आम आदमी की पार्टी —— में आम आदमी कहां ? उसके हित कहां ?

0
20

सुनील दत्ता //

एक सवाल श्री अरविन्द केजरीवाल से ?

{ इन हालातों में कोई भी भ्रष्टाचार विरोधी तथा आम आदमी के लिए जनतांत्रिक राष्ट्रीय नीति व कानून तब तक कारगर नही हो सकता जब तक देश — दुनिया के धनाढ्य वर्गो व कम्पनियों पर भारी रोक व नियंत्रण न लगाया जाए | इन नियंत्रण के बिना आम आदमी के जनतांत्रिक अधिकारों को बढाने का काम हरगिज नहीं किया जा सकता | इस सच्चाई के वावजूद यदि आम आदमी की पार्टी या कोई अन्य पार्टी संगठन या शक्ति धनाढ्य वर्गों पर यह नियन्त्रण लगाने की बात नहीं करता तो उसके भ्रष्टाचार का विरोध सतही व खोखला ही साबित होगा।

24 नवम्बर के दिन राजधानी दिल्ली में एक नई पार्टी ( ” आम ” ) के गठन की घोषणा कर दी गयी | यह घोषणा इस पार्टी के संचालक बने ” इण्डिया अगेन्स्ट करप्शन ‘ ( अर्थात भ्रष्टाचार विरोधी भारत ) नाम के संगठन के प्रमुख एवं बहुप्रचारित नेता श्री अरविन्द केजरीवाल ने अपने सहयोगियों के साथ की । उन्होंने इस पार्टी का प्रमुख उद्देश्य ” भ्रष्टाचार मुक्त ” विकेन्द्रीय जनतंत्र का निर्माण बताया।  दिल्ली में जन्तर – मन्तर पर पार्टी निर्माण के लिए हुई बैठक में लगभग 300  सदस्यों ने भाग लिया।  उसमें से 23 सदस्य उसके कार्यकारी मण्डल के सदस्य बनाये गये।

आम आदमी की पार्टी की प्रमुख चारित्रिक विशेषता के बारे में कहा गया कि यह पार्टी राज नेताओं के प्रति आम आदमी के विरोध को परिलक्षित करेगी।  नव गठित पार्टी के प्रवत्ता ने देश के सभी चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ने की घोषणा  करने के साथ पार्टी के चुने हुए पर नाकारा साबित हुए प्रतिनिधियों को वापस बुला लेने की बात कही । इसके अलावा पार्टी प्रवत्ता ने यह भी कहा कि पार्टी  में नौजवानों एवं महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी । खासकर महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित कराने के लिए आम आदमी की पार्टी ने यह घोषित किया है कि  उसकी हर प्राथमिक इकाई के दो संयोजको में से एक महिला का होना अनिवार्य है ।

आम आदमी की पार्टी के विभिन्न मुद्दों का खुसाला करते हुए श्री केजरीवाल ने कहा कि उनकी पार्टी का प्रमुख मुद्दा भ्रष्टाचार के विरुद्ध जन लोकपाल कानून को लागू करना तथा आम आदमी के हित में लोकतंत्र को निचले स्तर तक पहुंचाना है ।
सत्ता में आने पर उन्होंने 15 दिनों के भीतर जन लोकपाल कानून बनाने , भ्रष्ट नेताओं को जेल भेजने और 6 माह में समूची जांच पूरी करने का वायदा किया है । इसी के साथ उन्होंने 5 सालों में गरीबी , भुखमरी खत्म करने का भी वादा किया है।  आम आदमी की पार्टी के गठन की घोषणा के साथ ही पार्टी को पहले दिन वह उपस्थित सदस्यों द्वारा दिए गये एक करोड़ से अधिक की धनराशी चंदे के रूप में प्राप्त हो गयी । इन सूचनाओं के सुनने के बाद चर्चा के लिए प्रमुखत: दो सवाल बनते है । एक तो यह कि क्या यह पार्टी दरअसल आम आदमी की पार्टी ? और दूसरा यह कि पार्टी दरअसल राष्ट्र बनाने के अपने  घोषित मुक्त विकेन्द्रित जनतांत्रिक राष्ट्र बनाने के अपने घोषित उद्देश्य को पूरा कर सकती है ? आम आदमी की पार्टी पर चर्चा इसी दूसरे सवाल के साथ शुरू किया जाये । पार्टी द्वारा राष्ट्र को भ्रष्टाचार मुक्त , विकेन्द्रित व जनतांत्रिक राष्ट्र बनाने का सीधा मतलब है कि आम आदमी की पार्टी इस राष्ट्र व समाज को किसी हद तक या पूरी हद तक भ्रष्टाचार से युक्त  केन्द्रित और गई — जनतांत्रिक मानती है । इसीलिए वह इसे भ्रष्टाचार से मुक्त राष्ट्र बनाना चाहती है । इस संदर्भ में अगला सवाल बनता है कि इस राष्ट्र से भ्रष्टाचार युक्त केन्द्रीय कृत और गैर जनतांत्रिक होने का क्या कारण है ? और आम आदमी की पार्टी उसे भ्रष्टाचार से मुक्त विकेन्द्रितकृत व जनतांत्रिक राष्ट्र बनाएगी कैसे ? आम आदमी की पार्टी के संचालकों के बयानों घोषणाओं में राष्ट्र के भ्रष्टाचार से युक्त तथा गैर जनतांत्रिक होने का कोई ठोस जवाब या सबूत नहीं दिया है । हां राष्ट्र को भ्रष्टाचार से मुक्त करने का उपाय जरुर बताया गया है । यह वही उपाय है जिसे अन्ना हजारे साहब से लेकर उनके सहयोगी रह चुके श्री केजरीवाल जी पिछले कई  महीनों से बताते रहे हैं। वह उपाय है जन लोक पाल कानून आप को याद होगा कि जन लोकपाल कानून के लिए अन्ना हजारे साहेब ने दो बार अनशन भी लिया था और  बाद में उसी को लेकर राजनितिक पार्टी बनाने के लिए श्री केजरीवाल तथा उनके  कई सहयोगी महीनों से लगे रहे। इस बीच वे और उनके सहयोगी केन्द्रीय मंत्री खुर्शीद आलम , भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी तथा सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा और फिर नरेंद्र मोदी जैसे राज नेताओं के भ्रष्टाचारो का भांडाफोड़ करते रहे।  इसी तरह से उन्होंने कालेधन पर और गैस उत्पादन व वितरण में रिलायंस कम्पनी द्वारा किये गये भ्रष्टाचार को भी उठाया।
वैसे इन व अन्य भ्रष्टाचारियो भंडफोड़ो के बिना भी राष्ट्र व समाज का थोड़ा बहुत समझदार आदमी यह जानता है कि केंद्र व प्रांत की सत्ता सरकारों में बैठे राजनेता व अफसरों की लगभग समूची जमात निजी लोभ लालच के भ्रष्टाचार में डूबी  हुई है और डूबती जा रही है। बस वह यह बात नहीं जानता कि इस भ्रष्टाचार को सर्वाधिक बढावा देने वाले देश व विदेश के धनाढ्य वर्ग व कम्पनिया है क्योंकि क्वाल यही हिस्से हजारों करोड़ों का भ्रष्टाचार करने करवाने में सक्षम हैं। फिर ये धनाढ्य हिस्से अपने धन — पूंजी , लाभ — मुनाफे तथा लूट के अधिकार को अधिकाधिक बढावा देने के लिए देश में नीतियां व कानून बनवाने व  बदलवाने में भी सक्षम हैं और उसे बनवाते व बदलवाते भी रहते हैं।  धन – पूंजी लाभ — मुनाफे के अपने निजी स्वार्थो की पूर्ति में आपसी प्रतिद्वन्दिता भी करते रहते हैं।  इसीलिए ये धनाढ्य हिस्से नीतिगत बदलावों के साथ अपने निजी स्वार्थो की पूर्ति के लिए मंत्रियों सांसदों , विधायकों अफसरों को हर तरह से भ्रष्ट्र बनाते रहे हैं।
इसी का सबूत है कि पिछले बीस सालो में देश दुनिया की धनाढ्य कम्पनियों को अधिकाधिक छूट व अधिकार देने वाली  उदारीकरणवादी तथा निजीकरणवादी नीतियों को लागू किये जाने के बाद सत्ता सरकार से लेकर आम समाज तक में कामचोरी से लेकर धन चोरी तक के भ्रष्टाचार के मामले तेजी के साथ बढ़ते जा रहे हैं।
अर्थनीति व राजनीति से लगभग अज्ञान  आम आदमी भले ही इस सच्चाई को न जान समझ पा रहा हो ,  पर ऊपर के हिस्से से  जुड़े रहे तथा नीतियों कानूनों के जानकार समझदार श्री केजरीवाल व उनके सहयोगी  इसे बखूबी जानते होंगे।  वे इस बात को भी बखूबी जानते होंगे कि लगातार वैश्वीकृत व विकेन्द्रित होती रही अर्थव्यवस्था और उसको अर्थनीति के साथ इस राष्ट्र की राजव्यवस्था व राजनीति का भी केन्द्रीयकरण बढ़ता जा रहा है। क्योंकि इन वैश्वीकृत एवं केन्द्रीयकृत हो रही नीतियों को लागू करने का काम इसी केन्द्रीयकृत राज और उसकी नीतियों के जरिये होना हैं। और होता रहा है । उसी का परिलक्षण है कि वर्तमान दौर में न केवल वैश्विक स्तर पर  उदारीकरणवादी , वैश्वीकरणवादी तथा निजीकरणवादी नीतिया लागू हो रही हैं बल्कि अधिकाधिक केन्द्रीयकृत और अन्तराष्ट्रीय स्तर पर संचालित नीतिया ( उदाहरण ) बाटों — व राज करो की कूटनीति ———शैक्षणिक व सांस्कृतिक नीतिया ( उदाहरण — उपभोक्तावादी सांस्कृतिक नीतिया ) तथा सैन्य नीतिया भी लागू होती जा रही हैं। उन्हीं नीतियों के साथ   धनाढ्य व उच्च वर्गो को अधिकाधिक छूट देने के साथ जनसाधारण के  रूप में मौजूद आम आदमी के जनतांत्रिक अधिकारों की कटौती भी बढती जा रही है।  फलस्वरूप देश की राज व्यवस्था आम आदमी के लिए अधिकाधिक गैर — जनतांत्रिक भी बनाई जाती रही है।
लिहाजा सत्ता सरकार से लेकर समाज तक में बढ़ता  भ्रष्टाचार सत्ता का केन्द्रीयकरण और आम आदमी के प्रति उसका गैर  जनतांत्रिककरण अलग — अलग चलने वाली प्रक्रिया नहीं है। बल्कि वह वर्तमान  दौर की वैश्वीकृत की जा रही ” बाजारवादी — जनतांत्रिक ” पर आम आदमी के लिए गैरजनतांत्रिक व्यवस्था को बढावा देने व अन्तराष्ट्रीय नीतियों व कानूनों के परिणाम हैं। जिसका परिलक्षण आम आदमी के जनतांत्रिक अधिकारों की कटौती के रूप में आता जा रहा है।
इसीलिए इन हालातों में कोई भी भ्रष्टाचार विरोधी तथा आम आदमी के लिए जनतांत्रिक राष्ट्रीय नीति व कानून तब तक कारगर नहीं हो सकता जब तक देश दुनिया के धनाढ्य वर्गो व कम्पनियों पर  भरी रोक व नियंत्रण न लगाया जाए।  इस नियंत्रण के बिना आम आदमी के जनतांत्रिक अधिकारों को बढाने का काम हरगिज नहीं किया जा सकता है।  इस सच्चाई के वावजूद यदि ” आम आदमी ” की पार्टी या कोई अन्य पार्टी संगठन या शक्ति धनाढ्य वर्गो पर यह नियंत्रण लगाने की बात करता तो उसका भ्रष्टाचार का विरोध सतही व खोखला ही साबित होना है।  ऐसी स्थिति में महज आर्थिक  भ्रष्टाचार के भंडाफोड़ से अथवा जन लोकपाल कानून से भ्रष्टाचार को खत्म कर  देने की घोषणा को भी अन्तोगत्वा सतही व खोखली साबित होना है। चाहे यह कोई ऐसा  जानबूझकर कर करे या अनजाने में करे।  यह कदम आम आदमी के नाम पर आम आदमी को उसी तरह से धोखा देने वाला साबित होते रहते है ,। जैसे कि ” राष्ट्र हित ” ” जनहित ” तथा धर्म जाति इलाका के विभिन्न समुदायों के हितों के नाम पर बनी और धनाढ्य वर्गों के हितों को आगे बढाती रही तमाम पार्टियों के क्रियाकलाप जनसाधारण को धोखा देने वाले साबित होते रहे हैं।  ये पार्टियां अपने क्रियाकलापों से और अपने नाम नारों के विपरीत आम आदमी के  आशा व विश्वास को तोडती रही है । उसे बारम्बार धोखे का शिकार बनाती रही है।
जहां तक आम आदमी की पार्टी के आम आदमी की वास्तविक पार्टी होने का सवाल है ? तो इसका निर्णय हम सुधि पाठको के उपर छोड़ रहे हैं।  वे ही आम आदमी की पार्टी के उद्देश्यों से उसके संचालन में शामिल ख़ास व उच्च स्तरीय लोगों से तथा उसे एक ही दिन में उपस्थित सदस्यों से मिले एक करोड़ रूपये से अधिक के चंदे आदि से इस नतीजे पर स्वंय पहुंचे कि यह पार्टी आम आदमी की पार्टी है या आम  आदमी के नाम पर बनी ख़ास व उच्च वर्गीय लोगों की पार्टी है ।

सुनील दत्ता …..पत्रकार

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here