शासन सत्ता में चढकर या उसका समर्थक व साझीदार बनकर अथवा प्रांतीय सरकारों में चढ़कर उन नीतियों को लागू करने का ही काम किया | उन नीतियों के कुछ मुद्दों से अपना विरोध जताते हुए भी उसे आगे बढाने की प्रक्रिया को जारी रखने का काम किया |
      अब नये घोषित  नीतिगत सुधारों के बारे में भी यही होना है | केन्द्रीय सरकार द्वारा 13 सितम्बर को घोषित सुधारों पर होते रहे विरोध का भी वही परिणाम आना है | इन  नई घोषणाओं में केंद्र सरकार ने मल्टी ब्रांड खुदरा व्यापार में  50%  निवेश की छूट दे दी हैं | वैसे विदेशी कम्पनियों को एकल ब्रांड खुदरा व्यापार में 100 %  की छूट नवम्बर से ही मिली हुई थी | उसे रोकने का भी कोई कारगर विरोध नही चला | अब उसे अगली सीढ़ी पर पहुंचा दिया गया है | यहाँ पर भी विरोध के इस बुलबुले का फुस्स हो जाना तय है,  जैसा कि वह भी हो चुका है | केन्द्र से लेकर कांग्रेस शासित राज्यों की सरकारों ने विदेशी निवेशकों को मल्टी ब्रांड खुदरा व्यापार में आने की हामी भर दी है,  जबकि उत्तर प्रदेश,बिहार समेत कई अन्य गैर कांग्रेसी शासित राज्यों की सरकारों ने उसे अपने प्रदेश में लागू न करने के लिए कहा है या उस पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है |
      जाहिर सी बात है कि यह देश में नये नीतिगत बदलाव लाये जाने और उसे लागू करने का वास्तविक विरोध नही है | यह तो पार्टीबाजी वाला सत्ता स्वार्थी विरोध है | क्योंकि देश के केन्द्र और कांग्रेस शासित प्रान्तों में उसके लागू होने के बाद देर –  सबेर उसका अन्य प्रान्तों में लागू होना भी एकदम तय है |  वह इसलिए भी कि केन्द्रीय सरकार से लेकर विभिन्न पार्टियों की प्रांतीय सरकारों का भी सारा जोर ” देश – प्रदेश ”  के आर्थिक विकास पर है | आर्थिक वृद्धि व विकास के नाम पर देश व प्रदेश में देशी व विदेशी निवेशक कम्पनियों को बढावा देने पर है | उन्हें अधिकाधिक छूट व अधिकार देने पर है | भले ही उसके परिणाम आम जनता के लिए विनाशकारी ही साबित हो,  जैसा कि बढती महंगाई,  बेकारी रोजी रोजगार के बढ़ते संकटों के रूप में साबित भी हो रहे हैं |
      फिर खुदरा व्यापार में छूट देने के लिए तो अमेरिका व अन्य विकसित साम्राज्यी देशों की सरकारें पिछले दो – तीन सालों से चौतरफा दबाव डालती रही हैं | सत्ता पक्ष व विरोध पक्ष के नेताओं से इस संदर्भ में बातचीत करती रही है | इनके अलावा देश की धनाढ्य कम्पनिया भी अपने विदेशी  सहयोगियों के लिए फुटकर दुकानदारी में छूट के अधिकार की माँग करती आ रही है | | लम्बित आर्थिक सुधारों की वकालत के साथ फुटकर दुकानदारी में इस आर्थिक सुधार की तो खासतौर पर वकालत करती रही है | इसके बाद केन्द्रीय व प्रांतीय सरकार को , सत्ता पक्ष या विपक्ष में बैठे हुए उच्च स्तरीय राजनेताओं को अथवा उच्च प्रचार माध्यमी विद्वानों को इस बात से क्या मतलब रह जाता है कि इससे फुटकर दुकानदारी में लगे 25 करोड़ जनसाधारण हिस्से की रोजी प्रभावित  होगी |  उनका खासा हिस्सा टूट कर बर्बाद हो जाएगा | पिछले बीस सालों में टूटती खेतियों, दस्तकारियों व बहुतेरे छोटे उद्यम,  छोटी नौकरियों के वावजूद ये सभी धनाढ्य व उच्च तथा हुकुमती व गैर हुकुमती हिस्से इन आर्थिक सुधारों का समर्थन,  खासकर व्यवहारिक समर्थन करते रहते हैं | आत्म हत्या करते मजदूरों,  किसानों,  बुनकरों की रिपोर्टो के वाबजूद पूरी निष्ठुरता से  उन्हीं नीतियों व प्रस्तावों को आर्थिक सुधारों के रूप में लागू करते और आगे बढाते रहे हैं | तब फुटकर दुकानदारी और दुकानदारों का भी इन नये नीतिगत हमलों से बचाव होने वाला नहीं है | फुटकर दुकानदारी के क्षेत्र में नये आर्थिक सुधार की यानी फुटकर दुकानदारों के विनाश की और देशी व विदेशी  धनाढ्य फुटकर व्यापारिक कम्पनियों के बढ़ाव व फैलाव की गाड़ी रुकने वाली नहीं  है | नये नीतिगत घोषणाओं के जरिये देश के विकास की नहीं अपितु दुकानदारों के विनाश की गाड़ी को हरी झंडी दिखा दिया गया है |

      सरकार की नीतिगत आर्थिक सुधारों की दूसरी घोषणाओं में विमानन उद्योग में 49 %  प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ( एफ. डी. आई . ) की मंजूरी डायरेक्टर टू होम जैसी प्रसारण  सेवाओं में एफ डी आई की अधिकतम सीमा 49 % से बढाकर 74 % तक करने की मंजूरी  तथा पावर एक्सचेंज में 49 % एफ डी आई को हरि झंडी मिल गयी है |
      इसके  अलावा सरकार निजी क्षेत्र की औद्योगिक कम्पनियों के खराब प्रदर्शन के वावजूद सार्वजनिक क्षेत्र की चार कम्पनियों –  हिन्दुस्तान कापर के 9.59 % आयल इंडिया के 10 % एम् एम् टी सी के 9.53 % तथा नाल्को के 12 .15 % विनिवेश की अर्थात इन्हें निजी कम्पनियों के मालिको को बेचने की मंजूरी भी दे दी है | सरकार के इन नीतिगत सुधार के कदमों का कैसा स्वागत — समर्थन हो रहा है,  उसे देखने के लिए किसी भी प्रसिद्ध समाचार पत्र के सम्पादकीय लेखों को पढ़ लेना ही काफी है | वैसे भी जाने माने अर्थशात्रियो की टिका –  टिप्पणी में आम तौर पर इन फैसलों का समर्थन ही हो रहा है | विरोधी पार्टिया ख़ास तौर पर उत्तर प्रदेश की सपा –  बसपा आपस के तमाम विरोध के बावजूद केन्द्र सरकार को समर्थन देने में जुटी हुई है |  तृणमूल कांग्रेस द्वारा इन मुद्दों पर केन्द्रीय सरकार पर समर्थन वापसी के लिए कांग्रेस पर कोई दबाव  इसलिए भी नहीं पड़ा कि केन्द्रीय सरकार को टिकाने में सपा ताल ठोककर खड़ी हो  गयी है | बसपा चुप रहकर पहले से ही केन्द्रीय सत्ता की सहयोगी पार्टी बनी  रही | भाजपा स्वंय इन आर्थिक नीतियों की और उसे आगे बढाने की घनघोर समर्थक रही है | लिहाजा उसका विरोध महज विपक्ष का ही विरोध है,  जिसे सत्तापक्ष में जाते ही गायब हो जाना है | अन्य पार्टियों की स्थितियों भी कमोवेश इसी  तरह की है |
      लिहाजा इन आर्थिक सुधारों का उसी तरह से डीजल मूल्य वृद्धि , गैस सिलेन्डर के नियंत्रित मूल्य वृद्दि का भी विरोध कहीं से भी वास्तविक विरोध नहीं है | अभी तक सुनाई पड़ रहा विरोध दरअसल विरोध की नही बल्कि विपक्षी संसदीय व प्रचार माध्यमी विरोध प्रदर्शन की अर्थात खोखले व दिखावटी विरोध पक्ष की यह भूमिका सत्ता पक्ष में बनने तक निभानी पड़ती है | इसकी अभिव्यक्ति की उसे पूरी सवतंत्रता मिली रहती है | इसके सबूत हम आर्थिक सुधारों के संदर्भ में पहले ही प्रस्तुत कर आये हैं |

      इसलिए इन  वैश्वीकरणवादी नीतियों प्रस्तावों के तथा नये नीतिगत सुधारों के विरोध में  अब निचले हिस्से को खासकर आम फुटकर,  दुकानदारों समेत पहले से ही इसके  भुक्तभोगी बने मजदूर किसान,  टूटते हुए छोटे उद्यमियों और बेरोजगार बने  नौजवानों आदि को ही आगे आना होगा | उन्हें देशी विदेशी धनाढ्य हिस्सों पर कड़े नियंत्रण वाली नीतियों के लिए सत्ता सरकारों पर दबाव बनाना होगा |

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