हमारे लालच ने हमें विलासी बना दिया (कविता)

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!! पवन उपाध्याय !!

हमारी जिज्ञासा ने हमें लालची
और हमारे लालच ने हमें विलासी बना दिया !
हमने दस अंक खोज लिए
शून्य से नौ तक !
इनके हेर फेर से हमने
इकाई दहाई सैकड़ा सीख लिया !
बात बस यही तक रहती तो गनीमत थी
जिज्ञासा के चलते लालची हम हो ही चुके थे
चुप कैसे बैठते ? हमने हेर फेर जोड़ कर
गिनती बढ़ा ली अपनी
हजार से असंख्य तक !
अब, जब असंख्य है हमारे पास
कहाँ रुकने वाले थे हम इस तक पहुँचने से पहले ?
आज तक जारी है क्रम, इसी तक पहुँचने का !
अब असंख्य की कोई सीमा तो होती नहीं
तो तय है, जीवन अधूरा ही ख़त्म होगा !
यह अधूरा होगा …हमारा सब कुछ
जो कुछ भी हम चाहते हैं !

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