भूमिका कलम : उदय भारत की महिला किसान

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खोजी पत्रकारिता से कृषि की ओर उन्मुख होने वाली मध्य प्रदेश की भूमिका कलम एग्रो-टेक किसानी की नई इबारत तो लिख ही रही हैं, साथ ही अपने आसपास के किसानों को लाभकारी खेती की हुनर भी सिखा रही हैं।

आलोक नंदन शर्मा

कुछ लोग जिंदगी में एक राह तय कर लेने के बाद उस पर मीलों चलते हैं, फिर उनके साथ कुछ ऐसा होता है कि उनकी राह अचानक बदल जाती है। गांव और खेत उन्हें अपनी ओर बुलाते हैं और वह भी अपने आप को नये रूप में देखने लगते हैं, अपनों के बीच। सही मायने में उन्हें अपने आप से साक्षात्कार हो जाता है। कलम छोड़कर खेती की राह पकड़ने वाली भूमिका कलम को ऐसे ही लोगों में शुमार किया किया जा सकता है। खोजी पत्रकारिता को अलविदा कर भूमिका कलम  मध्य प्रदेश की युवा महिला किसान के रूप में अपनी पुश्तैनी जमीन से न सिर्फ एक बार कई-कई फसलें बो और काट रही हैं बल्कि वहां के किसानों को भी लाभकारी खेती का नया अंदाज सिखा रही हैं।

बुलंद इरादों के साथ खेती में हाथ डालने के बाद भूमिका कलम पहले की तुलना में तिगुनी कमाई कर रही हैं। वह बदलते हुये भारत की तस्वीर नहीं पेश कर रही हैं बल्कि खुद अपनी मजबूत हाथों और फौलादी इरादों से भारत को बदल रही हैं, यहां की खेती पद्धति बदल रही हैं और साथ ही किसानों के भविष्य को भी। अपनी दूरगामी नजर और अथक मेहनत की वजह से वह मध्य प्रदेश के किसानों का भविष्य गढ़ते हुये उदय भारत की कहानी बखूबी बयां कर रही हैं। एक अति आधुनिक पत्रकार के तौर पर कलम और कैमरा छोड़कर ट्रैक्टर थामने के बाद भूमिका फसलों में भी बेशुमार प्रयोग कर रही है। एक ही जमीन पर एक साथ कई फसलों को बो कर उसने खेती के पारंपपरिक तौर-तरीकों को पूरी तरह से बदल दिया है। उनकी प्रेरण से अलग बगल के किसान भी उनके नक्शे कदम पर चलने लगे हैं।

भूमिका कलम मध्य प्रदेश में सामूदायिक खेती को बहुत ही तरीके से तराश रही हैं। अपनी जमीन पर फसलो के बीच में बांस बो रही है। इन बासों को पहले ही बेच चुकी हैं। इसके अलावा एक साथ कई फसलें भी काट रही हैं। मंडी के व्याकरण को तोड़ने के लिए किसानों की हित वाली बात साफ अंदाज में समझाते हुये कहती हैं, “पिछली बार किसानों ने गलती की थी। सभी किसानों ने अपनी खेतों में अरहर लगा दिया था। अरहर की पैदावार अचानक बढ़ जाने की वजह से मंडी में इसकी कद्र कम हो गई थी, इसका फायदा बौचलियों और व्यापारियों ने उठाया। अरहर की कीमत उन्होंने कम लगाई। इसलिए इस मर्तबा यहां के सारे किसान अलग-अलग फसल लगा रहे हैं। हमलोगों ने आपस में बैठ कर निर्णय ले लिया है। थोड़ी सी सूझबूझ से काम ले तो मंडी किसानों के हिसाब से चलेगी। बस किसानों को भेड़चाल चलने से रूकना होगा। ”

भूमिका कलम का अचानक पत्रकारिता से किसानी की ओर रुख करना कम रोचक नहीं है। इन्वेस्टिगेटिंग जर्नलिज्म करने के इरादे से उन्होंने पत्रकारिता की दुनिया में पेशकदमी की थी, कुछ कर गुजरने के मजबूत इरादों से लबरेज होकर। अपने इंजीनियर पिता को कमउम्र में ही वह खो चुकी की थी। जब वह नौंवी कक्षा में थी तभी पिता जी एक दिन घर से ड्यूटी के लिए निकले फिर लौट कर नहीं आये। हर्ट अटैक से उनकी मौत ड्यूटी पर ही हो गई थी। उसी समय भूमिका ने तय कर लिया था कि वह सरकारी नौकरी नहीं करेगी। उन्हें एक खोजी पत्रकार बनना है।

उनकी खोजी पत्रकारिता को मध्य प्रदेश में महूसस किया गया। उन्हें भी यकीन हो गया था कि वह एक बेहतर खोजी पत्रकार बन चुकी है। खबरों की तलाश में वह जम कर पसीना बहाती थी और खबर मिल जाने के बाद उन्हें तरीके से परोसने का उनका सलीका भी उम्दा था। समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका के तमाम अहलकार भी भूमिका के मुरीद हो गये थे। टफ वर्किंग गर्ल के तौर पर वह स्थापित हो चुकी थी। थोड़ा और आजमाने के लिए उन्हें एक ऐसे बीट में हाथ डालने को कहा गया जिसके बारे में कहा जाता था कि इसमें पाठकों का अकाल रहता है। वह बीट थी कृर्षि की, खेती की, किसी और किसानों की। तमाम कारणों से प्रचलित मीडिया की नजरों से ओझल रहने वाले बीट कृषि  में काम करने की चुनौती भूमिका के सामने पेश की गई। इस पर विचार करने के बाद उन्होने इस काम को करने का निर्णय ले लिया और प्रबंधन के सामने एक शर्त रखते हुये कहा, “  पहले मैं किसानों से मिलूंगी, उन्हें समझूंगी और फिर तय करूंगी कि इस बीट में क्या करना है।” उनकी काबिलियत को देखते हुये उन्हें अपने तरीके से काम करने की इजाजत दे दी गई और फिर उनके कदम हमेशा के लिए गांव और किसानों की तरफ बढ़ चले।

किसानों के साथ बदस्तूर राब्ता ने उनकी सोच को एक अलग दिशा में ढालना शुरु कर दिया, या यूं कहा जा सकता है उनकी जिंदगी की पुनरावृति होने लगी, कृषि के साथ जुड़ने रहने की रहने की उनके मन में उनके दिवगंत पिता की इच्छाओं के जागृत हो उठने के रूप में। उनके पिता को खेत और खेती सी लगाव था।  किसानों के नाम पता और फोन नंबर की फेहरिश्त बनाते हुये वह एक गांव से दूसरे गांव में भटकने लगी। उनसे मिलती, बातें करती और उनकी बातों पर स्टोरी बनाती। अखबार के पन्नों पर अपनी खबरें पढ़ते हुये किसान भूमिका की रपटों के माध्यम से एक दूसरे को जानने लगे। अब तक भूमिका किसानों को उनके नजरिये से देख रही थी और थोड़ा बहुत गुंजाईश होता तो खोजी पत्रकार वाली दृष्टि से भी टटोल लेती। इसी दौरान आर्टिसन एग्रो-टेक के देव मुखर्जी से मुलाकात ने उन्हें उनकी जिदंगी के वास्तविक स्टफ पर लाकर खड़ा कर दिया। देव मुखर्जी किसानों पर लंबे समय से काम कर रहे थे। एग्रो-टेक के साथ कदमताल उनके सफर का एक हिस्सा था। उनके संपर्क में आने के बाद कृषि की पैतृक समझ रखने वाली भूमिका की आंखों के सामने एक नई दुनिया उभरने लगी। कृषि के मूलमंत्र को उन्होंने आत्मसात कर लिया। इस बारे में वह कहती हैं, “बड़ी सहजता से सबकुछ होता चला गया। बचपन में अपने पिता के मुंह से फसलों के बारे में सुना करती थी। एक बार उन्होंने खेतों में सोया लगया था, जिसमें नुकसान हो गया था। इसके बाद वह लगातार इस बात पर चर्चा करते थे कि कैसे फसलों को लाभकारी बनाया जाये। पिता जी की बातों से मैं इतना तो समझ गई थी कि बाजारवाद के बदलते परिवेश में फसलों को लाभकारी बनाये बिना खेती की औचित्यता को सिद्ध नहीं किया जा सकता है। कुछ अलग शब्दों में देव मुखर्जी भी कमोबेश यही कह रही थे कि किसानी करनी है तो फसलों से अधिक से अधिक कमाई के बारे में सोचो। मेरे सामन फार्मूला खुल चुका था- किसानी से कमाई करने का।”

इस मामले में राजस्थान पत्रिका में भूमिका कलम के इमीडिएट बॉस ने भी उन्हें पत्रकारिता से निकल कर कृषि कार्य के लिए प्रेरित किया। इससे उनके कॉन्फिडेंस में इजाफा हुआ और कृषि को लेकर उनकी हिचक टूटती चली गई। नौकरी को अलविदा कर किसानी करने के इरादे से उन्होंने अपने पैतृक गांव पढ़रकला की तरफ रुख किया, जो मध्य प्रदेश के हरबा जिले के सीराली तहसील में पढ़ता है।

कभी मानवीय संवेदनों से भरी हुई अपनी तीखी रपटों से लोगों को मुतासर करने वाली भूमिका इस संदर्भ में कहती हैं,“ एक खोजी पत्रकार के रूप में मैंने  कई प्रतिष्ठित समाचार समूहों में काम किया। राजस्थान पत्रिका में करते हुये मुझे किसानी को समझने का मौका मिला। किसानों की बातों को सुनने और समझने के बाद, जब देव मुखर्जी से मेरी मुलाकात हुई है तो मैंने किसानी का पक्का इरादा कर लिया। लेकिन यह सब मेरे लिए आसान नहीं था। हम तीन बहने थीं। मैं बड़ी थी तो पिता जी की मौत के बाद मेरी जिम्मेदारी अधिक थी। मां नौकरी करती थी। घर को संभालना था। दोनों बहनों के साथ-साथ खुद की पढ़ाई को भी संभालना था। हम सब पढ़ने के लिए इंदौर में रहने लगे। सबकी पढ़ाई पूरी होती गई, नौकरी भी लग गई और शादी भी हो गई। मैं भी खोजी पत्रकारिता में अच्छा कर रही थी। पत्रकारिता को छोड़कर खेती करना मेरे लिए आसान नहीं था। दोनों बहने बाहर रहती थीं, और मैं भी बाहर ही नौकरी करती थी। पिता जी को इस बात का मलाल था कि यदि उन्हें बेटा होता तो खेती का काम आगे चलता। मुझे लगा कि अब यह काम मुझे करना है। मुझे ही अपने खेती को संभालना है। देव मुखर्जी के साथ मुलाकात के बाद तो मैं मानसिक तौर पर इसके लिए पूरी तरह से तैयार हो गई और इस तरह से किसानी शुरु हो गई है।”

देव मुखर्जी की दिशा निर्देश में भूमिका कलम ने आर्टिसन एग्रो-टेक के साथ बांस उत्पादन को लेकर एक करार कर लिया। आर्टिसन एग्रोटेक गन्ना के निर्धारित मूल्य पर बांस खरीदने के लिए तैयार हो गया। अपने खेतों बांस लगाकर भूमिका एक ही जमीन पर कृषि में मल्टीपल फसल प्रणाली (बहुफसलीय पद्धति) को व्यवस्थित तरीके से लागू करते हुये एक साथ कई फसलें लगा रही हैं। इस बाबात वह कहती हैं, “अहम सवाल है कि किसानों को नुकसान क्यों होता है? खेत में सिर्फ एक फसल लगाने से यदि किसी कारणवश वह फसल मर जाती है तो किसान परेशान हो जाते हैं। इस स्थिति से बचने का सबसे अच्छा तरीका है एक ही जमीन पर एक साथ कई फसल लगाना। कुछ शार्ट टर्मी की फसलें हो और कुछ लॉंग टर्म की। अरहर, मसूर, सोयाबीन आदि शार्ट टर्म की फसलें हो सकती हैं और बांस लॉंग टर्म की। खेती में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आप अपनी फसलों को कैसे प्लान करते हैं। यदि किसान एक ही जमीन पर एक साथ कई उत्पादन हासिल करे और इनको बेचने का करार पहले ही कर ले तो उन्हें कभी भी अनचाहे नुकसान का सामना करना नहीं पड़ेगा।किसान तो देने वाला होता है उसे किसी से कुछ मांगने की जरूरत नहीं है, बस जमीन के मुताबिक अपनी फसलों को सही तरीके से प्लान करने की जरूरत है।”

इतना ही नहीं भूमिका कलम खेती के व्यापारिक गणित को भी हौले-से बदलने की जुगत बना रही हैं। इस बाबत वह कहती हैं, “अपना माल सीधे जरूरतमंद कृषि फर्मों को बेचकर हम मंडी की सौदेबादी से बाहर निकलने की योजना पर काम कर रहे हैं। आगे हम अपनी खेतों में तुलसी और अश्वगंधा लगाने जा रहे हैं। इनका इस्तेमाल चाय के साथ किया जाता है। इन फसलों को सीधे हम उन कंपनियों को बेचेंगे जो चाय बनाने के काम में लगे हुये हैं। इन्हें खेत में अन्य फसलों के साथ भी उपजाया जा सकता है। मंडी में बिचौलियों की वजह से किसानों को भी अपनी फसलों का उचित मूल्य नहीं मिलता है और कंपनियों को भी नुकसान होता है। और अंत में लोगों इस तरह के उत्पादनों की अधिक कीमत चुकानी पड़ती है। बिचौलियों को हटाकर किसानों की खुशी भी बढ़ेगी और लोगों को भी कम कीमत पर उत्पाद मिल सकेगा। यदि कंपनी किसी फसल का न्यूनतम मूल्य फिक्स कर देते हैं तो किसान भी निश्चिंत होकर अपना काम कर सकेंगे।”

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