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एक जिंदादिल इंसान थे संजय भाई, शत शत नमन

जिंदगी और मौत का कोई ग्रामर नहीं होता। हमें लगता है कि सब कुछ हमारे हाथ में है, और हम जैसा चाह रहे हैं बिल्कुल वैसे ही जी रहे हैं। फिर पलक झपकते मौत हमें उड़ा ले जाती है, ना जाने कहां। मौत के बाद जिंदगी के बारे में बहुत कुछ कहा गया है, विधि-विधान, रीति रिवाज से शरीर की अंत्येष्टि की जाती है ताकि अनंत यात्रा पर निकली हुई आत्मा अपने परम पिता के शरणागत हो सके। यदि यह सच है तो संजय भाई की आत्मा परम गति को प्राप्त हो।
उनकी मौत की खबर निसंदेह स्तब्ध करने वाली है। यह उम्र नहीं था जाने का। हंसता हुआ आत्मविश्वास से भरा उनका चेहरा अभी भी मेरे आंखों के सामने घूम रहा है। वह रिश्ते को निभाते नहीं थे बल्कि जीते थे। जहां तक मुझे याद है, हमारे जर्नलिज्म के बैच में सबसे अंतिम नामांकन उन्हीं का हुआ था। लेकिन जल्द ही अपनी जिंदादिली और मिलनसार नेचर की वजह से सभी के बीच लोकप्रिय हो गए थे। उनके व्यक्तित्व में कटाव नहीं था, हर किसी से वह खुलकर के मिलते थे। सिर्फ मिलते ही नहीं थे जब मदद करने की बात आती थी तो सारी सीमाओं को तोड़ते हुए मदद करने के लिए तत्पर रहते थे।
मुझे याद है जब मैं मुंबई में था तो भड़ास मीडिया पर मैं एक कॉलम लिख रहा था पत्रकारिता की काली कोठरी से। उसमें मैंने उनका भी जिक्र किया था, उनके अलमस्त अंदाज़ के बारे में भी देखा था। उन्होंने मुझे कॉल किया था और कहा था कि, मैं उनकी छवि बिगाड़ रहा हूं और वह मुझ पर मानहानि का मुकदमा करेंगे। मेरे यह कहने पर कि मेरा हक बनता है कि मैं जैसे चाहूं आपके बारे में लिख सकता हूं। वह जोर जोर से हंसने लगे। उनकी हंसी आज भी मेरे कानों में गूंज रही है। जब मैं यह लिख रहा हूं तो मुझे ऐसा लग रहा है कि वह दूर बैठकर के हंस रहे हैं और कह रहे हैं, कि जितनी जिंदगी मुझे मिली थी मैंने जी ली। अब मैं लंबे सफर पर निकल चुका हूं।
उनकी राइटिंग बहुत ही सुंदर थी, और दिमाग भी उतना ही क्रिएटिव। मुझे याद है उनकी प्रैक्टिकल की कॉपी सबसे अच्छी थी। स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में से बहुत सारे फोटो काट कर के छोटे-छोटे कोटेशन के साथ उन्होंने अपने प्रैक्टिकल कॉपी को शानदार अंदाज में सजा रखा था। उन्होंने एक बार कहा भी था कि रिपोर्टिंग या पत्रकारिता के बजाय एडवर्टाइजमेंट या मार्केटिंग में काम करूंगा। उनके सहज प्रतिभा उन्हें इसी क्षेत्र में ले गई। और बहुत जल्द ही उन्होंने अपने आप को मजबूती के साथ इस क्षेत्र में स्थापित भी कर लिया।
किसी के जाने से सब कुछ खत्म नहीं होता, वह जिंदा रहता है अपने लोगों की यादों में। आज मैं उन्हें शिद्दत से याद कर रहा हूं इस विश्वास के साथ कि कभी भुलाए नहीं जा सकेंगे।

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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