डीएसपी जियाउल हक की हत्या से दरकती सपा की ‘सोशल इंजीनियरिंग’

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उत्तर प्रदेश के प्रतापपुर जिले के वलीपुर गांव में डीएसपी जियाउल हक की खौफनाक हत्या से जहां सूबे की बदतर कानून व्यवस्था की एक बार फिर से पोल खुल गई है, वहीं इस घटना का सीधा असर समाजवादी पार्टी के ‘सोशल इंजीनियरिंग’ पर स्पष्ट रूप से पड़ता दिख्र रहा है। मुसलमानों की रहनुमाई करने वाले आजम खान ने यह कह कर कि इस घटना से अखिलेश सरकार चेहरा दिखाने लायक नहीं रही, यह संकेत देने की कोशिश की है कि सूबे में मुसलमानों को ‘टेक ग्रांटेड’ समझने की भूल करना सपा के लिए महंगा पड़ सकता है। जियाउल हक की पहचान एक तेजतर्रार पुलिस अधिकारी के रूप में तो थी ही, एक जहीन और खुले हुये विचारों वाले व्यक्ति के रूप में भी पढ़े-लिखे मुसलमानों के बीच उन्हें मकबूलियत हासिल थी। कुल मिलाकर मुसलमानों के बीच में वह एक ‘रोल मॉडल’ थे। उनका किरदार एक फंतासी नायक की तरह था, जो अपने बलबूते पर अपना मुकाम खुद तय करता है। जिस तरह से उनकी हत्या की गई है उससे सूबे के मुसलमान खासे नाराज हैं। दिल्ली जामा मस्जिद के इमाम सैय्यद बुखारी ने भी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की सुरक्षा को लेकर तल्खी दिखाते हुये प्रत्यक्षरुप से सपा सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है।
हालांकि सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा ‘डैमेज कंट्रोल’ की पूरी कोशिश की जा रही है। डीएसपी जिया उल हक की पत्नी परवीन आजाद के कहने पर पूरे प्रकरण की सीबीआई जांच की सिफारिश करके भले ही उन्होंने मुसलमानों को संतुष्ट करने की दिशा में एक ठोस कदम उठाया हो, लेकिन जिस तरह से वह परवीण आजाद से मिलने गये और दो तरफा हिंसा में मारे गये प्रधान नन्हें यादव और उनके भाई के परिजनों की उपेक्षा की है उससे सूबे के यादवों का दिल खट्टा हो गया है। नन्हें यादव के परिजन तो भूख हड़ताल पर बैठ गये हैं और मांग कर रहे हैं कि अखिलेश यादव तत्काल उनके गांव आये। परिजनों का कहना है कि उनके घर के दो पुरुष सदस्य मारे जा चुके हैं, और परिवार के बाकी बचे हुये पुरुषों को झूठे मुकदमों फंसाया जा रहा है। अब आनन फानन में अखिलेश यादव यहां भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं।
यदि सूबे में मुसलमानों और यादवों के मनोविज्ञान को संभालने में अखिलेश यादव से जरा सी भी चूक हुई तो इसका खामियाजा सपा को आगामी लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। सपा का पूरा तंत्र अंदर से बेचैनी की स्थिति में है। यहां तक कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के भी पसीने छूट रहे हैं। हलक से आवाज नहीं निकल रही हैं। सूबे की सियासत पर नजर रखने वाले जानकारों का कहना है कि इस घटना से सूबे में यादवों और मुसलमानों का गठबंधन खतरे में पड़ गया है। दरार की शुरुआत तो ही गई है, अब देखना है कि सपा प्रमुख इस दरार को कहां तक पाट पाते हैं।
जियाउल हक की हत्या में कुंडा के विधायक राजा भैया का नाम आने से राजपूत तबका पहले ही बिगड़ा हुआ है। राजा भैया के दरबार में अंदरखाते चलने वाली बैठकों में सूबे के तमाम धाकड़ राजपूत नेता सपा सरकार को लेकर कसमसाते हुये नजर आ रहे हैं। इनकी मुद्रा कुछ इसी तरह है कि ‘यदि राजा भैया को हाथ लगाया तो ईंट से ईंट बजाकर रख देंगे।’ सपा सरकार मुख्य रूप से मुस्लिम, यादव और राजपूत गठजोड़ पर ही टिकी हुई है। सूबे की सामाजिक संरचना के ये तीनों घटक जिनके बूते सपा सरकारी की वापसी हुई है डीएसपी जियाउल हक हत्या कांड के बाद से एक दूसरे के खिलाफ आक्रमक मुद्रा अख्तियार किये हुये हैं, जिसका प्रभाव सूबे की दूरगामी राजनीति पर पड़ना लाजिमी है। हालांकि राजा भैया इस बात से साफ इंकार कर चुके हैं कि डीएसपी जियाउल हक की हत्या में उनका कोई हाथ है। इतना नहीं इस हत्याकांड के मुख्य आरोपी गुड्डू का बचाव करते हुए उन्होंने यहां तक कहा है कि घटना वाले दिन वह लखनऊ में था।
जानकारों का कहना है कि यदि डीएसपी जियाउल हक हत्या कांड में राजा भैया की गिरफ्तारी होती है तो सूबे में राजपूत पूरी तरह से सपा से अलग हो जाएंगे। केंद्र में राजनाथ सिंह द्वारा भाजपा की कमान संभालने के बाद वैसे भी राजपूतों का झुकाव का भाजपा की तरफ हुआ है। राजा भैया की गिरफ्तारी से सपा का राजपूत बेस खिसक सकता है। वैसे आधिकारिक तौर पर राजा भैया अखिलेश सरकार का हर स्तर पर समर्थन करने की बात कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश पुलिस राज भैया पर हाथ डालने से साफ तौर से हिचकती रही है। अब तो यह मामला सीबीआई के पास चला गया है, इसलिए यूपी पुलिस इस मामले से अपना पल्ला पूरी तरह से झाड़ चुकी है। लेकिन सूबे के मुलसमान राजा भैया के खिलाफ जेहादी मुद्रा अख्तियार किये हुये हैं। लखनऊ में तो मुलसमानों द्वारा सरेआम राजा भैया का पुतला फूंक कर उनकी तत्काल गिरफ्तारी की मांग की गई है।
सामाजिक सियासी समीकरण से इतर इस घठना ने सूबे में आम लोगों को भी खौफजदा किया है। डीएसपी जियाउल हक एक निर्भिक अधिकारी के तौर पर जाने जाते थे। जिस तरीके से उनकी हत्या हुई है उससे यही संदेश गया है कि जब सूबे में एक पुलिस अधिकारी सुरक्षित नहीं है तो फिर आम आदमी कैसे सुरक्षित रह सकता है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपराध पर नियंत्रण करने के दावे बढ़ चढ़ कर करते रहे हैं, लेकिन सपा प्रमुख मायावती द्वारा बिगड़ती कानून व्यवस्था का हवाला देकर सूबे में राष्टÑपति शासन लगाने की बात पर बचकाना बयान देते हुये कह रहे हैं कि यदि उनके शासन में यदि यह घटना घटती तो क्या वह पीड़ित के परिजन से मिलने वह जाती। इसके अलावा जिस तरह से डीएसपी जियाउल हक को बलवाइयों की चंगुल में फंसा देखकर अन्य पुलिस वाले फरार हो गये उससे सूबे में अपराधियों के बुलंद हौसले और पुलिस के टूटे हुये मनोेबल को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि डीएसपी जियाउल हक अपनी इमानदारी की वजह से अपराधियों की आंखों पर चढ़े हुये थे, मौका मिलते ही उन्हें निपटा दिया गया।
अब देखना है कि सीबीआई इस घटना में कितना पेशेवराना रुख अख्तियार करती है। चूंकि मामला पूरी तरह से सियासत जुड़ा हुआ है, और सीबीआई का इस्तेमाल केंद्र सरकार द्वारा ‘टूल्स’ के रूप में करने की पुरानी रवायत रही है। ऐसे में सच तक पहुंच जाने के बावजूद उसका इस्तेमाल सूबे में बनते-बिगड़ते ‘सोशल इंजीनियरिंग’ को ध्यान में रख किये जाने की पूरी संभावना है।

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