भारत को चुनौती देकर फंस गया ड्रैगन

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रवि आनंद, वरिष्ठ पत्रकार

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का शुक्रवार को लेह दौरा कई मामलों में चौकाने वाला रहेगा, रक्षा मंत्री के दौरे के खबरों के बीच प्रधानमंत्री का LAC पर जाना चीन के लिए गंभीर चुनौती बन सकती है। सीमा पर सुरक्षा व्यवस्था में लगे जवानों में जहां प्रधानमंत्री के दौरे से जोश भर आया है वहीं प्रधानमंत्री का कहना कि विस्तारवादी नीतियों का खात्मे का वक़्त आ गया है। पूरी दुनिया के लिए साफ संदेश चला गया अब भारत चीन से डरने वाला नहीं है।

कोरोना संक्रमण फैलाने के बाद दुनिया भर के देशों के ध्यान को चीन ने भारत-चीन युद्ध में होने वाले दुनिया भर में बदलाव की ओर मोड़ दिया है, कोरोना संक्रमण को लेकर दुनिया भर में इस दौरे से हो रही जांच के मुख्य निशाने पर आया चीन पहले विश्व स्वस्थ्य संस्थान को अपने इशारे पर नाचता रहा और दुनिया भर के देशों को गुमराह करता रहा लेकिन अमेरिका जर्मनी और ब्रिटन के कड़े रुख के बाद चीन ने होनकोंग, ताइवान और दक्षिणी चीन सागर में युद्ध का माहौल बनाया इस बीच उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन को लेकर भी मीडिया के माध्यम से ध्यान बटाने की कोशिश की गई पर कोई फायदा नहीं दिखता चीन ने आखरी वो गलती कर दी, जिसकी उम्मीद अभी अन्य देशों को नहीं था। भारत के साथ सीमा पर चीन इसी तरह की उग्र हरकतें गलवान के अलावा डोकलाम सिक्किम अरुणाचल प्रदेश के अन्य जगहों पर भी करता रहा है पर भारत कोरोना के तकलीफ में लड़ाई भी कर सकता है यह बात दुनिया को यकीन नहीं था। पर अब जब भारतीय सेना सीमा पर चौकसी बढ़ा दी है तो दुनिया भर के अन्य देशों का ध्यान भी इस ओर हो गया है क्योंकि दोनों देश परमाणु बम रखने वाले एशिया के महाशक्ति हैं जो विश्व को भी हिलाने का माद्दा रखते हैं। अब ऐसी परिस्थितियों में यूरोपीय और अमेरिकी देशों ने भी एशिया संकट से खुद को जोड़ते हुए अपनी अपनी भूमिका के साथ भविष्य की चिन्ता में यह सोच रहे हैं तो फिर दुनिया का क्या होगा?

आज भारत की बात पूरी दुनिया को समझ में आ रही है और दुनिया ये स्वीकार कर रही है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और उसकी सेना पीपल्स लिबरेशन आर्मी यानी PLA दुनिया के लिए अब खतरा बन चुकी है। चीन की विस्तारवादी नीतियों और सैन्य गतिविधियों को अगर रोका नहीं गया, तो पूरी दुनिया के लिए वैसा ही संकट बन जाएगा, जैसा संकट हिटलर के जमाने में बन गया था और फिर दुनिया ने इसका नतीजा द्वितीय विश्व युद्ध के रूप में देखा। धीरे-धीरे चीन का असली चेहरा पूरी दुनिया को समझ में आ रहा है। अब आने वाले समय में हमें ये देखना है कि दुनिया के कितने देश मिलकर चीन के खिलाफ एक गठबंधन बनाते हैं। क्योंकि अगर ये नहीं हुआ तो चीन धीरे-धीरे आगे बढ़ता चला जाएगा और चीन की जो गलतफहमी है कि वो सुपर पावर बन गया है और कोई उसे नहीं रोक सकता। चीन की ये गलतफहमी पूरी दुनिया के लिए खतरनाक हो सकती है। चीन की इस गलतफहमी से दुनिया भर के देशों के सुपर पावर अमेरिका को भी चुनौती मिल रही है, एक ओर कोरोना संक्रमण के कारण सबसे ज्यादा जान गवाने वाले देश अमेरिका के लिए चीन अब चुनौती बन चुका है। कोरोना को चीनी वायरस बताने वाला अमेरिका भी चीन को सबक सिखाने के लिए मौके की तलाश में था चीन की बढ़ती आर्थिक स्थिति से भी अमेरिका चिंतित था।

लद्दाख में भारत और चीन के टकराव ने कुछ देशों द्वारा तीसरे विश्व युद्ध की आहट भी मान रहे हैं, क्योंकि लद्दाख में भारत और चीन के टकराव के बीच पहली बार अमेरिका ने ये खुलकर कह दिया है कि चीन की आक्रामक नीतियों की वजह से ना सिर्फ भारत, बल्कि वियतनाम, फिलीपींस, इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे देश भी खतरे में हैं। इस खतरे से निपटने के लिए अमेरिका यूरोप से अपने सैनिक कम करके, इन सैनिकों को एशिया में तैनात करने जा रहा है। जर्मनी सहित यूरोप के कई देशों में अमेरिका के सैन्य अड्डे हैं और वहां पर बड़ी संख्या में अमेरिकी सैनिक तैनात हैं।अमेरिका ने यूरोप में अपनी ये सैन्य ताकत रूस के खतरे से निपटने के लिए वर्षों से लगा रखी है। लेकिन अब दुनिया का सबसे बड़ा खतरा तो चीन और वहां की कम्युनिस्ट पार्टी बन चुकी है।

भारत शुरू से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुद का इस्तेमाल होने से बचता रहा है चाहे भारत-पाकिस्तान सीमा विवाद हो या भारत- नेपाल खुली बॉडर या भारत-श्रीलंका या अन्य किसी भी देशों के साथ भारत सीधी बात को ही प्राथमिकता देता है। किसी भी पक्ष की मध्यस्ता भारत को स्वीकार नहीं होती है भारत चीन सीमा विवाद पर बातचीत के लिए भी भारत ने अमेरिकी मध्यस्ता को ठुकरा दिया है। वहीं चीन दुनिया भर का ध्यान भारत के सीमा विवाद में उलझना चाहता है। नेपाल के साथ भारत के खुले बॉडर पर भी नेपाली सत्ताधारी वामपंथी दलों साथ लेकर चीन ने सुगौली संधि के स्वरूप को छेड़छाड़ कर नेपाल की संसद से नया नक्शा पास करा कर उत्तराखंड सीमा में विवाद पैदा करने की कोशिश की है। तिब्बत को हमेशा चीन अपना अभिन्न अंग बताता रहा है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को भी चीन ने अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने के लिए पाकिस्तान से समझौता के तहत हासिल किया हुआ है। पूर्वी भारत के अरुणाचल प्रदेश को भी चीन अपना हिस्सा बताता रहा है पर इस बार जो गलवान घाटी में हो रहा है उसको लेकर लगता है चीन भी तैयार नहीं था। बिहार रेजीमेंट के 100 जवानों द्वारा 350 चीनी सैनिकों को धूल चटा देने का खौफ चीनी सैनिकों पर साफ दिखता है बिना हथियार के लड़े इस संघर्ष को चीन ना तो स्वीकार रहा है और ना ही खंड़न ही कर रहा है। है बिना हथियार के लड़े इस संघर्ष को चीन ना तो स्वीकार रहा है और ना ही खंडन किया है। युद्ध हमेशा से नुकसान लेकर आता है इस बात को दोनों देश भी समझ रहे हैं पर अंतरराष्ट्रीय बाजार पर कब्जा उसीका होगा जिसके पास ज्यादा ताकत होगी। भारत कभी भी विस्तारवादी नीतियों पर नहीं चला है इसकी ऐतिहासिक पहचान है जो भी भारत आया भारत का ही होकर रह गया। पर अब दुनिया में बाजार ही सबकुछ है, भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार बन गया है पर इसकी सीमा सुरक्षित नहीं है, अक्सर पड़ोसी मुल्क के लोगों द्वारा सीमा का अतिक्रमण करते आये हैं। भारत को जब 15 अगस्त1947 को ग्रेट ब्रिटेन से आजादी मिली थी उस वक्त और वर्तमान भारत का क्षेत्रफल लगभग 33 लाख वर्ग किमी से थोड़ा ही कम है। वहीं 1857 के पहले भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किमी था। पिछले 2,500 वर्षों में भारत पर यूनानी, यवन, हूण, शक, कुषाण, सिरयन, पुर्तगाली, फ्रेंच, डच, अरब, तुर्क, तातार, मुगल और अंग्रेजों ने आक्रमण किए हैं। कहीं पर भी यह दर्ज नहीं है कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, मालदीव या बांग्लादेश पर आक्रमण किया।  ऐसे में चीन के साथ होने वाली युद्ध से भारत का भूगोल में भी परिवर्तन हो सकता है।