बाइट, प्लीज (part-20)

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“आपको नहीं पता है कि इस संस्थान में क्या चल रहा है,” अमलेश ने कहा, “ सुयश मिश्रा के संबंध में ओपेन फार मीडिया डाट कौम पर छपने वाली खबर सच थी। सुकेश सर की मति मारी गई थी कि उन्होंने सुशांत मिश्रा से कह कर यह खबर हटवा दी।”

“आपको लगता है कि इस संस्थान की सारी बातों की आपको सही सही जानकारी होती है और मैं अपनी आंखे बंद रखता हूं? ” नीलेश ने उसकी बातों में रुचि लेते हुये पूछा।

दोनों दफ्तर के सामने वाली चाय की दुकान पर बैठे हुये थे। नीलेश को चाय पीने की तलब महसूस हुई थी और बिना किसी से कुछ कहे सीधे चाय की दुकान पर चला आया था। अमलेश वहां पहले से ही बैठकर समोसे खा रहा था।

“आपका ध्यान सिर्फ काम पर होता है। बाकी यहां क्या हो रहा होता है न तो आप इसके बारे में जानते हैं और न ही जानने की कोशिश करते हैं। इस मामले में सुकेश और रंजन आपसे आगे हैं। यहां की राजनीति को दोनों अच्छी तरह से डील करते हैं और यह मीडिया का सच है कि बिना राजनीति किये आप यहां टिक ही नहीं सकते हैं। पूजा सुयश का इस्तेमाल कर रही है और सुयश के मन में भी पूजा के प्रति साफ्ट कार्नर है।”

“ये आप कैसे कह सकते हैं, ओपेन फार मीडिया डाट कौम की खबर को पढ़कर?”, नीलेश ने चाय की चुस्की लेते हुये सवाल दागा।

“आज की तारीख में सुयश मिश्रा यह डिसाइड करते हैं कि पूजा कौन सी ड्रेस पहनकर दफ्तर आएगी। शूट के दौरान जब पूजा को कोई प्रोब्ल्म होती है तो वह सीधे सुयश मिश्रा को फोन करती है। यहां तक अपने साथ जाने वाली एसोसिएट प्रोड्यूसर को भी कई बार सुयश मिश्रा से डांट सुनवा चुकी है। जितनी भोली वह बनती है उतनी है नहीं। एक बात और हमारे यहां फिलहाल तीन एंकर हैं, एक पूजा, दूसरी तृष्णा और तीसरा सुमित। तृष्णा को तो पहले ही साइडलाइन कर दिया गया है क्योंकि वह सुयश मिश्रा को लगाती नहीं थी और रंजन भी उसे नापसंद करता थे। आप गौर किजीएगा आप जैसे ही स्टोरी लिखकर तैयार कर देते हैं, सुयश मिश्रा किसी न किसी बहाने सुमित को फिल्ड में भेज देते हैं ताकि पूजा को अधिक से अधिक एंकरिंग का मौका मिल सके। मुझे सब कुछ दिखाई देता है, लेकिन आप देखना नहीं चाहते, ” अमलेश ने कहा।

“सीधे क्यों नहीं कहते कि अंगूर खट्टे है। मुझे पता है कि पूजा के साथ आपने भी चोरकटई की है, लेकिन जब उसने हाथ नहीं रखने नहीं दिया तो आप उसके खिलाफ अनाप शनाप बक रहे हैं, ” नीलेश ने उसे छेड़ा।

“छोड़िये आपके साथ बात करना ही बेकार है। आपको पता है मीडिया में आने से पहले मैं छात्र राजनीति में था, इसलिए पोलिट्क्स क्या होती है मुझे अच्छी तरह पता है।”

“हमलोग तुम्हें अंदर खोज रहे थे और तुम यहां बैठे हो,” सामने से रंजन के साथ आते हुये सुकेश ने कहा।

“अंदर के माहौल से सिर चकराने लगता है और यहां आने के बाद अमलेश मेरी खोपड़ी खा रहा है, यह तो आप पर भी गरम था,” नीलेश ने कहा।

“क्यों?”

“ओपेन फार मीडिया डाट कौम पर सुयश मिश्रा की छपी खबर को हटाने के लिए आपने ही मांडवाली की थी ना, इसलिये,” नीलेश ने हंसते हुये कहा।

“आप मुझे फंसा रहे हैं, मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा,” अमलेश ने विरोध किया।

“एक बात बताइये दफ्तर में ओपेन फार मीडिया डाट कौम का खबरची कौन है? ”,  अमलेश की तरफ देखते हुये नीलेश ने पूछा।

“मुझे क्या पता। मैं इन सब चक्करों में नहीं रहता हूं,” अमलेश ने जल्दी से कहा, “आप मुझ पर शक कर रहे हैं? ये सबको पता है कि मैं वहां जाता हूं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि यहां कि खबरें मैं वहां देता हूं। वहां जाने वालों में और भी कई लोग हैं। भूपेश और सुमन भी वहां जाते हैं। ”

“आप बौखला क्यों रहे हैं? ”, नीलेश ने छेड़ना जारी रखा।

“मैं जा रहा हूं, बहुत काम पड़ा है। समोसे के पैसे दे दिजीएगा,” यह कहते हुये अमलेश उठ खड़ा हुआ, “आपलोग बड़े लोग है, आपलोगों के साथ उठने बैठने की मेरी औकात नहीं है। ”

“लगता है आप नाराज हो गये, वैसे आपकी नाराजगी से मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा,” नीलेश ने छेड़ना जारी रखा।

“सर जिस तरह की पोलिट्क्स यहां चल रही है न, उसमें कोई सुरक्षित नहीं है। अभी देखते जाइये क्या-क्या होता है। और आप लोग जिस पर भरोसा कर रहे हैं, जरूर धोखा खाइएगा। मैं अभी से कह देता हूं। ”

“किसकी बात कर रहे हैं आप,” नीलेश ने पूछा।

“सुकेश सर समझ गये हैं। मैं एडिटर हूं तो क्या हुआ, आदमी को देखकर बता दूंगा कि वह क्या करने वाला है। एक खबर हटा दी तो क्या हुआ, अभी तो पूरा रामायण पड़ा है,” यह कहते हुये अमलेश वहां से चल दिया।

“मीडिया में हर आदमी जितना सामने नजर आता है उससे ज्यादा वह जमीन के अंदर धंसा हुआ रहता है। किसके दिमाग में क्या चल रहा है पता लगा पाना मुश्किल होता है,” नीलेश ने कहा।

“मुझे जानकारी मिली है कि वाक्स न्यूज को लेकर जारी विवाद का निपटारा जल्द ही होना वाला है। अगली तारीख पर कोर्ट अपना डिसिजन दे देगा। जिस पार्टी ने कंट्री लाइव को चलाने का लाइसेंस दे रखा है उसने कहा है कि यदि फैसला उसके पक्ष में होता है तो समझौता आगे भी जारी रहेगा। फैसला दूसरे पार्टी के पक्ष में जाने के स्थिति में अपना प्रसारण जारी रखने के लिए या तो दूसरे पार्टी से बात करनी होगी या फिर किसी और और लाइसेंस की तलाश करनी होगी, रंजन ने कहा।

“मामला गंभीर लग रहा है। रत्नेश्वर सिंह को लाइसेंस के लिए तत्काल किसी से बात करनी चाहिये। पता नहीं अपने खुद के लाइसेंस के लिए ये लोग क्यों अप्लाई नहीं कर रहे हैं,” नीलेश ने कहा।

“इस चैनल की शुरुआत ही काफी हड़बड़ी में हुई थी। सबसे पहले इन्हें अपना लाइसेंस हासिल करना चाहिये था। इस मामले में रत्नेश्वर सिंह से चूक हुई है और अब तक जितने भी लोग इन्हें मिले हैं सभी इन्हें मिसगाइड ही किया है, ” रंजन ने कहा।

“ आपको तो इन सब के बारे में अच्छी खासी जानकारी थी। फिर आपने क्यों नहीं लाइसेंस हासिल करने की कोशिश की? ”, नीलेश ने पूछा।

“मैं उतना ही बोलूंगा ना जितना मुझसे पूछा जाएगा। रत्नेश्वर सिंह ने मुझसे इस बारे में पूछा ही नहीं। और उस वक्त नरेंद्र श्रीवास्तव भी इस बात को लेकर गंभीर नहीं थे। वह जल्द जल्द से चैनल को शुरु करना चाहते थे। उस समय इन दोनों के सामने मेरा कुछ भी बोलने का मतलब था चैनल का रुकना और मेरा बाहर होना और वैसे भी मुफ्त की सलाह की कोई वैल्यू नहीं होती है।”

उसी समय सुकेश का मोबाइल बज उठा। इधर-उधर देखते हुये उसने फोन उठाया और बातें करने लगा। नीलेश जब दो चाय का आर्डर देने लगा तो उसने उसे रोकते हुये कहा, “दो नहीं, तीन चाय मंगवाओ। सोमेश दत्त भी आ रहे हैं। बिहार में चारा घोटाले पर इन्होंने व्यवस्थित काम किया था। पुराने पत्रकार हैं और बिहार और झारखंड पर इनकी अच्छी पकड़ है। पास में ही आये हुये थे तो मैंने इन्हें यहीं पर बुला लिया। बस आ ही रहे हैं। तुम लोग यहीं बैठो मैं उन्हें लेकर आता हूं।”

सुकेश ने अपनी बात खत्म भी नहीं की थी कि लाल रंग की एक स्कूटी चाय के दुकान के पास आकर रुकी। सुकेश ने आगे बढ़कर सोमेश दत्त का स्वागत किया। थोड़ी देर बाद चारों एक साथ एक ही बेंच पर बैठे हुये थे।

“मुझे लगता है कि बिहार में लोग दूध में कटौती कर रहे हैं और उनके पेट्रोल का खर्चा बढ़ता ही जा रहा है,” सोमेश दत्त ने हाथ में चाय लेते हुये कहा। वह छोटे कद और गोरे रंग के इन्सान थे। बाल भी गवंई अंदाज में छोटा-छोटा ही कटा रखा था।

“यहां तो सुशासन आ गया है,” नीलेश ने चुटकी ली।

“अब तक बिहार में कम से कम मैं पांच मुख्यमंत्रियों को तो देख ही चुका हूं। यहां के पत्रकार छह महीना से ज्यादा किसी भी मुख्यमंत्री को टाइम नहीं देते थे। छह महीने के बाद उनके खिलाफ लिखा जाने लगता था। छह महीने की समय इसलिये दिया जाता था कि इतना समय किसी भी मुख्यमंत्री को काम को पटरी पर लाने में लग ही जाएगा, लेकिन इसके बाद तो फिर अखबारों मुख्यमंत्री के खिलाफ खबरें छपने लगती थी। अब यह परंपरा पूरी तरह से टूट चुकी है। छह साल से ऊपर हो गये लेकिन नीतीश कुमार के खिलाफ एक भी खबर नहीं छपी है अब तक। इसे क्या कहेंगे। ऐसा थोड़े ही हैं कि यहां सब कुछ बेहतर ही चल रहा है। लिखने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन किसी में लिखने की मंशा हो तब ना। बस अखबार के पन्नों पर हर रोज सुशासन की गंगा बहाई जा रही है,” सोमेश दत्त ने थोड़ा उत्तेजित होते हुये कहा।

“अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी यह मान रही हैं कि बिहार विकास के रास्ते पर चल रहा है,” नीलेश ने कहा।

“बाहरी संस्थाओं से सर्टिफिकेट लाने से विकास नहीं हो जाता है। यह नौटंकी लालू भी कर चुके हैं। वह भी मैनेजमेंट के बच्चों को पढ़ाने विदेश जाते थे। दूर क्यों जा रहे हैं, इस जगह पर जहां आप बैठे हैं, कभी गंगा की लहरें यहां इस सामने की दीवार से टकराती थी। यह बांध है। हमलोग गंगा की  उफान को यहां देखने आते थे। अब गंगा कई किलोमीटर पीछे की ओर भाग गई है और भू माफियाओं ने जमीन पर कब्जा करना शुरु कर दिया है। सामने देखिये गंगनचुंभी इमारत बन रहे हैं। आप नमूने के तौर पर किसी भी एक इमारत को उठाइये और पड़ताल किजीये फिर सुशासन की हकीकत सामने आ जाएगी। घूस का रेट बढ़ा है, जो काम पहले पचास रुपया में होता था उस काम के लिए अब पांच सौ रुपये देने पड़ते हैं,” सोमेश दत्त ने कहा।

“आप तो सुशासन के पीछे हाथ धोकर पड़े हुये हैं, ” नीलेश ने कहा।

“कोई भी सरकार न तो सौ प्रतिशत सही होती है और न ही सौ प्रतिशत गलत। हर सरकार अपनी उपलब्धियों को बढ़ाचढ़ पेश करती है। लेकिन यह काम पत्रकारों का है कि सूबे की सही तस्वीर सरकार और जनता दोनों के समाने रखे। बिहार से कई लड़के बाहर पत्रकारिता करने गये थे, पंद्रह-बीस साल पहले की बात मैं आपको बता रहा हूं। कुछ दिन बाद ही वे लोग अखबारों में ऊंचे ओहदों पर पहुंचने लगे। ये लोग जहां भी जाते थे सरकार और व्यवस्था के खिलाफ ताबड़तोड़ रिपोर्ट निकालते थे। यह एक प्रवृति थी, इसे कह सकते हैं कि यह पत्रकारिता की बिहारी प्रवृति थी और इसी प्रवृति के कारण बाहर के सूबों में बिहारी पत्रकारों की एक खास छवि बनी। बिहार जब संक्रमण काल के दौर से गुजर रहा था तो यहां के पत्रकार बाहर जाकर आक्रमक पत्रकारिता कर रहे थे, लेकिन अब यहां के पत्रकारों में वह ओज कहां दिखाई देती है। यहां की पत्रकारिता कारपोरेट के कब्जे में है और कारपोरेट सरकार के सामने लेटा हुआ है। अब यहां पत्रकारिता की पढ़ाई कराने वाले संस्थान खुल गये हैं। हर साल मोटी रकम देकर बड़ी संख्या में छात्र इन संस्थानों में दाखिला ले रहे हैं। मुझे याद है जब हमलोगों ने पत्रकारिता शुरु की थी तो कोई संस्थान नहीं था। और हमारे साथ काम करने वाले लोग भी महज बीए या फिर एम हुआ करते थे। पत्रकारिता संस्थानों की मदद के बिना ही उनलोगों ने अपने समय में बेहतर पत्रकारिता की, और आज भी बिहार के कई लोग पत्रकारिता के ऊंचे मुकाम पर बैठे हुये हैं। मेरा कहने का मतलब यह है कि पत्रकारिता के लिहाज बिहार की जमीन काफी उर्वर रही है, लेकिन अब वैसी फसलें नहीं निकल रही हैं, सवाल हैं क्यों ?”, सोमेश दत्त एक ऐसे इन्सान की तरह बोल रहे थे, जो मानों वर्षों से लगातार इस विषय पर सोचते आ रहे हैं और अब उनकी सोच पूरी तरह से व्यवस्थित हो चुकी है, लेकिन उन्हें कभी बोलने का मौका न मिला हो और एक ही सांस में अपनी सारी बाते कह देना चाहते हो।

“लालू के समय में पत्रकारिता में सेवन ग्रुप काफी चर्चित था। इसमें सात लोग थे जो हमेशा लालू के पक्ष में ही लिखते थे, लेकिन इसके साथ ही लालू के खिलाफ लिखने वाले पत्रकारों की भी कमी नहीं थी। यदि इस सेवन ग्रुप को छोड़ दें तो पत्रकारों पर लालू का नियंत्रण नहीं था। सुशासन में पत्रकार पूरी तरह से नियंत्रित हैं. कम से तमाम अखबारों की स्थिति तो यही है, हां इलेक्ट्रानिक मीडिया के बारे में मैं कुछ नहीं बोल सकता, ” उन्होंने अपनी बात जारी रखी।

“इलेक्ट्रानिक मीडिया की पत्रकारिता बाइट वाली पत्रकारिता  है। बस नेताओं के बाइट लाओ और उनको चलाओ। अपनी ओर से प्रश्न पूछने की जहमत पत्रकार लोग नहीं उठाते हैं। अधिकारी और नेता जो बताते हैं वही खबरें बनती हैं,” रंजन ने कहा, और थोड़ी देर तक चुप रहने के बाद फिर शुरु हो गया, “बिहार में पत्रकारों का नया कौम पढ़ाई लिखाई से पूरी तरह से दूर है। सब के सब टेक्निकल होकर रह गये हैं। पत्रकारिता की संस्थाओं ने तो इन्हें और भी टेक्निकल बना दिया है। दिल्ली में बैठे हुये पत्रकारों को ये अपना माडल मानने लगे हैं और वे लोग भी संस्थानों के बुलावा पर यहां आकर उन्हें घुट्टी पिला जाते हैं। ”

“आपलोगों का चैनल कैसा चल रहा है? ”, सोमेश दत्त ने पूछा।

“ ये लोग मीडिया के नाम पर मजाक कर रहे हैं, और हमलोग भी इस मजाक में शरीक हैं, ” सुकेश ने कहा।

“क्या हुआ? पैसा टाइम पर मिल रहा है कि नहीं।  ”

“देर सवेर पैसा तो मिल ही जाता है, लेकिन स्थिति ठीक नहीं है। लाइसेंस का लफड़ा लगा हुआ है। आखिर उधार के लाइलेंस पर आप कितनी देर तक आगे बढ़ेंगे। लाइसेंस का झंझट है, लंबी कहानी है,” सुकेश ने कहा।

“जब तक पैसा मिलता रहे तब तक रहिये, जिस दिन से पैसा बंद हो जाये राम सलाम करके चलते बनिये, ” सोमोश दत्त ने हंसते हुये कहा।

तीनों के बीच बातचीत का सिलसिला काफी देर तक चलता रहा। शाम ढलने के बाद सोमेश दत्त अपनी स्कूटी पर सवाल होकर चल दिये और सुकेश, नीलेश और रंजन एक बार फिर दफ्तर में आकर बैठ गये।

to be continued….

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