उपयोगितावाद, उपभोगवाद और व्यक्तिवाद के खिलाफ है पूर्ण शराबबंदी

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आलोक नंदन

सत्ता में आने के तुरंत बाद औरंगजेब ने शराब प्रतिबंद लगा दी थी, अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी बिहार में शराब प्रतिबंध लगाने जा रहे हैं। अगले साल अप्रील महीने से बिहार में पूर्ण शराबबंदी की चाक चौबंद तैयारी हो रही है। नीतीश कुमार चुनाव के दौरान किये हुये अपने वादे को पूरा करने जा रहे हैं। बिहार की महिलाएं लंबे समय से सूबे में शराबबंदी को लेकर आंदोलन कर रही थी। सीएम नीतीश कुमार के इस निर्णय से महिलाओं के बीच खुशी की लहर है। मर्दों में शराबखोरी की बढ़ती लत से बे बुरी तरह से प्रभावति थी। नीतीश कुमार चाहते हैं कि शराब पर किया जाना वाला खर्च  परिवार के शिक्षा, भोजन और विकास पर खर्च किया जाये। सैद्धांतिक रूप से सुनने में यह वाकई में एक बेहतर कदम लग रहा है, लेकिन पूर्ण शराबबंदी उपयोगितावाद या उपभोगवाद के लिहाज से न सिर्फ अव्यवहारिक है बल्कि यह अप्रत्यक्ष रूप से यह व्यक्ति के उपभोगवाद के अधिकार पर हमला भी है।

शराबखोरी के नकारात्मक प्रभाव समाज और व्यक्ति के स्वास्थ्य पर पड़ता है इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन राज्य बलात लोगों को शराब से वंचित कर दे उचित नहीं है। बिहार में लोग बड़ी संख्या में शराब का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। लगभग 4000 हजार करोड़ रुपये की आमदनी इससे सरकार को हर वर्ष हो रही है। इसी से अंदाजा लगया जा सकता है कि शराब न सिर्फ लोगों का शौक है बल्कि जरूरत भी है। जो लोग लंबे समय से इसका सेवन कर रहे हैं उनके लिए सूबे में पूर्ण शराबबंदी के बाद निश्चिततौर पर मुसीबत खड़ी हो जाएगी। बिहार में बहार हो, फिर से नीतीशे कुमार हो के पक्ष में मतदान करने वालों में निश्चितौर पर शराब पीने वाले लोग भी शामिल थे। अब पूर्ण बहुमत हासिल करने के बाद इन लोगों को शराब से अचानक वंचित कर देना निश्चितौर पर एकपक्षीय निर्णय होगा।

नीतीश कुमार एक सुलझे हुये नेता हैं। शराबबंदी की घोषणा करने के बाद उनकी लोकप्रियता सूबे की महिलाओं के बीच काफी बढ़ी है। पूर्ण शराबबंदी को लेकर वह पूरी तरह से दृढ़प्रतिज्ञ हैं। महिलाओं को इससे राहत मिलेगी इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता है। भविष्य में उनके इस निर्णय से उनका वोट प्रतिशत भी बढ़ेगा। वैसे भी 2015 के बिहार विधान सभा चुनाव में महिलाओं में महिलाओं ने उन्हें दिल खोलकर वोट दिया है। बावजूद इसके शराबबंदी को लेकर उनका यह कदम अव्यवहारिक लग रहा है।

दुनिया के तमाम हिस्सो लोग शराब पीते हैं। शराब का संबंध सभ्यता के विकास से भी है। कवि और शायरों ने भी शराब पर जमकर लिखा है। गालिब जैसे शायर तो शराब में डूबकर ही शायरी किया करते थे। सैनिकों के बीच भी शराब काफी लोकप्रिय है। पार्टियों में भी शऱाब जमकर परोसी जाती रही है। सूबे में एक झटके से इस पर रोक लगाने से भले ही महिलाओं को राहत मिले लेकिन इसका नकारात्मक प्रभाव भी समाज के स्वत गति पर पड़ेगा।

इसके अलावा शराब तस्करों के नये-नये गिरोह भी स्वाभाविकतौर पर पनपेंगे ही और उन्हें रोकने के लिए पुलिस और प्रशासन को अगल के प्रयास करना होगा। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि शराबबंदी के लागू होते ही पुलिसवालों के लिए कमाई का एक नया जरिया भी खुलेगा। पुलिस में किस कदर भ्रष्टाचार व्याप्त है सभी को पता है। पूर्ण शराबबंदी लागू होते ही तस्करों और पुलिसवालों के बीच सांठगांठ की एक नई परत विकसित होगी। इस पर काबू पाने में नीतीश कुमार के पसीने छूटेंगे।

सूबे में शराब व्यवसायी व्यापक पैमाने पर अपना कारोबार फैलाये हुये हैं। शराबबंदी के बाद उनका कारोबार भी पूरी तरह से ठप हो जाएगा। इस कारोबार से बड़ी संख्या में लोग जुड़े हुये हैं। शराब की बदौलत ही अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं। शराबबंदी के बाद ये लोग बेरोजगार हो जाएगा। इन लोगों का समायोजन कैसे होगा इस पर भी विचार करने की जरूरत है।

गरीब तबकों के साथ-साथ पुलिस अधिकारी, डाक्टर, व्यवसायी, पत्रकार, सरकारी कर्मचारी, कारपोरेट जगत से जुड़े लोग भी शराब का सेवन करते हैं। विभिन्न पेशों से जुड़े इनलोगों का एक ही डंडे से हांकना कहां तक उचित है। इसका नकारात्मक प्रभाव पर्यटन उद्योग पर भी पड़ेगा। देश विदेश से आने वाले मेहमान सैर सपाटे के दौरान शराब का सेवन करते हैं। ड्राई स्टेट में आने से वे निश्चिततौर पर हिचकेंगे।

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