बाइट्स प्लीट (उपन्यास भाग 11)

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रत्नेश्वर सिंह की नजर में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए भुजंग ने भोजपुरी गायिका कोकिला को कंट्री का लाइव का ब्रांड एंबेस्डर बनाने की सलाह दी। कोकिला लंबे समय से भुजंग के संपर्क में थी। जब पटना में आई तो भुजंग ने उसे फौरन स्टूडियो में आमंत्रित किया और रत्नेश्रर सिंह के साथ एक मीटिंग फिक्सड कर दी। चुलबुली कोकिला को अपने चैंबर में पाकर रत्नेश्वर सिंह भी काफी खुश हुये। बड़ी गर्मजोशी के साथ उन्होंने उसका स्वागत किया। फिर भुजंग ने कोकिला को इंटरव्यू देने को कहा ताकि चैनल के लिए एक प्रोग्राम भी बन जाये।

जिस वक्त स्टूडियो में कोकिला का इंटरव्यू तृष्णा कर रही थी, उस वक्त स्टूडियो में खुद रत्नेश्वर सिंह भी एक कुर्सी पर अंत तक डटे रहे। उस दिन स्टूडियो को खासतौर पर सजाया गया था, यहां तक कि भाड़े पर लाइट की व्यवस्था भी की गई थी। कंट्री लाइव का ब्रांड एंबेसडर बनने के लिए कोकिला ने अपनी सहमति पहल ही दे दी थी। इंटरव्यू के बाद सभी स्टाफ के सामने इस बात की घोषणा करते हुये रत्नेश्वर सिंह ने कहा, “ हमें इस बात की खुशी है कि कोकिला आपके चैनल का ब्रांड एंबेसडर बनने के लिए तैयार हो गई हैं। अब आपके चैनल की लोकप्रियता और बढ़ जाएगी।”

भोजपूरी गानों के क्षेत्र में कोकिला ने धूम मचा रखा था, लेकिन एक न्यूज चैनल का ब्रांड एंबेसडर एक भोजपूरी गायिका को बनाया जाना नीलेश को कुछ अटपटा लग रहा था। कोकिला के जाने के बाद जब नीलेश की मुलाकात भुजंग से हुई तो उसने कहा, “आपको नहीं लग रहा है कि कंट्री लाइव खबरों से दूर होता जा रहा है। कोकिला एक अच्छी गायिका हो सकती है, लेकिन बौद्धिक स्तर पर इसे एक चैनल का ब्रांड स्तर बनाया जाना कहां तक उचित है? ”

“आप तो हमेशा उल्टा ही सोचते हैं। इसके ब्रांड एंबेसडर बनने से कंट्री लाइव की रौनक बढ़ जाएगी, लोग न्यूज से पक चुके हैं उन्हें चमकता हुआ चेहरा चाहिये स्क्रीन पर और कोकिला से बेहतर कौन हो सकता है,” भुजग ने थोड़ा चिढ़कर कहा तो नीलेश ने भी इस मामले में आगे बहस करने की जरूरत नहीं महसूस की।

संस्थान की ओर से कुछ दिन बाद कोकिला को ब्रांड एंबेसडर का एक नियुक्ति पत्र और पांच हजार रुपये का एक चेक भेजा गया। इसके बाद से कोकिला ने संस्थान की तरफ रुख करना ही छोड़ दिया। लेकिन कलाकारों के प्रति भुजंग का रुझान लगातार बना रहा।

इसी क्रम में पटना की रहने वाली एक महिला ने जब भुजंग से संपर्क किया तो उसने उस महिला को अपने कबूतरखाना नुमा चैंबर में बैठाकर घंटों उससे गाने सुनता रहा। उस महिला के साथ एक गंजा व्यक्ति भी था जिसका परिचय उसने अपने पिता के रूप में कराया था। भुजंग लगातार उस महिला की आवाज की तारीफ करता रहा और अंत में यह तय हुआ कि वह महिला कंट्री लाइव के लिए छठ पर बनने वाले विशेष प्रोग्राम में छह गीत गाएगी। प्रोग्राम को शूट करने की जिम्मेदारी नीलेश को देते हुये भुजंग ने कहा, “कल दिन में इन्हें स्टूडियो में बुलाकर आप शूट कर लीजिये। ”

“स्टूडियो में न तो लाइट है, और न हीं म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स। स्टूडियो की जो स्थिति है उसमें मैं कोई प्रोग्राम शूट नहीं कर सकता हूं, ” नीलेश ने सपाट सा जवाब दिया।

“आप तो हर चीज में ना कह देते हैं। मैं आपको दिखाता हूं कैसे शूट होता है। लाइट हम भाड़े पर ले लेंगे, और इंस्ट्रूमेंट बजाने वाले लोगों को ये खुद बुला लेंगी। क्यों ठीक रहेगा ना?”, महिला की तरफ मुखातिब होते हुये भुजंग ने पूछा।

“जी बिल्कुल, मैं कल चली आऊंगी।”

दूसरे दिन पारंपरिक भारतीय परिधान में सजधज कर वह महिला अपने गंजे पति के साथ हाजिर थी। भाड़े की लाइट में उसकी शूटिंग तो पूरी हो गई लेकिन शाम को जब भुजंग ने उस महिला को लाईट वालों का बिल देने को कहा तो वह आपे से बाहर होते हुये बोली, “लाइट का बिल मैं क्यों दूं? एक तो मैं आपसे गाने का चार्ज भी नहीं ले रही हूं, ऊपर से आप मुझसे लाइट का बिल देने को कह रहे हैं, यह तो सरासर जालसाजी है।

महिला के आरोप को सुनकर भुजंग अपना आपा खोते हुये चीख पड़ा, “तो लाइट के पैसे मैं क्या अपने घर से लाऊंगा ?  और आपको जानता कौन है, आपके जैसे दो कौड़ी की गायिका मारी-मारी फिरती हैं। गाने आता है नहीं, चली आती है लता मंगेशकर बनने। ”

इतना सुनने के बाद उस महिला के साथ आया व्यक्ति भुजंग के साथ मारपीट करने पर उतारू हो गया। चीख चिल्लाहट की आवाज जब नरेन्द्र श्रीवास्तव के कानों में पड़ी तो उसने भुजंग को बुलाकर पूछा, “ ये क्या हो रहा है?  किस बात का हंगामा है?”

“दिन भर मैं इस महिला की शूटिंग करता रहा, अब लाइट का बिल देने से यह इंकार कर रही है। अब पांच हजार का बिल मैं कहां से दूंगा? चेयरमैन पहले ही कह चुके हैं कि अब किसी भी प्रोग्राम पर वह एक पैसा भी खर्च नहीं करेंगे,” अपना पक्ष रखते हुये भुजंग ने कहा।

“सो तो है, उसे पहले ही बता देना चाहिय था कि इसका पूरा खर्च उसी को वहन करना पड़ेगा।”

“मैंने बता दिया था, लेकिन अब वह पैसे दे नहीं रही है और उल्टे यह कह रही है कि मैं उसके साथ जालसाजी कर रहा हूं,” भुजंग गुस्से से कांप रहा था।

“जो हो, इस मामले को जल्दी निपटाओ, आफिस में हल्ला नहीं होना चाहिये,” नरेंद्र श्रीवास्तव नाराज होते हुये बोले।

वापस जाकर भुजंग ने महिला को फटकारते हुये कहा, “यदि आप लाईट का बिल देंगी तो यह प्रोग्राम चलेगा, नहीं तो नहीं चलेगा। और अब इस बारे में मुझे आपकी कोई बात नहीं सुननी है। आप जा सकती हैं।”

जाते- जाते दोनों भुजंग को देख लेने की धमकी देते गये।

दो दिन बाद उसका गंजा व्यक्ति आया और भुजंग को पांच हजार रुपये देते हुये कहा, “जो हुआ, सो हुआ, आप उस प्रोग्राम को चला दीजिये। ”

इस प्रोग्राम को प्रसारण के लिए रांची भेजे जाने के पहले माहुल वीर के पास इससे जुड़ी पूरी कहानी पहुंच चुकी थी। उसने दो दिन तक इस प्रोग्राम को दबा कर भुजंग की फजीहत कर दी। इस दौरान भुजंग पर लगातार उस महिला और उसके पति की तरफ से प्रोग्राम चलाने का दबाव पड़ता रहा और उसकी स्थिति को देखकर लोग मजे लेते रहे। यहां तक कि नरेंद्र श्रीवास्तव भी चुटकी लेते हुये भुजंग से पूछते थे, ,“पटना में कोई और अच्छी गायिका नहीं है भुजंग ?, तुम्हारे पास तो सभी का लिस्ट होगा। ”

इस प्रकरण में तृष्णा ने एक नया खुलासा करते हुये मामले को और भी रोचक बना दिया था। उसने बताया कि उस महिला के साथ आने वाला व्यक्ति उसका पिता नहीं बल्कि पति था। इसके बाद तो भुजंग की और भी फजीहत होने लगी थी। उसे देखते ही लोग हंस पड़ते थे और वह बुरी तरह से बौखला जाता था।

तृष्णा के सामने आते ही नीलेश कहा, “यहां की बेहतर खोजी रिपोटर तो तुम हो, बौस को भी पता नहीं था कि मियां बीवी मिल कर उसे उल्लू बना रहे हैं और तुमने खोज निकला। ये किया कैसे ”

वह हंसते हुये बोली,“ उस आदमी के पास एक बच्चा था जिसे वह सीखा रहा था कि उसे पापा नहीं दादा जी बोले, और मैं समझ गई कि दोनों हसबेंड और वाइफ हैं।”

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कंट्री लाइव में कई स्तर पर जारी खींचतान के बीच नीलेश लगातार कुछ बेहतर प्रोग्राम निकालने लिए मंथन कर रहा था, हालांकि परिस्थितियां पूरी तरह से प्रतिकूल थी। स्टूडियो में कुछ लाइट लगा दिया गये थे, लेकिन टेली प्राम्पटर अभी भी नदारद था। जिले से आने वाले खबरों को सहेज कर रखने के लिए लाइब्रेरी की कोई व्यवस्था नहीं थी। लगभग सभी कंप्यूटरों में वायरस ने कब्जा जमा रखा था, कब कौन सी फाइल गुम हो जाये कुछ कहा नहीं जा सकता था। रिपोटर और कैमरा मैन भी महेश सिंह के नेतृत्व में पूरी तरह से अराजकता के कगार पर थे और ऊपर से रत्नेश्वर सिंह ने साफ कह दिया था कि किसी भी प्रोग्राम पर पैसा खर्च नहीं होना चाहिये।

नीलेश जब भी कोई नया प्रोग्राम बनाने की बात करता तो रंजन उसे समझते हुय कहता था, “भाई चुपचाप नौकरी बजाओ, ज्यादा टेंशन लेने की जरूरत नहीं है। यहां क्वालिटी देखने वाला कोई नहीं है। हमलोग किसी तरह से डेली एक प्रोग्राम भेज रहे हैं, बस उसे ही भेजते रहे। ”

इस बारे में भुजंग से बात करने पर उसने कहा, “ आप जो करना चाहते हैं वो मुझे मेल कर दीजिये, वैसे मुझे लगता नहीं है कि यहां कुछ होने वाला है। और काम करने की जरूरत क्या है? आराम से पैसा लीजिये और मौज कीजिये। ज्यादा टेंशन नहीं लेना चाहिये। ”

करीब एक घंटे तक कंप्यूटर पर बैठकर नीलेश ने दो प्रोग्राम का कंसेप्ट तैयार किया और फिर रंजन को उसे पढ़ने को बोला।

नीलेश के बगल वाली कुर्सी पर बैठकर रंजन कंप्यूटर पर लिखे गये शब्दों को पढ़ने लगा-

प्रोग्राम का नामबिहाइंड दि कैम

अवधि : 22 मिनट

प्रोग्राम की प्रकृति : खोजी अंदाज

बिहाइंड दि कैम में किसी ऐसे क्षेत्र की ऐसी गतिविधियों को समग्र रूप से कैमरे में कैद किया जाएगा, जहां की ऊपरी व्यवस्था के नीचे एक अलग तरह की व्यवस्था मजबूती से कायम हो चुकी है या फिर विभिन्न क्षेत्रों से बिल्कुल आम आदमी के जीवन को टटोलते हुये सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक व सांस्कृतिक संरचना में व्याप्त विसंगतियों को सामने लाएंगे। जैसे, पीएमसीएच में पेशेवर तौर पर खून बेचने का कारोबार और इस कारोबार से जुड़े दलाल और लोग, पटना के पासपोर्ट आफिस में मोटी रकम लेकर चुटकी बजाकर

तत्काल पोसपोर्ट मुहैया कराने वाले गिरोह और उनका वर्क स्टाईल, रेलवे स्टेशन पर तत्काल आरक्षण दिलाने वाले लोगों का कुनबा और उस कुनबे से जुड़े रेलवे अधिकारी, शहर के गली-गली में बिकने वाले स्मैक और गांजे के धंधे से जुड़ी महिलाएं व बच्चे, सरकारी अस्पतालों में कार्यरत डाक्टरों का अपने प्राइवेट क्लिनिक के धंधे में सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीजों को खींच ले जाना, दूर-दराज के गांवों से आकर तकनीकी शिक्षा (इंजीनियरिंग व मेडिकल) में जाने की तैयारी में लगे छात्र और उनका खर्च वहन करने की जद्दोजहद में पीसते उनके माता-पिता, गांवों में निजी स्तर पर जारी सूदखोरी और उस सूदखोरी की चपेट में पीसता परिवार, मानवाधिकारों से संबंधित कोई मामला आदि। इसके अलावा शहर के ट्रैफिक सिस्टम, सरकारी आवासों पर गैरकानूनी कब्जा, कालेज के होस्टलों में कमरों पर गैर कानूनी कब्जा आदि को भी कवर करेंगे।  इस तरह के मामलों के पूरे मैकेनिज्म को चरणबद्ध तरीके से कवर करेंगे और मानवीय स्तर पर जाकर उन्हें दिखाएंगे।

प्रस्तुतीकरण –प्रोग्राम को बिना किसी एंकर की मदद से डोक्यूमेंट्री स्टाईल में चरणबद्ध तरीके से प्रस्तुत करेंगे। विजुअल्स को कंपाइल करते हुये स्टोरी को बुनते जाएंगे और पूरे मामले को समग्रता से कड़ी दर कड़ी पिरोते हुये रखेंगे। जैसे यदि पीएमसीएच में कोई पेशेवर खून बेचने वाला व्यक्ति कैमरे के सामने आने के लिए तैयार हो जाता है तो उसी के माध्यम से पूरी स्टोरी को कैरी करते हुये आगे बढ़ेंगे, उसका पारिवारिक बैकग्राउंड क्या है, खून बेचने के बाद जो पैसा मिलता है उसका इस्तेमाल वह कैसे करता है, उसका रहन-सहन कैसा है। उसकी दिनचर्या क्या है।

इसकी स्क्रीप्टिंग साफ्ट टोन में रखते हुये मानवीय पहलुओं को छूते हुये चलेंगे। स्टोरी के बीच में  फार्मेट के मुताबिक ब्रेक लेते जाएंगे। साउंड इफेक्ट का जबरदस्त इस्तेमाल करेंगे जो विजुअल्स के इमोशन को मजबूती से उकेरे।

प्रोग्राम का नाम- दि वीर वुमैन

अवधि :  22

प्रकृति- नारी आधारित

कार्यक्रम की प्रकृति – फिलहाल इसे पूरी तरह से पोलिटिकल रखेंगे। सभी
दलों के सभी महिला प्रतिनिधियों को इसमें विस्तार से कवर करेंगे, उनके वुमैनहुड और हिरोइज्म को स्थापित करते हुये। (सभी महिला उम्मीदवारों की पूरी सूची)। राजनीति में उनके आगमन के पहले के उनके जीवन को कवर करते हुये यह दिखाएंगे कि राजनीति में वह क्यों और कैसे आई और वर्तमान में उनकी पूरी भूमिका तक पहुंचेंगे। दल के अंदर उन महिलाओं की स्थिति को भी तौलेंगे। उसके परिवार के लोगों का उसके बारे में क्या कहना है इसे भी कवर कर सकते हैं, और यदि बेहतर जानकारी उनसे मिली तो उन्हें एक सिग्मेंट के
रूप में ले भी सकते हैं। इलेक्शन के बाद भी दि वीर वुमैन  को अन्य क्षेत्रों की महिलाओं को लेते हुये कैरी करेंगे। बाद में इसमें उन महिलाओं को भी लेंगे जो पूरी तरह से आम है, लेकिन कई चीजों के लिए उन्हें गहन संघर्ष करना पड़ा हो और अपने अगले जेनेरेशन को उन्होंने एक बेहतर जिंदगी दी हो, मसलन गरीबी और भूखमरी से जूझते हुये अपने बच्चों को कामयाब इंसान बनाया हो। खुद को समाज में स्थापित कर चुकी महिलाओं को भी कवर
करेंगे, जो किसी न किसी रूप से सार्वजनिक कार्य कर रही हो व खुद के साथ-साथ दूसरों के जीवन को बेहतर करने के लिए बेहतरीन जिया हो।

“दोनों प्रोग्राम बेहतर बन सकते हैं, लेकिन इन पर काफी मेहनत करनी होगी। बिहाइंड दि कैम तो पूरी तरह से खोजपरक कार्यक्रम हो जाएगा,” दोनों कंसेप्ट पढ़ने के बाद रंजन ने नीलेश की तरफ मुखातिब होते हुये कहा।

“जितने लोग हमारे साथ काम कर रहे हैं उनमें से ही बिहाइंड दि कैम के लिए एक टीम बनानी होगी। बिहार में खोजी पत्रकारिता का दौर खत्म सा हो गया है, यदि हमलोग इस ओर ध्यान देंगे तो न सिर्फ हमें आडियेन्स का बेहतर रिस्पांस मिलेगा, बल्कि धीरे-धीरे अच्छे पत्रकारों की एक टीम भी बन जाएगी, ” नीलेश ने थोड़े उत्साह से कहा।

“तुम इसे भुजंग को मेल कर दो, कुछ नये प्रोग्राम बनाने की चर्चा नरेंद्र श्रीवास्तव कर रहे थे,” रंजन ने कहा।

“उनके बारे में तो अट्टहास फोर मीडिया पर बहुत कुछ पढ़ने को मिला था। जेपी मूवमेंट के आदमी हैं। लंबा संर्घष किया है उन्होंने ,” नीलेश नरेंद्र श्रीवास्तव की तारीफ करते हुये कहा।

“अट्हास फोर मीडिया पर जो रिपोर्ट छपी थी उसके लिए अट्टाहास फोर मीडिया को यहां से दस हजार रुपये का चेक गया था। वैसे इन सब बातों से तुमको कोई लेना-देना नहीं है। हो सके तो एक बार नरेंद्र श्रीवास्व से भी इस पर चर्चा कर लो। बैठे हैं, तुम चाहो तो अभी बात कर लो।”

दोनों कंसेप्ट को अच्छी तरह से पढ़ने के बाद नीलेश ने उसे भुजंग को मेल कर दिया और खुद इस बारे में बात करने के लिए नरेंद्र श्रीवास्तव के पास चला गया जो रिसेप्शन से सटे एक छोटे से दरबे में बैठ कर महेश सिंह और भुजंग के साथ चना खा रहे थे।

“सर मैं आपसे कुछ बात करना चाहता हूं,” दरवाजे के पास आकर खड़ा होते हुये नीलेश ने कहा।

“हां बताओ, क्या बात है?”, नीलेश की तरफ देखते हुये नरेंद्र श्रीवास्तव ने पूछा।

“गंगा नदी ने अपनी धार बदल दी है, जो जमीन निकला है उस पर अवैध तरीके से अपार्टमेंट बनाये जा रहे हैं। भू- माफियाओं ने पटना नगर निगम तक को मैनेज कर रखा है। इस पर आधे घंटे का एक प्रोग्राम बनाना चाहता हूं, और चाहता हूं कि इसी तरह के प्रोग्राम की एक श्रृंखला शुरु करूं, बिहाइंड दि कैम के नाम से। ”

“तो करो, कौन रोकता है ? महेश और भुजंग से भी डिस्कशन कर लो, ” नरेंद्र श्रीवास्तव ने कहा।

“इसके पहले जहां मैं काम करता था वहां के लिए गंगा पर मैं एक स्टोरी कर चुका हूं। इस तरह की स्टोरी की कोई जरूरत नहीं है। यदि फिर भी आप करना चाहते हैं तो मैं वह स्टोरी और उसका स्क्रीप्ट आपको दे दूंगा, ” भुजंग ने कहा।

“क्या आपकी स्टोरी भू माफियाओं पर है?” , नीलेश ने पूछा।

“नहीं, गंगा नदी कैसे शहर से रुठ गई है इस पर है।”

“मैं पटना के भू-माफियाओं पर काम करना चाहता हूं, जो बेलगाम हो चुके हैं,” नीलेश ने दृढ़ता से कहा।

“ये जो करना चाहता है करने दो,”, नरेंद्र श्रीवास्तव ने भुजंग से कहा और फिर नीलेश से मुखातिब हुये, “ तुम्हें क्या चाहिये।”

“कैमरा के साथ एक कैमरा मैन और गाड़ी। मैं कल सुबह नौ बजे शूट पर जाना चाहता हूं। ”

“महेश, इन्हें कल सुबह नौ बजे गाड़ी और कैमरामैन दे दो,” चना खाते हुये नरेंद्र श्रीवास्तव ने सहजता से कहा।

“बिल्कुल मिल जाएगा। मैं कैमरा मैन को अभी कह देता हूं”, यह कहते हुये महेश सिंह बाहर निकल गया।

नीलेश को गंगा नदी के किनारे के जमीन से संबंधित सारे दस्तावेज एक व्यक्ति से पहले ही मिल चुका था, जो लंबे समय से इसी पर काम कर रहा था। घर लौटने के बाद देर रात तक वह उन दस्तावेजों से जूझता रहा और उसी के हिसाब से उसने अपना पूरा शूट प्लान बना लिया।

अगली सुबह ठीक साढे आठे बजे नीलेश दफ्तर पहुंच गया और शूटिंग पर निकलने की तैयारी करने लगा। 11 बजे तक न तो कैमरा मैन का पता था और न ही गाड़ी का जबकि रात में ही उसने महेश सिंह से इस बात की तसल्ली कर ली थी कि सुबह नौ बजे उसे दफ्तर में यूनिट तैयार मिलेगा। बार-बार फोन लगाने के बाद बावजूद महेश सिंह फोन नहीं उठा रहा था।

12 बजे के करीब महेश सिंह दफ्तर में दाखिल हुआ और जब नीलेश से उसका सामना हुआ तो उसने कहा, “आज खबरों का लोड कुछ अधिक है, आप कल शूट कर लिजीएगा।”

करीब एक घंटे के बाद भुजंग दफ्तर में आया और उसने नीलेश को अपने दरबे में बुलाने के लिए मेशू को भेजा। मेशू यहां पर इलेक्ट्रिशयन के पोस्ट पर ज्वाइन किया था, लेकिन उससे दफ्तर के सारे काम लिये जाते थे। उसके साथ उसका भाई अमला भी यहीं पर काम कर रहा था। अमला दिल्ली में सुलभ शौचालय में काम कर चुका था। लेकिन उसका मन वहां पर नहीं लग रहा था। मेशू ने रत्नेश्रर सिंह से सीधे बात करके अमला को कंट्री लाइव के दफ्तर में चपरासी के पद पर रखवा दिया था। उसकी अनुपस्थिति में मेशू ही उसका काम करता था, इसलिये उस दफ्तर में मेशू का चौतरफा इस्तेमाल  होने लगा था। जब मेशू ने आकर नीलेश से कहा कि उसे भुजंग बुला रहा है तो कुछ देर तक सोचने के बाद वह भुजंग के दरबे में दाखिल हुआ। भुजंग अपने चिरपरिचित अंदाज में खैनी मलते हुये सामने कुर्सी पर बैठी तृष्णा से कह रहा था, “बाहर जाओ घूमो- फिरो, ब्याय फ्रेंड बनाओ, ऐश करो। यह न तुम्हारे चाचा का चैनल है और न मेरे चाचा का। काम को लेकर ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है।”

नीलेश पर नजर पड़ते ही वह दांत निकाल कर हंसने लगा और कुछ झेंपते हुये बोला “सुना है कि आज आपकी शूट नहीं हो पायी। मैं पहले से ही आपको कह रहा हूं, ज्यादा टेंशन नहीं लीजिये। यही बात अभी तृष्णा को भी समझा रहा था। नई-नई लड़की है मौज मस्ती करनी चाहिये, काम तो लगा ही रहता है। यहां नौकरी नहीं करेंगे, कहीं और करेंगे। बस पैसे मिलते रहने चाहिये।”

“ दो नये प्रोग्राम के बारे मैंने आपको मेल भी किया था कल, देखा आपने? ”, बगल में खाली पड़ी एक कुर्सी पर बैठते हुये नीलेश ने पूछा।

“मैंने आपको फिक्शन के बारे में बोला था, उसका स्क्रीप्ट आपने मुझे अब तक नहीं दिया। पहले उसको कीजिये। नरेंद्र श्रीवास्तव बिहार के खाने-पीने की प्रसिद्ध चीजों पर एक प्रोग्राम बनाने के पक्षधर हैं, जैसे मनेर का लड्डू, मुजफ्फरपुर की लीची। अब इसको कैसे बनाये जाये इस पर सोचिये। इसके पहले एक बार नरेंद्र श्रीवास्तव से बात कर लीजिये।”

“और भी लोग हैं यहां पर, उनसे कहिये वे ही बनाएंगे ऐसे प्रोग्राम,” नीलेश ने सपाट स्वर में कहा।

“तेवर तो आपके कामरेड वाले हैं, मैं भी कामरेड रह चुका हूं। लेकिन चैनल में काम करना है तो चैनल हेड की बात तो माननी ही होगी ना,” भुजंग ने हंसते हुये कहा।

“कल उन्होंने मेरे प्रोग्राम को शूट करने का आदेश दिया था, क्या हुआ? यूनिट ही गायब थी। बात करते हैं चैनल हेड के आदेश की, उनके आदेश को पलीता लगाया जा रहा है यहां पर, ” इतना कहते हुये नीलेश भुजंग के दरबे से बाहर निकल आया.

“सिर्फ खबरों पर काम करने से कोई पत्रकार नहीं बन जाता है, कुर्सी पकड़ने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं,” पीछे से भुजंग की आवाज सुनाई दी।

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