‘लिव इन रिलेशन’ की त्रासदी

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रूसी क्रांति के महान नेता लेनिन के साथ क्रूप्सकाया लंबे समय से रह रही थी। वह लेनिन का हर तरीके से ख्याल रखती थी। पार्टी के अंदर चिठ्ठी पत्री देखने के अलावा वह लेनिन के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों में भी सक्रिय रहती थी। जब एक मित्र ने लेनिन को टोकते हुये कहा था कि आप क्रूप्सकाया से शादी क्यों नहीं कर लेते, ऐेसे साथ रहने का क्या तुक है तो लेनिन ने जवाब दिया था, ‘जारशाही कानूनों को ध्वस्त करने के लिए मैं लड़ रहा हूं, चर्च की सत्ता में मुझे यकीन नहीं है। ऐसे में यदि मैं क्रूप्सकाया से शादी करूंगा तो मुझे या तो जारशाही कानूनों को मानना होगा या फिर चर्च को। क्या मेरा यह कहना काफी नहीं है कि क्रूप्सकाया मेरी पत्नी है।’ इसमें कोई दो राय नहीं है कि ‘लिव-इन-रिलेशन’ की अवधारणा गैरमुल्की समाज में पहले से है और छिटपुट रूप में इसके व्यावहारिक रूप भी दिखते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में इस अवधारणा ने व्यावहारिक तौर पर जोड़ पकड़ा है, खासकर दुनियाभर के मेट्रे सिटी में। और इसके भयावह परिणाम भी सामने आ रहे हैं, जैसा कि दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के सीनियर इंस्पेक्टर बद्रीश दत्त और गीता शर्मा के मामले में देखने को मिल रहा है।
बद्रीश दत्त और गीता शर्मा के शव गीता के गुड़गांव के सेक्टर 52 स्थित आरडी सिटी स्थित घर में मिले। पुलिस इसे हत्या और आत्महत्या के मामले से जोड़ कर देख रही है। बहरहाल सचाई व्यापक तफ्तीश के बाद ही सामने आ पाएगी। फिलहाल इस दोहरे हत्याकांड से यह प्रश्न फिर से उठ खड़ा हुआ है कि आखिर ‘लिव इन रिलेशन’ का भविष्य क्या है? अक्सर इसका अंत त्रासदी के साथ ही क्यों होता है? वै कौन से कारण हैं कि प्रचलित वैवाहिक व्यवस्था को नकार कर लोग ‘लिव इन रिलेशन’ की स्थिति में आना मुनासिब समझते हैं और फिर बात बिगड़ने पर एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं?
लेनिन एक सुलझा हुआ नेता था। अपने मजूबत इरादों से वह विश्व व्यवस्था को चुनौती देते हुये एक नई दुनिया गढ़ने की पुरजोर कोशिश कर रहा था। उनके जेहन में सैद्धांतिक तौर पर पूरा समाज व्यवस्थित हो चुका था, बस उसे व्यावहारिक रूप देना बाकी रह गया था। वैवाहिक व्यवस्था को लेकर भी उसकी सोच पूरी तरह से स्पष्ट थी। लेनिन का क्रूप्सकाया के साथ जुड़ाव एक साझा उद्देश्य को लेकर था, इसलिए उनके बीच वैवाहिक व्यवस्था को लेकर कभी कोई प्रश्न खड़ा नहीं हुआ। दोनों आजीवन पति-पत्नी के तौर पर एक दूसरे के साथ खड़े रहे। इसमें कोई दो राय नहीं है कि क्रूप्सकाया और लेनिन के बीच के संबंध एक स्त्री और पुरुष के लिए आदर्श संबंध थे। दुनियाभर में महिला मुक्ति की वकालत करने वाले नारीवादी संगठनों और इनके नेताओं ने लेनिन और क्रूप्सकाया के संबंधों पर बहुत कुछ लिखा सुना है। सैद्धांतिक तौर पर ‘लिव इन रिलेशन’ के पक्ष में तमाम तरह के तर्क प्रस्तुत करते हुये इसे महिला मुक्ति आंदोलनों के साथ  जोड़ने की कोशिश की जाती रही है। विभिन्न धर्म ग्रंथों द्वारा स्थापित विवाह के तमाम प्रतीक चिन्हों को फेंककर स्वतंत्र महिला की अवधारणा को ठोस रूप में लाने के लिए लंबी कवायद का ही यह नतीजा है कि आज ‘लिव इन रिलेशन’ फैशन की तरह चलन में है। इसे एक ठोस प्रगतिशील कदम के रूप में पेश करने की कोशिश की जा रही है।
यदि मनोवैज्ञानिक तौर पर इस मसले को टटोला जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि ‘लिव इन रिलेशन’ की स्थिति में कोई एक-दो मुलाकत में नहीं आ जाता। इसके लिए मुलाकातों के सिलसिलों का बदस्तूर जारी होना निहायत ही जरूरी है। यह दूसरी बात है कि बार-बार मुलाकात के पीछे शारीरिक जरूरत अहम भूमिका निभा रही हो या फिर संपत्ति या रुतबा हासिल करने की ललक हो या फिर यह भी संभव है कि वाकई में मोहब्बत जैसी कोई मजबूत फीलिंग काम कर रही हो। कहा जाता है कि एक स्त्री और पुरुष के आपस के संबंध कितने स्तर पर कितनी जटिलता के साथ बने होते हैं, उसे कोई नहीं जानता है। यहां तक कि इस तरह से संबंधों को जीने वाले स्त्री और पुरुष भी इसके हर पक्ष से वाकिफ नहीं होते हैं। यही वजह है कि जितनी जल्दी इस तरह के संबंध बनते हैं और परिपक्कव होते हैं, उतनी जल्दी इसमें बिखराव भी आ जाता है। इंस्पेक्टर बद्रीश दत्त और गीता शर्मा पिछले एक साल से साथ-साथ रह रहे थे। स्वाभाविक है कि इनकी मुलाकात इससे और पहले हुई होगी। चूंकि बद्रीश दत्त शादीशुदा होने के बावजूद अकेले रह रहे थे, अत: शारीरिक और जेहनी तौर पर उन्हें एक महिला की जरूरत महसूस हुई होगी। गीता शर्मा भी एक जासूसी संस्था चला रही थी तो उन्हें इंस्पेक्टर बद्रीश दत्त के रूप में एक माकूल साथी मिल गया था। इस लिहाज से देखा जाये तो दोनों की जरूरतें एक-दूसरे के करीब ले आई और फिर किसी बात को लेकर तनाव बढ़ते ही कत्ल और आत्महत्या तक की नौबत आ गई। हालांकि गीता शर्मा द्वारा बद्रीश दत्त का कत्ल और आत्महत्या की थ्योरी अभी सिर्फ दिल्ली पुलिस द्वारा ही दी जा रही है। अभी तह तक जाना बाकी है।
‘लिव इन रिलेशन’ का जोर महानगरों में ज्यादा है। गांव-कस्बों से कट कर लोग यहां आते हैं और फिर अपनी हैसियत के मुताबिक जहां-तहां अपना ठिकाना बना लेते हैं। एक तरह से देखा जाये तो भीड़ में लोग खुद को अकेला और कुछ भी करने के लिहाज से सुरक्षित भी समझते हैं। यही मनोवृत्ति उन्हें लिव इन रिलेशन के लिए प्रेरित करती है। मनपसंद साथी मिलने के बाद सहजता से उसके साथ रहने के लिए तैयार हो जाते हैं। महानगर में रहने की वजह से उनके घर वालों को इस बात की भनक तक नहीं लगती। मामला तब सनसनीखेज हो जाता है, जब उनके साथ कोई हादसा पेश आ जाता है। जैसा कि इंस्पेक्टर बद्रीश दत्त और गीता शर्मा के संदर्भ में हुआ। जब दोनों की जानें चली गईं तब जाकर पूरी दुनिया को पता चला कि इस तरह से संबंध के नतीजे कितने भयानक हो सकते हैं।
हालांकि ‘लिव इन रिलेशन’ के कुछ रोचक सामाजिक और आर्थिक पहलू भी सामने आ रहे हैं। जानकारों का कहना है कि महानगरों में पैसों की मारामारी है। बड़ी संख्या में युवक और युवतियां काम की तलाश या फिर शिक्षा हासिल करने के लिए महानगरों की ओर रुख करते हैं। ऐसे में दुख या मुसीबत के समय उन्हें एक कंधे की तलाश होती है और यही तलाश उन्हें ‘लिव इन रिलेशन’ की तरफ ले जाती है। दो लोग आपस में मिलकर रहते हैं तो उनका खर्च भी कम आता है और उन्हें इस बात का अहसास भी नहीं होता है कि वे महानगर में अकेले हैं। अमूमन कुछ समय के बाद ये लोग अलग हो जाते हैं और फिर किसी अन्य के साथ विधिवत वैवाहिक संबंध स्थापति करके जिंदगी को ढर्रे पर लाने में कामयाब हो जाते हैं। ‘लिव इन रिलेशन’ में असंतुलन की स्थिति पार्टनर के शादीशुदा होने पर होती है। एक बार खटपट होने इस तरह से संबंधों को संभालना मुश्किल हो जाता है। इंस्पेक्टर बद्रीश दत्त और गीता शर्मा के बीच किस बात को लेकर तनातनी थी, इस पर से अभी पर्दा उठना बाकी है। लेनिन का युग काफी पीछे छूट चुका है। महिलावादी संगठन महिलाओं की मुक्ति का लाख नारा लगा लें, यह हकीकत है कि खुद महिलाएं भी अपनी दैहिक सीमा से आगे निकल अपने वजूद को पूरी मजबूती से स्थापित करने की कोशिश नहीं कर रही हैं। ऐसे में लिव इन रिलेशन के तहत सबकुछ पाने की तमन्ना में वह भी इसकी त्रासदी का शिकार हो रही हैं। इस तरह के संबंध पुरुषों के लिए भी मृग मरीचिका साबित हो रहे हैं।
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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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