कितनी पीपलियों को लाइव करेंगे एक आमिर खान ?

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अनुषा रिजवी एक पत्रकार थी और अब आमिर खान के प्रोडक्शन में बन चुकी फिल्म पीपली लाइव की निर्देशक हैं। फिल्म 13 अगस्त को रिलीज हो चुकी है। फिल्म के रिलीज होने से पहले कई विवाद भी फिल्म से जुड़ चुके हैं। पीपली नामक एक गांव के इर्द-गिर्द रचा गया सटायरिक ड्रामा गांवों में उतना चर्चा में नहीं है, जितना महानगरों दिल्ली और मुंबई में हैं। ऐड फिल्म कंपोजर राम संपत ने रघुबीर यादव और टोली द्वारा गाए गए गाने सखी सैय्यां त खूबई मात हैं / महंगाई डायन खाय जात है को रिमिक्स किया है शी इज ए डायन शीर्षक से। गाना मुंबई के पबों और डांस फ्लोर्स पर एक्सट्रा बीट्स के साथ बज रहा है। युवा नाच रहे हैं और पीपली में सनाटा है।

अनुषा की माने तो पीपली कोई गांव नहीं बल्कि एक मेट्रो है जो हिंदुस्तान के हर जिले में मौजूद है। लेकिन भोपाल से कुछेक  किलोमीटर की दूरी पर पैदा हुई इस पीपली के कायापलट का जिमा सिर्फ आमिर खान को जाता है। अनुषा रिजवी किस्मत की धनी हैं कि उन्होंने आमिर खान को द ज़लिंग के लिए अप्रोच किया था। फिल्म का पहला शीर्षक यही था, लेकिन आमिर के साथ जुड़ते ही यह पीपली हुई और अब लाइव हो रही है।

आमिर के अलावा मुंबईया फिल्मों का शायद ही कोई निर्माता इसमें पैसे लगाने को तैयार होता और गलती से कोई लगा भी देता तो इसकी कोई गारंटी नहीं थी कि इसे मीडिया उतनी इंपार्टेंस देता और इतने सारे मल्टीप्लेक्स-सिंगल स्क्रीन के थिएटर मिलते। अच्छे सिनेमा को ब्रांड के अभाव में इग्नोर र देना मुंबईया सिनेमा का पुराना शगल बन चुका है। मुश्किल से एक साल हुआ होगा जब अमित राय की फिल्म रोड टू संगम रिलीज हुई थी। फिल्म में परेश रावल और ओमपुरी लीड रोल में थे, लेकिन कोई ब्रांडेड स्टार नहीं था। हममें से बहुत कम ही लोग ऐसे होंगे जिन्होंने यह फिल्म देखी होगी। मुंबई और दिल्ली से बाहर शायद ही फिल्म के कोई प्रदर्शन हुए होंगे। जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और लास एंजेलिस के फिल्म समारोहों में फिल्म विदेशी भाषा की सर्वोच्च फिल्म के पुरस्कार से नवाजी जा चुकी है। फिल्म का सीधा संबंध राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आखिरी इच्छा से था, जिसमें कहा गया था कि उनके अस्थियों के कई हिस्से बनाकर देशी की चारों कोनों में नदियों में विसर्जित की जाए। मानवीय भूल के चलते अस्थियों का एक हिस्सा उड़ीसा के बैंक लॉकर में सालों रखा रह गया था, जिसे संगम में विसर्जित करने के लिए उसी ज़ेर्ड कार के इंजन का सहारा लिया गया, जिसपर उनकी शवयात्रा निकली थी। हिंदु-मुस्लिम तनावों के बीच हशमतउल्ला नामक एक मेकेनिक अपने मजहब को परे रखकर इंजन की रिपेयरिंग करता है। फिल्म में नॉन वायलेंस को आधार बनाकर बेहतरीन संदेश दिया गया है। लेकिन अमित राय की किस्मत अनुषा रिजवी जितनी भाग्यशाली नहीं थी, उन्हें कोई आमिर खान नहीं मिला। फिल्म को पूरे देश में सौ से भी कम थिएटर मिले थे।

कुछ ऐसा ही हाल निर्देशक सोहल ततारी की फिल्म समर ऑव 2007’ का हुआ था। फिल्म दो साल पहले ठीक उसी समय आई थी जब किसानों की आत्महत्या का दौर विदर्भ में शुरू हुआ था। मुंबई के पांच डॉक्टर आखिरी साल की ट्रेनिंग के लिए महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाके में जाते हैं, वहां एक के बाद एक हो रही आत्महत्याओं की वजह से उनका मन विचलित हो जाता है। उनका रवैया बिगड़ती हालत देख पलायनवादी हो जाता है, लेकिन आशुतोष राणा के रूप में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का डॉक्टर उनका मनोविज्ञान बदल देता है। सुहेल की यह फिल्म भी कब आई और कब गई पता ही नहीं चला। 

हालिया रिलीज तेरे बिन लादेन का नया हास्य आपको पेट पकड़ कर हंसने के लिए मजबूर कर देता है। अगर अभी त आपने नहीं देखी है तो देख लीजिए क्योंकि फिल्म अपने चौथे हफ्ते में भी सिनेमाघरों में डटी हुई है। पीपलियों का लाइव पहले कई बार किया जा चुका है लेकिन हमारे आपके नजरिए और मार्केट के नए समीकरण की वजह से उनके एंकर या तो गायब हो गए या फिर हाशिए पर हैं। जब हम अच्छे सिनेमा को खुद इग्नोर करते रहे हैं तो हमें यह कहने से पहले कि अच्छा सिनेमा नहीं बन रहा है सोचना चाहिये।

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