चीन के साथ बेहतर संबंध वक्त की जरूरत

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चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग की भारत यात्रा उस समय हो रही है, जब लद्दाख में चीनी फौज की घुसपैठ को लेकर हाल में जारी तनाव का असर भारतीयों के दिले-दिमाग में अभी भी बरकरार है। यही वजह है कि नई दिल्ली में ली केकियांग की भारत यात्रा का विरोध भी हो रहा है। लोग सड़कों पर उतर कर ली के पुतले फूंक रहे हैं और चीन के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं। हालांकि भारत के साथ-साथ चीन के लोग भी इस बात को महसूस कर रहे हैं कि बदलते दौर की चुनौतियों से निपटने के लिए दोनों देशों को एक दूसरे के साथ मजबूती से जुड़ना होगा। सीमा विवाद की वजह से दोनों देशों के बीच तल्खी की स्थिति से बचने की भरपूर कोशिश होनी चाहिए ताकि अन्य क्षेत्रों में भारत और चीन के आपसी हितों को धक्का न लगे। चीन भारत को खासा अहमियत दे रहा है। प्रधानमंत्री बनने के बाद ली ने सबसे पहले भारत की यात्रा करके यह स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले दिनों में चीन भारत के साथ अपने संबंधों को लेकर पूरी तरह से संवेदनशील है क्योंकि भारत और चीन के संबंध कई स्तर पर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।
ली केकियांग भारत यात्रा बहुत पहले से प्रस्तावित था। जिस तरह से चीनी फौज अचानक वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन करते हुये लद्दाख में दाखिल हो गई थी, उसे देखकर तो  यही लग रहा था कि ली की भारत यात्रा खटाई में पड़ने वाली है। लेकिन दोनों देशों के कूटनयिकों और सैनिक अधिकारियों ने इस मसले को हल करने में अपनी पूरी शक्ति झोंक दी और अंतत: चीनी फौज पीछे हटने के लिए राजी हो गई। ली भी यह कतई नहीं चाहते थे कि दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति में वह भारत की यात्रा करें। उनकी कोशिश दोनों देशों के बीच आपसी संबंधों को और मजबूत करने की है। चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत भी मान रही है कि भारत और चीन के मुस्तकबिल एक दूसरे से जुड़े हुये हैं। ऐसे में दोनों देशों के बीच विवादास्पद मसलों को छोड़ कर आगे बढ़ने में ही समझदारी है। इसके पहले चीन के राष्टÑपति शी जिनपिंग ने जोर देते हुये कहा था कि भारत और चीन के बीच जो सीमा विवाद है, उसे हल करना आसान नहीं है। यह एक जटिल मसला है और हमें विरासत में मिली है। यदि हमलोग लगातार संपर्क  में रहे और संवाद करते रहे तो एक दिन हमलोग इस मसले को लेकर तार्किक परिणति पर पहुंच सकते हैं, जो दोनों पक्षों को स्वीकार्य होगा। भारत की तीन दिनी यात्रा करके चीनी प्रधानमंत्री ली चीनी राष्टÑपति के इसी नजरिये को आगे व्यावहारिक तौर पर आगे बढ़ाने की कवायद कर रहे हैं।
भारत के नीति निर्धारक भी इस बात को अच्छी तरह से समझ रहे हैं कि चीन जैसे विशाल पड़ोसी देश के साथ टकराव का रास्ता दोनों देशों के हित में नहीं है। यही वजह है कि लद्दाख में चीनी घुसपैठ के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह लगातार यही कहते रहे कि यह एक स्थानीय मसला है और जल्द ही इसे सुलटा लिया जाएगा। हालांकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की इस बात को लेकर जबरदस्त आलोचना भी होती रही लेकिन इस मसले को वह सैनिक हस्तक्षेप के बजाय कूटनीतिक सूझबूझ से हल करना चाह रहे थे और इसमें वह पूरी तरह से सफल भी रहे। एक अर्थशास्त्री होने के नाते प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पता है कि जंग अवाम के लिए हमेशा बुरी ही होती है, जहां तक संभव हो सके, इसे टालना चाहिए। फिलहाल चीन को भी जमीन के मसले पर भारत के साथ जंग करके कुछ हासिल नहीं होने वाला है। चीन के आर्थिक हित भारत के साथ गहरे रूप से जुड़े हैं।
भारत और चीन के बीच व्यापार संतुलन पूरी तरह से चीन के पक्ष में है। भारत तथा चीन के बीच पिछले वर्ष द्विपक्षीय व्यापार 66 अरब डॉलर का था और इसके साथ ही चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी के रूप में उभर कर सामने आया। हालांकि व्यापार असंतुलन 28.87 अरब डॉलर का हो गया है, जिसमें पलड़ा चीन की ओर झुका हुआ है। भारत के बाजार चीनी समानों से भरे हुये हैं और प्रतिदिन इनका खपत भारत में बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में चीन यह कतई नहीं चाहेगा कि सीमा विवाद को लेकर भारत के साथ वह अपने संबंध को बिगाड़ कर आर्थिक नुकसान उठाने की स्थिति में आ जाये। व्यापारिक नजरिये से चीन भारत को कितना महत्वपूर्ण मान रहा है, इसे ली की भारत यात्रा के दौरान उनके पड़ाव से समझ सकते हैं। ली अपना अधिकतर समय भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में व्यतीत कर रहे हैं। भारतीय नीति निर्धिारकों से रस्मी मुलाकात के बाद वह मुख्य रूप से अपने साथ आये अर्थ जगत के प्रतिनिधियों की अगुवाई करते हुये उन्हें भारत में अधिक से अधिक संभावनाओं को तलाश करने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं। अब भारत को चीन के साथ सीमा पर उलझने के बजाय यह सोचने की जरूरत है कि दोनों देशों के बीच व्यापार संतुलन को कैसे दुरुस्त करें।
चीन के राष्टÑपति शी जिनपिंग शुरू से ही दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के हामी रहे हैं ताकि चीन को व्यापारिक लिहाज से भारत में अधिक से अधिक पैर पसारने का मौका मिले। आबादी और भू-भाग के लिहाज से दोनों देश विशाल देशों की श्रेणी में शुमार होते हैं। ऐसे में दोनों देशों को आपस में मिलकर विकास की दिशा में कदम बढ़ाने में सहूलियत होगी। प्रधानमंत्री ली भी यही चाहते हैं कि दोनों देशों की बीच आपसी विश्वास का माहौल बढ़े।
दुुनिया तेजी से बदल रही है और सभी जगह आर्थिक हितों और विकास की बात हो रही है। तेजी से बदलती दुनिया में भारत और चीन की महत्वपूर्ण भूमिका से इन्कार नहीं किया जा सकता है। लेकिन साथ ही इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर भी गहरे विवाद हैं। भारत का कहना है कि चीन के साथ लगती हुई 4000 किमी जमीन को लेकर विवाद है, जबकि चीन सिर्फ अरुणाचल प्रदेश के 2000 किमी जमीन को ही विवादास्पद मानता है, जिसे वह दक्षिणी तिब्बत कहता है। चीनी राष्टÑपति शी जिनपिंग का कहना है कि दोनों देशों के बीच संवाद सही दिशा में चलती रहे। आधारभूत संरचना, परस्पर निवेश और अन्य क्षेत्रों में हमें मिलकर काम करना है। और यह संवाद से ही संभव है। राष्टÑपित शी जिनपिंग ने भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक संबंधों को भी मजबूत करने पर जोर देते रहे हैं। अब प्रधानमंत्री ली इस दिशा में क्या कुछ कर पाते हैं, देखने वाली बात होगी। हालांकि अब तक मिली जानकारी के मुताबिक सांस्कृतिक संबंधों को दुरुस्त करने करने के लिए अलग से कुछ खास प्रयास नहीं किया गया है।
भारत-चीन संबंधों पर नजर रखने वाले जानकारों का कहना है कि यह सच है कि एक दूसरे के साथ शांतिपूर्वक सहयोग करते हुये आगे कदम बढ़ाना दोनों देशों की जरूरत है और इस जरूरत को दोनों देश लंबे समय तक अनदेखी नहीं कर सकते हैं। वैसे फिलहाल ली की यात्रा से ज्यादा उम्मीद करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि लद्दाख में चीनी घुसपैठ की वजह से चीन की विश्वसनीयता एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गई है। यदि ली की यात्रा से दोनों देशों के बीच बातचीत पटरी पर चलती रहती है तो इसे उपलब्धि ही माना जाना चाहिए। हाल ही में विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने चीन की यात्रा करके इसकी शुरुआत कर दी है। ली के पास भारत को अपने विश्वास में लेने का पूरा मौका होगा। इस मौके का वह किस तरह से इस्तेमाल करते हैं, यह पूरी तरह से उन पर निर्भर है। भारत में एक खेमा जहां चीन की मुखालफत कर रहा है, वहीं दूसरा खेमा चीन के साथ बेहतर संबंध का हामी है।

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