खुद बीमार है पटना आयुर्वेदिक कालेज अस्पताल

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बुनियादी सुविधाओं के लिए मरीजों ने मानवाधिकार आयोग से गुहार लगाई

प्रियरंजन कुमार “राही”, पटना

बिहार में चिकित्सा के नाम पर एक ओर निजी क्लिनिक वाले मरीजों व उनके परिजनों को खुलेआम लुट रहे हैं वहीं सरकारी अस्पतालों में तमाम तरह के बुनियादी सेवाओं का अभाव है। आयुर्वेदिक अस्पतालों की स्थिति तो और भी बदतर है। कदमकुआं स्थिति राजकीय आयुर्वेदिक कालेज अस्पताल के सैंकड़ों मरीजों ने तो अस्पताल में बुनियादी सुविधाओं की मांग करते हुये मानवाधिकार आयोग, बिहार, के अध्यक्ष को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में कहा गया है कि अस्पताल में भर्ती मरीजों को उन सभी सुविधाओं से वंचित किया जा रहा है जिसके वे हकदार हैं। इस पत्र की एक प्रति तेवरआनलाईन को भी मुहैया कराया गया है, जिसे हम हू-बहू प्रकाशित रहे हैं, इस विश्वास के साथ कि इस संदर्भ में मानवाधिकार आयोग कोई ठोस कदम उठाएगा।  

सेवा में,

अध्यक्ष, मानवाधिकार आयोग, बिहार

बेली रोड पटना।

बिषय : अधीक्षक, हेड नर्स, पीजी हेड एवं आफिस हेड, राजकीय आयुर्वेदिक कालेज अस्पताल, कदमकुआं, पटना द्वारा रोगियों के लिए सरकार द्वारा देय सुविधाओं का गबन करने एवं रोगियों के मौलिक सुविधाओं (मानवाधिकार) का लंबा समय से हनन करने के संबंध में।

महाशय,

हम सब अपने-अपने रोगों के निराकरण के लिए राजकीय आयुर्वेदिक कालेज अस्पताल, कदमकुआं, पटना में भर्ती होकर इलाज करा रहे हैं। परन्तु यहां की कुव्यवस्था, भ्रष्टाचार, दुर्व्यवहार, कर्तव्यहीनता, गंदगी, पानी, बिजली का अभाव एवं भोजन तथा दवाओं की कटौती इत्यादि से लंबे समय से प्रताड़ित एवं परेशान हो रहे हैं। इन सब अव्यवस्थाओं एवं परेशानियों के निराकरण हेतु हम सभी के साथ-साथ इस अस्पताल के अन्तर्गत पूर्व में भर्ती रहें कई रोगी संबंधित डाक्टर, अधीक्षक तथा संबंधित पदाधिकारियों यथा जिलाधिकारी, पटना, सचिव, मंत्री स्वास्थ्य विभाग इत्यादि से शिकायत करते-करते थक एवं मजबूर हो गये हैं, पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है। बल्कि शिकायत करने पर अस्पताल प्रशासन द्वारा चिकित्सा के दरम्यान ही नाम काट दिया जाता है अथवा दवाओं एवं भोजन इत्यादि को रोक दिया जाता है। जानबूझकर पानी, बिजली को बंद कर रोगियों को परेशान किया जाता है, जिससे रोगी स्वंय अस्पताल छोड़ देते हैं। अस्पताल में मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है एवं देय सुवाधाओं से हमलोग वंचित हो रहे हैं, जिसे हम सब संक्षेप में उल्लेख कर रहे हैं—

  1. भोजन के लिए प्रति रोगी सरकार द्वारा प्रतिदिन 50 रुपये दिया जाता है, जिसमें से प्रशासन द्वारा कुछ रोगियों को केवल एक किलो दुध एवं 400 ग्राम का एक पैकट दलिया दिया जाता है। जो अधिकतम 40-45 रुपये का होता है। इनमें से भी प्राय: प्रतिदिन कुछ रोगियों को इसकी आपूर्ति यह कह कर बंद कर दिया जाता है कि आप अपने बेड पर नहीं थे। कुछ रोगियों को केवल दोनों समय थोड़ा सा चावल, पतला दाल एवं प्राय:प्रतिदिन आलू की सब्जी या चोखा, एक पैकेट दुध और छोटा पैकेट ब्रेड दिया जाता है। इनमें से भी कुछ लोगों को बेड पर न रहने का बहाना बनाकर दुध एवं ब्रेड का पैकेट इत्यादि नहीं दिया जाता है। कभी भी किसी रोगी को फल या हरी सब्जी नहीं दी जाती है। वहीं दूसरी तरफ दो-तीन माह से कुछ डाक्टरों द्वारा फर्जी रूप से केवल कागज पर रोगियों को भर्ती दिखलाकर रोगियों को मिलने वाले सामानों को अधिकारी एवं हेड नर्स अपने व्यक्तिगत यूज के लिए घर ले जा रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा संचालित श्री धरियम नेत्र चिकित्सालय, आर्य वैद्यशाला, टैली मेडिसीन, वृद्धों के लिए चिकित्सा केंद्रों में प्राय: फर्जी रोगियों के नाम पर एडमिशन देकर दवा वितरण किया जाता है और जरूरतमंदों को सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है। नेत्र चिकित्सालय में ही पैसा लेकर चश्मा दिया जाता है।
  2. बिजली कटने पर जेनरेटर प्राय : नहीं चलाया जाता है। अगर कभी चलाया भी जाता है तो केवल चिकित्सकों, अफसरों, नर्सों एवं बड़ा बाबू के रूम में पंखा व बल्ब जलता है। रात में पूरा अस्पताल प्राय: अंधेरे में रहता है। बाथरूम, बरामदा, सीढ़ी एवं कुछ वार्ड भी पूरी तरह अंधेरे में रहता है। बिजली रहने पर भी वार्ड, बरामदा, सीढ़ी इत्यादि अंधेरे में रहता है। कई रोगी बाथरूम में अंधेरे के कारण चोट खा चुके हैं। महिलाओं के साथ अंधेरे में कभी भी कोई अनहोनी हो सकती है। बड़ा एवं छोटा जेनरेटर दोनों खराब बताया जा रहा है।
  3. एंबुलेंस को कभी भी हमलोगों ने चलते हुये नहीं देखा है। मांग करने पर कहा जाता है कि एंबुलेंस खराब है। पैथोलाजी में अधिकतर जांच नहीं किया जाता है। जो कुछ किया भी जाता है उसका रिपोर्ट प्राय: फर्जी होता है। एक्स रे में इनडोर रोगियों से भी पैसा चार्ज किया जाता है। आंख में आपरेशन के नाम पर लेंश के लिए 1000-1500 रुपये का खर्च बताया जाता है। अल्ट्रासाउंड के लिए रोगी को बिना वजह भर्ती किया जाता है।
  4. बेडसीट प्राय : 10-15 दिनों पर हल्ला-गुल्ला करने के बाद बदला जाता है। भर्ती होने पर भी प्राय : दो-तीन दिनों के बाद ही बेड सीट दिया जाता है। मच्छरदानी, तकिया, सामान आदि रखने के लिए लाकर, पेशाब-पैखाना कराने के लिए बर्तन, गंदे सामनों को रखने के लिए बाल, रोगियों के अभिभावकों या सहायकों के लिए स्टूल/कुर्सी इत्यादि भी मुहैया नहीं कराया जाता है। ज्यादातर पलंग भी टूटा हुआ है, फिर भी ध्यान नहीं दिया जाता है।
  5. ज्यादातर रोगी पंचकर्म करा रहे हैं, पर इससे संबंधित धृत, एनिमा के लिए तेल, गलप्स, एनिमा सेट, गलैसरीन सिरिंज, कैफियेटर, तील तेल इत्यादि कभी किसी को नहीं दिया जाता।  जो मालिश के लिए तेल, बस्ती के लिए शहद, पीने के लिए पंचकोल, सेकने के लिए दशमूल इत्यादि का प्रयोग किया जाता है वह भी बहुत घटिया स्तर का दिया जाता है। भंडार में रहते हुये भी बहुत दवाओं को नहीं दिया जाता है। फलस्वरूप ज्यादातर इंस्टुमेंट, तेल एवं दवाएं हम लोगों को बाहर से क्रय करना पड़ता है। पंचकर्म में कमी के कारण हम सभी का काम सफर करता है या बहुत विलंभ से होता है।
  6. बाथरूम, टायलेट एवं हास्पीटल के अंदर इतनी गंदगी है कि रोग ठीक होने के बजाय कभी कभार रोग बढ़ जाता है या नया रोग हो जाता है। कहने के लिए तीनों समय सफाई का ठेका दिया गया है। परन्तु प्रात: कालीन सफाई के अलावा दोपहर एंव रात्रि में कभी भी सफाई नहीं होती है। प्रात: में भी जैसे तैसे लेट लतीफ सफाई होती है। फेनाइल, एसीड इत्यादि का कभी प्रयोग नहीं होता है।
  7. पानी की आपूर्ति सबसे जरूरी होता है, पर यहां जब से हमलोग भर्ती हैं तब से कभी भी नियमित रूप से पानी नहीं मिलता है। कभी-कभी दो-तीन रोज तक पानी नहीं आता है। पानी टंकी, वाटर कूलर इत्यादि की कभी सफाई नहीं होती है। ऊपर का पानी टंकी प्राय: खुला रहता है। ज्यादतर रोगी पानी भरते-भरते बीमार हो जा रहे हैं। बोरिंग दो माह से खराब है।
  8. दोपहर 1 बजे के बाद एवं प्रात: 8 बजे के पूर्व कोई डाक्टर अस्पताल में नियमित रूप से नहीं रहता है। कुछ कर्मचारी, नर्स एवं कंपाउडर भी यदाकदा आते हैं। इमरजेंसी के लिए आवश्यक एवं जीवन रक्षक दवाएं नहीं रहती हैं। ऐसी स्थिति में काल करने पर कुछ डाक्टर आ भी जाते हैं तो सुविधा के अभाव में कुछ नहीं कर पाते हैं। सभी रोगियों को भगवान भरोसे रहना पड़ता है या फिर प्राइवेट में जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
  9. आये दिन सभी अव्यवस्थाओं के लिए रोगियों को ही कसूरबार समझा जाता है। चोरी एवं सामानों को बर्बाद करने का इल्जाम भी कभी-कभी रोगियों के मत्थे मढ़ा जाता है। जबकि सामानों की चोरी में अधिकारियों एवं कर्मचारियों का ही हाथ रहता है।

 इन सब अव्यवस्थाओं के लिए अधीक्षक से मिलने पर भी कोई कार्रवाई नहीं होती है। ये प्राय: इसी चैंबर में कुछ नर्सों एवं चाटुकारों के साथ पड़े रहते हैं और कहते हैं कि छोटे-छोटे काम के लिए हमारे यहां आने की जरूरत नहीं है। अगर आप लोग यहां की व्यवस्था से संतुष्ट नहीं है तो कहीं और चले जायें। इस तरह हमलोगों के मौलिक अधिकारों, सुविधाओं एवं मानवाधिकार का हनन हो रहा है।

 अत:  आपसे निवेदन है कि आप अस्पताल में जाकर स्थितियों का अवलोकन एवं आकलन कर न्यायोचित कार्रवाई करें। पर एक आग्रह है कि जब भी आएं तो यहां के अधीक्षक या अधिकारियों को अपने साथ न लायें। अन्यथा वे लोग थोड़े समय के लिए व्यवस्था ठीक कर देंगे अथवा जो रोगी बोलना चाहेगा उनलोगों के डर से नहीं बोल पाएगा। और अगर बोलेगा भी तो उसे या तो प्रताड़ित किया जाएगा या उसका नाम काट दिया जाएगा। यहां की नर्से भी अपने स्तर से रोगियों का नाम काट देती हैं एवं खाना तथा दवाएं बंद कर देती हैं।

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