बाइट, प्लीज (part 17)

0
40

34.

रिपोटर महादेवा एक पोलिटिकल खबर करने के लिए इनकम टैक्स गोलंबर के पास खड़ा था। उसके हाथ में कंट्री लाइव का लोगो था। एक कार का अगल चक्का उसके उसके दायें जूते पर पर चढ़ते हुये निकल गया। उसे हल्के दर्द का अहसास तो हुआ, लेकिन काम में तल्लीन रहने की वजह से उसने इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। कवरेज पूरा करने के बाद जब वह दफ्तर में आकर बैठा तब उसे महसूस हुआ कि उसके पंजे के ऊपर तेज दर्द हो रहा है। दर्द की अनदेखी करते हुये वह रांची फीड भेजने के काम लग गया, लेकिन दर्द बढ़ता ही गया। यहां तक कि उसे ठीक से चलने में भी परेशानी हो रही थी। काम निपटाने के बाद वह सीधे घर चला गया।

रात में पेन किलर खाने के बाद उसे बड़ी मुश्किल से नींद आई। दूसरे दिन सुबह एक खबर का पीछा करे हुये उसे एक बार फिर एयरपोर्ट की तरफ भागना पड़। उसे चलने में परेशानी हो रही थी, पैर ठीक से जमीन से ऊपर नहीं उठ रहे थे। जब भी वह कदम बढ़ाने की कोशिश करता तो उसके पूरे पैर में तेज दर्द का एक लहर सा उठता था। तेज दर्द से बेहाल होकर आखिरकार उसे एक डाक्टर के पास जाना ही पड़ा और डाक्टर ने तत्काल एक्स-रे कराने को कहा। एक्सरे रिपोर्ट देखते ही डाक्टर ने स्पष्ट कर दिया कि पंजे की कई हड्डियां चकनाचूर हो गई हैं, प्लास्टर चढ़ाने के बाद वह सीधे बेड रेस्ट में चला जाये। आफिस में इसकी विधिवत सूचना देने के बाद वह छुट्टी पर चला गया।

35.

नीलेश और सुकेश की वापसी के बाद भुजंग कुछ उखड़ा-उखड़ा सा रहने लगा था। रिपोटिंग की कमान तो उसके हाथ से पहले ही पूरी तरह से निकली हुई थी, अब प्रोग्रामिंग भी फिसलने लगा था। सुकेश, नीलेश और रंजन पहले से ही उसके धुर विरोधी बने हुये थे, दूसरे लोग भी अपने तरीके से उसके तमाम उटपटांग आदेशों की हवा निकाल देते थे। अपने प्रभाव को स्थापित करने की वह हर संभव कोशिश कर रहा था। इसी बीच संदीप सिंह का दिल्ली से पटना आगमन हुआ। कई कारणों से संदीप सिंह लंबे समय से गायब थे, हालांकि कहा यही जा रहा था कि वह दिल्ली में बैठकर चैनल की हर गतिविधि पर नजर रखे हुये हैं।

अचानक संदीप सिंह के पटना आने की खबर सुनकर भुजंग काफी खुश हुआ और फोन पर उसने तत्काल दुआ सलाम किया। भुजंग को पता था कि संदीप सिंह रत्नेश्वर सिंह के रिश्तेदार हैं, उनके माध्यम से उसकी नियुक्ति कंट्री लाइव में ऊंचे पद पर हुई थी और अब एक बार फिर उनके यहां आने से वह लोगों पर अपना प्रभाव जमाने में कामयाब हो जाएगा। दफ्तर में घूम-घूमकर उसने सभी लोगों को सूचित कर दिया कि आज शाम को पांच बजे संदीप सिंह आ रहे हैं और वह सभी लोगों को साथ मीटिंग करेंगे।

नरेंद्र श्रीवास्तव संदीप सिंह से पहले से ही खार खाये हुये थे। इस जानकारी के बाद कि आज संदीप सिंह दफ्तर में आ रहे हैं वह गायब हो गये। महेश सिंह किसी भी कीमत पर भुजंग का वर्चस्व स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था। भुजंग के कहने पर संदीप सिंह के साथ मीटिंग में बैठने का अर्थ होता अप्रत्यक्ष रूप से भुजंग की अधीनता स्वीकार करना। उसने भी अपने आप को इस मीटिंग से दूर रखना ही बेहतर समझा। रंजन कुछ देर तक उहापोह की स्थिति में फंसा रहा, लेकिन अंतत यह निर्णय ले लिया उसे भी इस मीटिंग में नहीं बैठना है।

शाम को जब संदीप सिंह दफ्तर पहुंचे तो उनका इस्तकबाल करने वालों में भुजंग अकेला था। काफी देर तक दोनों एक कमरे में बैठकर गुफ्तगूं करते रहे, लेकिन कुल मिलाकर यह बैठक बुरी तरह से फ्लाप साबित हुई। यहां तक कि  संदीप सिंह को भी यह अहसास हो गया कि चैनल पर उसकी पकड़ ढीली पड़ गई है। रात आठ बजे के बाद वह भुजंग के साथ दफ्तर से बाहर चले गया।

दूसरे दिन जब नरेंद्र श्रीवास्तव को पता चला कि संदीप सिंह की मीटिंग बुरी तरह से फ्लाप रही तो वह काफी खुश हुये। रंजन ने खुलकर अपनी प्रतिबद्धता नरेंद्र श्रीवास्तव के प्रति व्यक्त करते हुये कहा,” संदीप सिंह अधिकारिक रूप से किसी भी ओहदे पर नहीं है, ऐसे में उसके साथ बैठक करने की बात सोचना भी मूर्खता है। मैं तो शुरु से ही उसकी अनदेखी कर रहा हूं, यहीं के कुछ लोगों ने उसे सिर पर चढ़ा रखा है। अब रत्नेश्रर सिंह का रिश्तेदार होने का मतलब यह थोड़े ही है कि वह हर काम में टांग अड़ाये। वैसे रत्नेश्वर सिंह भी उससे नाराज चल रहे हैं, चिंता की बात नहीं है।”

इस घटना के बाद भुजंग कुछ और ढीला पड़ गया, निष्क्रियता के तत्व उस पर हावी होते चले गये।

36.

दूसरी तरफ महेश सिंह लगातार यह हवा बनाने में लगा हुआ था कि यदि इलेक्ट्रानिक मीडिया में काम करना है तो हर खबर पर उगाही करनी होगी। जिले में जितने रिपोटर और कैमरामैन है उनकी यह जिम्मेदारी होनी चाहिये कि अपने- अपने जिले से विज्ञापन जुटाये, छुटभैये नेताओं से उगाही करें और चैनल को भेंजे। महेश सिंह द्वारा बार-बार सार्वजनिक तौर पर कही गई ये बातें रत्नेश्वर सिंह के कानों तक कई माध्यमों से पहुंच रही थी और रत्नेश्वर सिंह को भी लगने लगा था कि चैनल का धंधा इसी तर्ज पर चलता है। उन्होंने अपने तरीके से भुजंग पर दबाव बनाते हुये हुक्म जारी कर दिया कि हर महीने एक निश्चित राशि की उगाही कराने की व्यवस्था करे।

इस हुक्म के बाद भुजंग पूरी तरह से दबाव में आ गया। अपने दरबे में रंजन को बुलाकर उसने कहा, “अब खबर को मारिये गोली और पैसों पर ध्यान दिजीये। ऊपर से हुक्म  आया है कि कम से कम 20 लाख रुपये हर महीने चाहिये। अब आप दिमाग लगाइये कि इसका जुगाड़ कैसे होगा।”

“पैसे बटोरना इतना आसान नहीं है। रिपोटरों से बात कीजीये यदि वे कुछ कर सकते हैं तो ठीक है, ” रंजन ने कहा।

“यह आपको ही करना होगा”, भुजंग ने धौंस जमाते हुये कहा।

“मैं क्यों करूंगा? जब चैनल की शुरुआत हुई थी तो यही कहा गया था कि रिपोटरों से पैसे नहीं मांगे जाएंगे। इस मामले में मैं तो रिपोटरों से बात करने से रहा, जो करना है आपको ही करना है।  ”

“पांच लाख की व्यवस्था तो आप कर ही सकते हैं।”

“मुझे नहीं लगता है कि मैं कर पाऊंगा, और मैं ऐसा करूं भी क्यों? यह मेरा काम नहीं है। ”

“फिर तो आपको इस्तीफा देना होगा।”

“मैं क्या करूंगा यह तो बाद की बात है, आपको जो उचित लगे वह कीजिये।”

भुजंग के दरबे से बाहर निकलते वक्त रंजन के चेहरे पर भी परेशानी के भाव थे। अपनी सीट पर बैठने के बाद उसने नीलेश की तरफ देखते हुये कहा, “ भुजग को वसुली के लिए कहा गया है और वह अपना ठीकरा मेरे सिर पर फोड़ना चाहता है। मैं क्यों वसुली करूं? मेरा यही काम रह गया है? मैं खबर का आदमी हूं खबर देखूंगा, जिनको वसुली करना है करें। ”

“अच्छा तो है, मीडिया में उगाही का अनुभव हो जाएगा,” नीलेश ने चुटकी ली।

“अब इस चैनल का पतन शुरु हो गया है। बस देखते जाओ। रिपोटरों से उगाही कराने के बजाये इन्हें अपनी मार्केंटिंग टीम बनानी चाहिये, लेकिन इस ओर कुछ ध्यान भी नहीं दिया जा रहा है। जो हो मैं इस उगाही में भागीदार नहीं बनूंगा। भुंजग को कहा गया है वही करेगा।”

भुजंग एक सप्ताह तक जिले के तमाम रिपोटरों को समझाता रहा कि किसी भी कीमत पर अपने अपने क्षेत्र से कम से कम दस दस हजार रुपये भेजे, लेकिन इसका कुछ खास असर नहीं हुआ। कुछ रिपोटरों ने प्रयास किया और कुछ रकम हासिल करने में सफल भी रहे, लेकिन ज्यादातर रिपोटरों ने पलट कर यही जवाब दिया कि ज्वानिंग के समय उनसे विज्ञापन लाने के संबंध में बात नहीं की गई थी और लोग इसी शर्त पर यहां आये थे कि उनसे पैसे लाने को नहीं कहा जाएगा।

इस बीच भुजंग को साफतौर पर कह दिया कि वह खबर और प्रोग्रामिंग में दखलअंदाजी बिल्कुल बंद कर दे और सिर्फ पैसा उगाही पर ध्यान दे, नहीं तो अगले महीने से उसका वेतन बंद कर दिया जाएगा। इस सूरतहाल में भुजंग पूरी तरह से बौखलाटह की स्थिति में आ गया और नरेंद्र श्रीवास्तव के सामने उसने अपने इस्तीफे की पेशकश कर दी। नरेंद्र श्रीवास्तव इसी मौके के इंतजार में बैठे हुये थे, उन्होंने फौरन भुजंग का इस्तीफा मंजूर कर लिया। बाद में जब रंजन का उनसे सामना हुआ तो उन्होंने मुस्कराते हुये पूछा,

“आज तो तुम बहुत खुश होगे?”

“आप ऐसा क्यों कह रहे हैं सर ?”, रंजन ने सवाल किया।

“तुम्हें सब पता है, तुम्हारी भी यही इच्छा थी ना कि भुजंग चला जाये,” नरेंद्र श्रीवास्त के यह कहते ही रंजन के होठों पर मुस्कराहट दौड़ गई। हालांकि कि दोनों को इस बात अंदाजा नहीं था कि जिस कारण से भुजंग बाहर हुआ है, आनेवाले समय में यह मामला और तुल पकड़ने वाला है, क्योंकि रत्नेश्वर सिंह के दिमाग में उगाही का फार्मूला बैठ गया था।

to be continued—

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here