क़स्बाई लड़कियाँ (नज्म)

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खुलती हैं रफ़्ता-रफ़्ता मोहब्बत की खिड़कियाँ,
कितनी हसीन होती हैं क़स्बाई लड़कियाँ।
काजल भरी निगाह में शर्मो-हया के साथ,
धीरे से आये सुर्ख़ लबों पर हरेक बात।
रंगीन कुर्तियों पे दुपट्टा सम्हाल कर,
चलती हैं सर झुकाये हुये हर सवाल पर।
इन लड़कियों के हाथ में खुश्बू हिना की है,
झनकार पायलों की इनायत खुदा की है।
गोरी कलाइयों में चढ़ाये हुये कड़े,
टकरा रहे हैं एक से दूजे पड़े पड़े।
नाज़ुक-से पाँव रंगे-महावर में डूबकर,
उड़ते हैं तितलियों की तरह घर से ऊबकर।
गेसू कमर तलक के बँधे हैं अदा के साथ,
हँस कर भी देखती हैं तो शर्मो-हया के साथ।
इन लड़कियों के नाम में पाक़ीज़गी-सी है,
इनको उदासियों से बड़ी बेदिली-सी है।
गंगा के साहिलों की महक इनके पास है,
चिड़ियों की बेहिसाब चहक इनके पास है।
क़ुर्बत रखे या इनसे मेरा फ़ासला रखे,
मैं चाहता हूँ इनको सलामत खुदा रखे।
देखें कहाँ बरसती हैं पागल ये बदलियाँ ।

सौरभ नाकाम

मेख, नरसिंहपुर

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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