कैग रिपोर्ट के बाद फजीहत का ठीकरा किस के सिर

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मुकेश महान, पटना

कैग की रिपोर्ट के बाद विपक्षी दलों के हंगामे और बिहार सरकार की फजीहत अब जनता के सामने है। मीडिया ने भी इस मामले में कैग रिपोर्ट को जनता तक पहुंचाने में महती भूमिका अदा की है। नतीजा सामने है। बिहार में अचानक  सुशासन तार-तार होता दिख रहा है। सुशासन बाबू सहित वित्त मंत्रालय संभाल रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता और उपमुख्यमंत्री भी इस मुद्दे पर गंभीर दिख रहे हैं । इन दोनों की गंभीरता के कारण अलग हैं। राजनैतिक प्रेक्षक कई तरह के कयास लगा रहे हैं, तो गठबंधन के दोनों दल अपनी अपनी साख बचाये रखने के लिए खासा एक्सरसाइज कर रहे हैं। दरअसल लंबे समय बाद बिहार में सुशासन का आभामंडल तैयार करने में  मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कड़ी मशक्कत करनी
पड़ी थी। जदयू के नेता और कार्यकर्ता को भी इसके लिए बार- बार मन मसोस कर रह जाना पड़ता था। सुशासन की इस छवि के लिए उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी सहित भाजपा को भी कम पापड़ नहीं बेलने पड़े थे । ऐसे में सुशासन के तार- तार होने का ठीकरा किस पर फोड़ा जाए, सत्तारुढ़ गठबंधन  के दोनों ही दलों में इसपर मंथन चल रहा है। सरकार के वित्तीय प्रबंधन की जिम्मेदारी वित्तमंत्री की हैसियत से उपमुख्यमंत्री सुशील  मोदी की बनती है। यही वजह है कि जदयू में एक धरा 
वित्तीय कुप्रबंधन और इसके लिये हो रही सरकार की फजीहत के लिए मोदी जी को ही जिम्मेदार मानती है और इसका ठीकरा भी उन्हीं पर फोड़ना चाहती है। गठबंधन के लगभग सभी सक्रिय सदस्यों को यह भी मालूम है कि ऐसे किसी भी
आरोप –प्रत्यारोप में सरकार अपनी छवि बनाये और बचाये रखने के लिए किसी को भी बलि का बकरा बना सकती है। ऐसे में भाजपा सहित सुशील मोदी के माथे पर चिंता स्वाभाविक है और यही खास चिंता भजपा को अपने  गठबंधन नीति  पर फिर से मंथन करने पर विवश भी कर रहा है। भाजपा में भी एक धरा ऐसे मौके का लाभ उठा कर जनता के सामने सीधे बलि का बकरा बनने की जगह हीरो बनने की जुगाड़ में है। लेकिन तब भाजपा को सरकार

की हो रही फजीहत का ठीकरा जदयू के सिर फोड़ना होगा। और संभव है कि सत्ता से मोह भी तोड़ना पड़ सकता है  ।  हालांकि सत्ता सुख भोग रहे भाजपा नेता इसके पक्ष में नहीं होंगे। लेकिन भाजपा को यह डर भी सता रहा है कि जदयू कभी भी सरकार की इस फजीहत का ठीकरा उस पर फोड़ सकती है। इस तरह की सुगबुगाहट दोनों पार्टियों में है। दूसरी ओर दोनों दलों के प्रदेश के शीर्ष नेता इस पर अभी चुप्पी साधे हुए हैं ।  इसमुद्दे पर कुछ बोलने से बचना चाहते हैं और उनकी यह कोशिश है कि फजीहत का यह समय शांति से और जल्दी से गुजर जाए क्योंकि सत्ता से दूर होने की मंशा दोनों में से किसी भी दल  की नहीं है।

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