चिराग के बागी रुख से तेजस्वी का रास्ता!
पटना। एग्जिट पोल की विश्वसनीयता को लेकर हमेशा संशय बना रहता है। यही वजह है कि बिहार विधानसभा चुनाव के बाद विभिन्न सर्वे एजेंसियों द्वारा पेश किये गये एग्जिट पोल पर एनडीए के नेता चुपी साधे हुये हैं तो महागठबंधन के लोग अभी एक दूसरे को बधाइयां देने से परहेज कर रहे हैं। हालांकि एग्जिट पोल का असर दोनों खेमों पर देखा जा रहा है। एनडीए खेमें के लोग अपनी बैठकों में चिराग पासवान द्वारा किये गये डैमेज को स्वीकार करते हुये उन गलतियों को टटोलते नजर आ रहे हैं जिनकी वजह से उनकी हाथों से बिहार की सत्ता छिटकती हुई प्रतीत हो रही है जबकि महागठबंधन खेमा इस बात को लेकर आश्वस्त दिख रहा है कि चाहे कुछ हो तेजस्वी यादव के नेतृत्व में एनडीए को कड़ी टक्कड़ देने में वे लोग कामयाब रहे हैं। वैसे दोनों ही खेमा के लोग यह स्वीकार कर रहे हैं कि यदि बिहार में सत्ता परिवर्तन होता है तो इसमें महत्वपूर्ण भूमिका लोजपा के नेता चिराग पासवान की होगी।
जानकारों का कहना है कि यदि तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद समेत महागठबंधन के तमाम घटक दल कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों ने एक बार रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा का अपना एजेंडा सेट करने के बाद गेंद अपने पाले से निकलने ही नहीं दिया। एनडीए के तमाम नेताओं द्वारा बिहार में जंगलराज की वापसी का डर दिखाया जाता रहा, यहां तक कि तेजस्वी यादव को जंगल राज का युवराज तक कहा गया,लेकिन तेजस्वी यादव 10 लाख युवाओं को बिहार में नौकरी देने के मुद्दे पर अपनी जनसभाओं में लगातार युवाओं की भीड़ बंटोरते हुये सधे हुये कदमों से गोल पोस्ट की ओर बढ़ते रहे। अब वह गोल करने में कामयाब होते हैं या नहीं इसका खुलासा तो मतगणना के बाद भी हो पाएगा। लेकिन इतना तय है कि यदि नीतीश कुमार की फिर से वापसी होती भी है तो वह पहले की तरह मजबूत नहीं रह पाएंगे।
इस बार सत्ता की लगाम की लगाम पर भाजपा की पकड़ नीतीश कुमार से कहीं ज्यादा होने की उम्मीद है। और यदि नीतीश कुमार सत्ता से बेदखल हो जाते हैं और तेजस्वी यादव की ताजपोशी होती है तो शायद जदयू को बिहार विधानसभा में विपक्ष की भूमिका भी नसीब नहीं हो। वह लुढ़कर तीसरे या फिर चौथे पायदान पर जा सकती है। नंबर एक पर राजद और नंबर दो पर भाजपा होगी यानि कि सदन के अंदर विपक्ष की सीट पर भाजपा विराजमान होगी। बिहार की जनता के मन मिजाज
और एग्जिट पोल पर यकीन करने वाले जानकारों का कहना है कि भाजपा ने नीतीश कुमार को बड़े सलीके से सलटा दिया, भले ही इसकी कीमत उसी भी क्यों न चुकानी पड़ रही है। जो नीतीश कुमार पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मदमुकाबिल प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे और दिन प्रतिदिन भाजपा और एनडीए विरोधी खेमें में देश के भावी प्रधानमंत्री के तौर पर उनकी दावेदारी मजबूत होती जा रही थी उनका पर कतरने में भाजपा कामयाब रही। बिहार में एनडीए की कामयाबी के बाद भले ही नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बन जाये लेकिन इस बार इस बार भाजपा का दबदबा कुछ ज्यादा होगा। वैसे भी भाजपा का एक खेमा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दरकिनार करके बिहार में अकेले चुनाव लड़ने का हामी था। नीतीश कुमार के कमजोर होने से इस खेमे को बल मिलेगा। इस खेमे के कई नेता लोजपा की ओर से चुनावी दंगल में ताल भी ठोक रहे थे।
तेजस्वी यादव के नेतृत्व के बिहार में बदलाव की बयार को हवा देने वाले जानकारों का कहना है कि तेजस्वी यादव ने तो मेहनत की है लेकिन उनकी मेहनत चिराग पासवान के बागी रुख के बगैर परवान नहीं चढ़ सकती थी। एक ग्राउंड में दोनों भतीजे लगातार नीतीश कुमार को छकाते हुये बॉल को लेकर गोलपोस्ट की ओर भागते रहे, जिसकी वजह से नीतीश कुमार का संतुलन बिगड़ने लगा था। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने भी चिराग की कलाबाजियों पर चुपी साध कर नीतीश कुमार की मुसीबतों में इजाफा कर दिया था।
इतना ही नहीं जब तेजस्वी ने दस लाख युवाओं को पहली कलम से नौकरी देने का वादा किया और नीतीश कुमार ने इतने लोगों के लिए वेतन देने के लिए पैसे कहां से आएंगे का सवाल उठाया तो भाजपा की ओर से भी बिहार के युवाओं को बड़े पैमाने पर नौकरी देने की घोषणा करके अप्रत्यक्ष रुप से नीतीश कुमार की घेराबंदी कर दी गयी। कहा तो यहां तक जा रहा है कि जैसे जैसे मतदान प्रक्रिया की आगे बढ़ती रही जमीनी स्तर पर भाजपा और जदयू के कार्यकर्ताओं के बीच खाइयां भी चौड़ी होती चली गयी और अंत समय तक इस चौड़ी होती खाई को पाटने की कोशिश भी नहीं की गयी। परिणामस्वरूप जदयू के वोटर भाजपा प्रत्याशी से और भाजपा के वोटर जदयू प्रत्याशी से दूरी बनाते चले गये। इस चौड़ी होती खाई के मूल में चिराग पासवान ही रहे। जदूय के नेताओं की उर्जा तेजस्वी यादव और चिराग पासवान को घेरने में क्षरण होती रही। इस दौरान तेजस्वी यादव अपने पुरान माई (यादव और मुस्लिम) समीकरण को दुरुस्त करते रहे और इसमें वह 16 आना कामयाब भी रहे। कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों की वजह से महागठबंधन मुसलमानों के लिए फर्स्ट च्वाइस बन गया। विभिन्न कारणों से नीतीश कुमार से नाराज वोटरों ने भी महागठबंधन की ओर मुखातिब होना बेहतर समझा।
जानकारों का कहना है कि राजद की सबसे बड़ी कामयाबी यह रही कि सबसे पहले उसने लालू परिवार के बीच में तेजस्वी यादव को लालू यादव का असली राजनीतिक उत्तराधिकारी तौर पर स्थापित कर दिया, और फिर महागठबंधन की ओर से उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी बना दिया। कांग्रेस और वामपंथी दलों ने तेजस्वी को सहजता से भावी मुख्यमंत्री के तौर पर स्वीकार भी कर लिया। एक बार पोजिशन क्लीयर होने के बाद तेजस्वी यादव ने पूरी ताकत झोंक दी। रोजगार के मुद्दे पर वह बिहार के नौजवानों को बदलाव के लिए लगातार ललकारते हुये वह लगातार बिहार की राजनीति में फ्यूजन क्रियेट करते रहे। कारोना की मार से त्रस्त बिहार के नौजवान भी तेजस्वी यादव में बिहार का मुस्तबिल देखते रहे। इतना तो तय है कि यदि तेजस्वी यादव बिहार में सरकार बनाने की स्थिति में नहीं भी आते हैं तो एक मजबूत विपक्ष की भूमिका में उनकी स्थिति और सुदढ़ होगी। हालांकि महागठबंधन के लोगों की आंखों की चमक यहा बता रही है कि तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने के लेकर वे पूरी तरह से आश्वस्त है। उनका कहना है कि कोई चमत्कार ही तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनने से रोक सकता है।