लिटरेचर लव
…आँखे नहीं भिगोना बाबा (कविता)
”क्या हँसना क्या रोना बाबा,
क्या ही गुस्सा होना बाबा”
”तीस बरस से बिछा रहे है,
बो ही एक बिछोना बाबा ”
”खून-पसीने की रोटी का,
क्या पाना क्या खोना बाबा”
”महलो के छोटे बच्चो का,
हम है एक खिलौना बाबा”
”तकलीफों में भूल चुके है,
अब तो रोना-धोना बाबा”
”बारिश में सर ढक देता है,
मंदिर का बो कोना बाबा”
”हमने बैसे ही कह दी है,
आँखे नहीं भिगोना बाबा’
——-संदीप’अक्षत’——