हिन्दी को काव्य — भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने वाले थे मैथिलीशरण गुप्त

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………….आज उनकी पुण्यतिथि है ……….शत – शत नमन उनको ………………..

हिन्दी को काव्य की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है | उन्होंने हिन्दी भाषा एवं साहित्य के इतिहासकार एवं विख्यात आलोचक महावीर प्रसाद द्दिवेदी से प्रेरित होकर हिन्दी काव्य रचना शुरू की थी जिसे कालान्तर में अन्य कवियों ने भी अपनाया | साहित्य अकादमी के कार्यकारी अध्यक्ष डाक्टर विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि मैथिलीशरण गुप्त ने नवजागरण काल के लिए बहुत कार्य किया |
उन्होंने आचार्य महावीर प्रसाद द्दिवेदी के प्रेरणा से ब्रज भाषा जैसी समृद्द काव्य भाषा को छोड़कर खड़ी बोली में कविताएं लिखना शुरू किया था | समय और संदर्भो के अनुकूल होने के कारण अन्य कवियों ने भी खड़ी बोली को अपनी रचना भाषा के रूप में स्वीकार किया | तिवारी ने बताया कि परम्परा , नैतिकता , पवित्रता और मानवीय मूल्यों की रक्षा आदि गुप्त जी की कविताओं के प्रमुख गुण रहे | पंचवटी , जयद्रथ वध , साकेत और यशोधरा आदि उनकी सभी रचनाओं में उनकी एक विशेषता मुखर रूप से दिखाई देती है | साकेत में उर्मिला के चरित्र की व्याख्या से गुप्त जी ने उस समय की स्त्रियों की वास्तविकता  दशा का सटीक चित्रण किया था | उनकी कृतियाँ आज भी प्रासंगिक है | सुपरचित  समीक्षक एवं कवि कुमार मुकुल ने बताया कि गुप्त की कविताएं राष्ट्रीय भावना और स्वाभिमान से ओत — प्रोत थी | खड़ी बोली को काव्य भाषा के रूप में मान्यता दिलाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है | मात्र 12 वर्ष की उम्र से उन्होंने ब्रजभाषा में कविताएं करने शुरू कर दिया था | बाद में महावीर प्रसाद द्दिवेदी के सम्पर्क में आने के बाद उन्होंने खड़ी बोली को अपनी काब्य भाषा बनाया |
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म तीन अगस्त 1886 को चिरगांव , झांसी में हुआ था | उनके पिता का नाम सेठ रामचरण कनकने और माता का नाम  कौशल्या बाई था | उन्होंने घर पर ही हिन्दी , संस्कृत और बांगला साहित्य का  अध्ययन किया | मुंशी अजमेरी जी के मार्ग दर्शन में उन्होंने 12 साल की उम्र में ब्रज भाषा में कनकलताद्द नाम से कविताएं लिखी शुरू की | इसके बाद वह महावीर प्रसाद जी के सम्पर्क में आये औए खड़ी बोली में कविताएं लिखनी शुरू की | उनकी खड़ी बोली की कविताएं सबसे पहले ” सरस्वती ” में प्रकाशित हुई | उनका प्रथम काव्य संग्रह ” रंग में भंग ” था | इसके बाद ” जयद्रथ वध ” प्रकाशित हुआ | इस संग्रह से उन्हें ख्याति प्राप्त होने लगी | इसके बाद 1914 में भारत — भारती प्रकाशित हुई | राष्ट्री भावना और स्वाभिमान से भरे इस संग्रह के कारण उनकी ख्याति दूर — दूर तक फ़ैल गयी | उन्होंने 1916 – 17 का लेखन प्रारम्भ किया | इसमें उर्मिला के प्रति उपेक्षा भाव दूर किये गये | साकेत तथा पंचवटी 1931 में पूर्ण होकर छपकर आये | 1932 में यशोधरा के प्रकाशन से महात्मा गांधी उनसे बहुत अधिक प्रभावित हुए | उन्होंने गुप्त जी को राष्ट्र कवि की संज्ञा दी | 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के कारण जेल जाना पडा | गुप्त जी को 1952 और 1964 में दो बार राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया | इसके बाद 1953 में भारत सरकार ने उन्हें पदम विभूषण से नवाजा | इसके बाद 1954 में उन्हें पदम भूषण से सम्मानित किया |डाक्टर नागेन्द्र ने कहा था कि वह सच्चे अर्थो में राष्ट्रकवि है | रामधारी सिंह दिनकर के अनुसार उनके काव्य से भारत की प्राचीन संस्कृति को एक बार फिर से तरुणावस्था मिली है | 12 दिसम्बर 1964 को दिल का दौरा पड़ने से हमारे बीच से राष्ट्रकवि चले गये | 78 वर्ष के अपने जेवण काल में उन्होंने दो महाकाव्य , 19 खंडकाव्य , काव्यगीत और नाटिकाए लिखी |

आज बड़े दुःख के साथ यह लिख रहा हूँ कि हमारे वो हिन्दी के पुरोधा जिन्होंने अपनी हिन्दी को स्थापित किया लोग उनको भूलते जा रहे है |

प्रस्तुति – सुनील दत्ता , आभार….. डेली न्यूज ऐकिटविस्ट

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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