वहशी चालक (कविता)

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पतली गली के बीचोंबीच अटकी हैं

हजारों लोगों की जानें

गलती से ट्रेन के चालक ने संतुलन खो दिया

जहां से बचकर निकलना

किसी के लिए संभव नहीं

इस अटकी ट्रेन को निकालने के लिए

महाराणा प्रताप से लेकक सुभाष चंद्र बोस तक ने

कोशिश तो की

मगर गांधी, नेहरू जैसे यात्रियों की जिद की

वजह से

यह ट्रेन बढ़ने के बजाय वहीं रुक गयी

अब इस ट्रेन पर कभी सफर नहीं होता

गांधी, नेहरू की लाशें आज भी दुर्गन्ध देती हैं

दो आदमियों की वजह से कोई देश टूटा हो

इसका उदाहरण हिंदुस्तान से अच्छा

दुनिया में दूसरा नहीं मिलेगा

आज यहां के लोगों में

देश की चिंता नहीं रही

सभी की एक ही इच्छा है

कि ट्रेन जहां रुकी है

वहीं रुकी रहे

जीवन के आगे बढ़ने की

अब और जरूरत नहीं रही।

(काव्य संग्रह संगीन के साये में लोकतंत्र से)

1 COMMENT

  1. Good read … headline catchy … good points, some of which I have learned along the way as well (humility, grace, layoff the controversial stuff). Will share with my colleagues at work as we begin blogging from a corporate perspective. Thanks!

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