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इशरत जहां एनकाउंटर का सच!
इशरत जहां एनकाउंटर मामले पर पूरे देश की नजर टिकी हुई है। सीबीआई गुजरात हाई कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर चुकी है। चूंकि अब यह केस पूरी तरह से राष्टÑीय महत्व की हो चुकी है, इसलिए सीबीआई भी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। सीबीआई के सामने सबसे बड़ा दबाव यह था कि इस एनकाउंटर के साजिशकर्ताओं के नामों का उल्लेख वह अपनी चार्जशीट में करे या न करे। इस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति में भावी प्रधानमंत्री के तौर पर तेजी से उभर रहे हैं और इशरत जहां एनकाउंटर केस का सीधा संबंध नरेंद्र मोदी से है क्योंकि वह उसी सूबे के मुखिया हैं, जहां पर इशरत और उसके तीन साथियों को हलाक किया गया था।
‘सफेद दाढ़ी’ और ‘काली दाढ़ी’
नरेंद्र मोदी लंबे समय से गुजरात की तरक्की का बखान करते आ रहे हैं। इशरत जहां मामले में गुजरात पुलिस के टॉप अधिकारियों के नामों का उल्लेख साजिशकर्ता के तौर पर चार्जशीट में किया गया है। समझा जाता है कि इसका असर मोदी के ‘गुजरात मॉडल’ पर भी पड़ेगा, जिसका प्रचार वह जोर-शोर से करते आ रहे हैं। वैसे भी इस मसले को लेकर गुजरात सरकार की काफी फजीहत हो चुकी है। पिछले कुछ दिनों से इस एनकाउंटर केस में ‘सफेद दाढ़ी’ और ‘काली दाढ़ी’ की खूब चर्चा हो रही है। अंदरखाने हवा में यह बात तैर रही है कि इस एनकाउंटर के तार मुख्यमंत्री निवास से भी जुड़े हुये हैं। हालांकि अभी तक इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं मिला है लेकिन विगत में जिस तरह से सीबीआई का इस्तेमाल केंद्र सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों को निपटाने के लिए करती रही है, उसे देखते हुये इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि सीबीआई कुछ ऐसा पेंच जरूर लगाएगी, जिससे गुजरात सरकार का दामन दागदार हो। बहरहाल अभी गेंद पूरी तरह से सीबीआई के पाले में है।
इशरत जहां का संक्षिप्त इतिहास
गुजरात में अहमदाबाद और गांधीनगर के बीच 14 जून, 2004 को अहमदाबाद पुलिस क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने लश्करे तोइबा से संबंधित चार दहशतगर्दों को एक मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया था। इन चार दहशतगर्दों में मुबई की 19 वर्षीय लड़की इशरत जहां भी शामिल थी। अन्य तीन लोग थे प्रनेश पिल्लई उर्फ जावेद गुलाम शेख, अमजद अली राना और जशीन जौहर। बिहार से आने के बाद इशरत जहां का परिवार मुंबई के राशिद कंपाउंड में रहने लगा था। सात भाई बहनों और माता-पिता के साथ इशरत जहां यहीं पर रह कर मुंबई के गुरु नानक खालसा कॉलेज से विज्ञान में ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही थी। दो साल पहले अपने पिता की मौत के बाद अपने परिवार का पेट पालने के लिए इशरत जहां जावेद शेख के लिए सेक्रेटरी का काम भी कर रही थी। घटना के दिन जावेद भी उसके साथ था। दो महीना पहले ही वह उसके संपर्क में आई थी। वह काम के सिलसिले में अक्सर जावेद के साथ बाहर जाया करती थी, हालांकि उसकी मां को यह पसंद नहीं था कि उसकी बेटी घर से बाहर निकले। उस दिन भी वह अपनी मां को बताए बिना ही जावेद के साथ मुंबई से बाहर निकली थी। जावेद के जरिये ही वह अमजद और जशीन जौहर के संपर्क में आई थी, जिनके बारे में कहा गया है कि वे पाकिस्तान मूल के थे। अमजद के पास एक एके-47 राइफल भी बरामद की गई थी। मौत के बाद इन दोनों की लाश लेने भी कोई नहीं आया था।
पुलिस का दावा
इस एनकाउंटर का नेतृत्व डीसीपी डीजी वंजारा ने किया था। पुलिस का कहना था कि इशरत जहां समेत सभी दशहतगर्दों के ताल्लुक कुख्यात आतंकी संगठन लश्करे तोइबा से थे और इनका उद्देश्य गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को हलाक करना था। जिस वक्त मुठभेड़ हुआ, उस समय वे ब्लू रंग की टाटा इंडिका कार में सवार थे। इनका मकसद 2002 में गुजरात दंगे में मारे गये मुसलमानों का बदला लेना था। गुजरात में इनके दाखिल होने की जानकारी मुंबई पुलिस से मिली थी। गुजरात में आईबी अधिकारी राजेंद्र कुमार ने भी गुजरात पुलिस को सचेत किया था कि कुछ दहशतगर्द मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के इरादे से गुजरात में दाखिल हुये हैं। वर्ष 2004 में लौहर से प्रकाशित लश्करे तोइबा के एक अखबार में भी दावा किया गया था कि इशरत जहां लश्करे तोइबा के लिए काम कर रही थी, हालांकि वर्ष 2007 में लश्करे तोइबा का राजनीतिक संगठन जमात -उद -दावा ने एक बयान जारी करके इसका खंडन किया था और इशरत जहां के परिवार वालों से क्षमा मांगी थी।
चौतरफा विरोध और जांच
जब इशरत जहां के परिवार वालों ने गुजरात पुलिस के तमाम अरोपों का विरोध करते हुए इशरत जहां को निर्दोष बताया और मुंबई पुलिस ने भी इस बात की तस्दीक की कि उसका कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है तो इस मामले की जांच की मांग चौतरफा होने लगी। मानवाधिकार संगठनों ने भी जांच की मांग को लेकर मोर्चा खोल दिया। इनका कहना था कि जांच के दौरान सामान्य प्रक्रियाओं का भी पालन नहीं किया था। न एफआईअर दर्ज की गई और न ही किसी गवाह के बयान दर्ज किये गये। घटनास्थल पर मुठभेड़ के दौरान चली गोलियों के निशान को भी चिह्नित नहीं किया गया। काफी हंगामे के बाद इस एनकाउंटर की जांच की जिम्मेदारी मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट एसपी तामंग को सौंपी गई। सात सितंबर, 2009 को अहमदाबाद के मेट्रोपोलिटन कोर्ट में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में एसपी तमांग ने कहा कि चारों लोगों की हत्या पुलिस कस्टडी में हुई है। इस घटना को पुरस्कार और पदोन्नति पाने के लिए पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने एक साजिश के तहत अंजाम दिया है। अपनी 243 पृष्ठों की रिपोर्ट में तमांग ने इस हत्याकांड के लिए डीजी वंजारा को जिम्मेदार ठहराते हुये कहा कि क्राइम ब्रांच पुलिस ने इन चारों को 12 जून को मुंबई से ही उठाया था और 14 जून को इनकी हत्या कर दी थी। 15 जून को इन लोगों ने हत्याकांड को एनकाउंटर के रूप में पेश किया। न तो पुलिस के पास इनके लश्करे तोइबा के साथ संबंध का सबूत था और न ही इस बात का कि ये लोग गुजरात में नरेंद्र मोदी की हत्या करने के उद्देश्य से आए थे। इस मामले में शामिल तमाम पुलिस अधिकारी अपने निजी हितों से संचालित हो रहे थे। वंजारा और उनकी टीम के नरेंद्र के अमीन इसके पहले भी सोहराबुद्दीन के फर्जी एनकाउंटर में संग्लन थे। अपनी रिपोर्ट में उन्होंने अहमदाबाद के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर के आर कौशिक, क्राइम ब्रांच के प्रमुख पीपी पांडे और एक अन्य एनकाउंटर स्पेशलिस्ट तरुण बारोट को भी इसके लिए दोषी करार दिया। जब गुजरात सरकार ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट को गुजरात हाई कोर्ट में यह कहते हुये चुनौती दी कि इसमें पुलिसकर्मियों को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया है तो गुजरात हाई कोर्ट ने इस रिपोर्ट पर रोक तो लगा दी लेकिन स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) को इस बात की इजाजत दे दी कि आगे जांच के लिए वह इस रिपोर्ट का इस्तेमाल कर सकती है।
एसआईटी की रिपोर्ट व सीबीआई जांच
करनैल सिंह के नेतृत्व में गठित स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम में प्रोफेसर टीडी डोगरा और डाक्टर राजेंद्र सिंह जैसे विशेषज्ञों को शामिल किया गया था। 21 नवंबर, 2011 को गुजरात हाई कोर्ट में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में करनैल सिंह ने एक बार फिर इस बात की तस्दीक की कि इशरत जहां का एनकाउंटर फर्जी था। इसके बाद गुजरात हाई कोर्ट ने सभी दोषियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करने का निर्देश दिया। इसमें 20 लोगों को नामजद किया गया, जिनमें कई टॉप लेवल के पुलिस अधिकारी थे। आईपीएस अधिकारी सतीश वर्मा की मदद से इस मामले की जांच सीबीआई ने शुरूकी। सबसे पहले पीपी पांडे पर शिकंजा कसा गया। आईबी अधिकारी राजेंद्र कुमार का नाम भी सीबीआई की लिस्ट में आ गया। 21 फरवरी, 2013 को सीबीआई ने आईपीएस अधिकारी जी एल सिंघल को गिरफ्तार कर लिया। एनकाउंटर के समय संघल क्राइम ब्रांच के असिस्टेंट कमिश्नर थे। सीबीआई के मुताबिक इशरत जहां एनकाउंटर में सिंघल की अहम भूमिका थी। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी तरुण बरोट, जेजी परमार, एनके अमीन, भरत पटेल और अंजू चौधरी को पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका था। लेकिन 90 दिन के अंदर सीबीआई द्वारा चार्जशीट दाखिल ने करने की वजह से अमीन को छोड़कर बाकी सभी लोगों को जमानत मिल गई। पीपी पांडे तो अभी तक फरार चल रहे हैं, हालांकि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एफआरआई को खारिज करने के लिए अर्जी दे रखी है। सीबीआई के निदेशक रंजीत सिन्हा इशरत जहां एनकांटर के साजिशकर्ताओं पर खामोशी बरत रहे हैं। वैसे पूरा देश इशरत जहां एनकाउंटर की सच्चाई का इंतजार कर रहा है।