ब्रह्म नहीं कुछ (कविता)

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आदि शक्ति हो या अन्धेश्वर

मन की तार तरंग तुम्हारी

भक्ति भाव से पूज ले बन्दे

ब्रम्ह नहीं कुछ हम ब्रम्हेश्वर

काला पीला हरा बैंगनी

नहीं किसी का रंग कोई भी

अनहद नाद जगे जब मन का

मान सभी कुछ मुक्तेश्वर

उठा पटक है कौन तुझे कुछ

मन का भाव समझ बस सुच

शीतलता की नगरी है यह

यह अपना भाव न है ईश्वर

सिन्धु सभ्यता घर की गठरी

मन का भाव मुफ्त की मठरी

क्यों रोता क्यों पोता तिल – तिल

अपने जाग  महाईश्वर

करुणा दया  भाव की कुंजी

मन का राग विराग विहंगी

संग – संग सब कुछ है तेरे

तेरी नाक नहीं यह ईश्वर

हम तो योगी और वियोगी

परिणय के कुछ राग फाग हैं

नहीं समझ तो तू कुछ जाने

मान बेढंगी या संघर्षेश्वर

उपमा व उन्माद नहीं कुछ

मन की बात व बांध नहीं कुछ

सब कुछ अपना आर पार है

समझ सभी कुछ या व्यर्थेश्वर

करन बहादुर (नोयडा)

9717617357

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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