“जन जन की पुकार, आत्मनिर्भर बिहार” मुहिम के आगाज में ही जेपी नड्डा और उनकी बिहारी टीम लड़खड़ाई

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प्रचार गाड़ियों को रवाना करने के दौरान मंच पर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा

आलोक नंदन शर्मा
पटना। कभी-कभी नारे जनमत को गढ़ते हैं तो कभी कभी जनमत की मानसिकता के आधार पर नारे गढ़े जाते हैं। भारतीय जनता पार्टी जनता की नब्ज को टटोलते हुये नारे गढ़ने की कला में पारंगत है। इन हुनर ने भाजपा के चमत्कारिक उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पटना के भाजपा दफ्तर में 2020 बिहार विधानसभा चुनाव का उद्घोष करते हुये एक नारा मुख्य मंच के साथ-साथ चारों तरफ दिखाई दे रहा था,“जन जन की पुकार आत्मनिर्भर बिहार”। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की अगुआई में भाजपा इस नारे के सहारे ही बिहार में विजय पताका लहराने की मानसिकता से खुद को ओतप्रोत दिखाने की कवायद करती हुई नजर आयी।
पितृपक्ष के बावजूद एक नये चुनावी नारे के साथ- भाजपा के दफ्तर को सियासी दुल्हन की तरह से सजाया गया था। पटना की लगभग तमाम प्रमुख सड़कों पर पिछले दो दिन से ही जेपी नड्डा के स्वागत में बड़े-बड़े होर्डिंग और कट-आउट लग चुके थे। इन होर्डिगों में खासतौर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,जेपी नड्डा, सुशील मोदी और संजय जायसवाल के चेहरे चमक रहे थे।
भाजपा कार्यालय के मुख्य दरवाजे पर भी जेपी नड्डा के स्वागत के लिए खासतौर से सजाया गया था। कार्यालय कैंपस में चारों चरफ बैनर और पोस्टर और कट आउट ही नजर आ रहे थे। सभी जगह एक ही नारा दिखाई दे रहा था “जन जन की पुकार आत्मनिर्भर बिहार”।
अपने निर्धारित समय से आधा घंटा देर से पहुंचे जेपी नड्डा का स्वागत तो हुआ लेकिन वहां मौजूद कार्यकर्ताओं की नारों में वह बुलंदी नहीं थी जो हुआ करती थी। शायद प्रचंड गर्मी की वजह से वे परेशान थे। अटल बिहारी सभागार में पहले से ही बिहार के कद्दावार भाजपा नेता कुर्सी पर मास्क पहन कर जम गये थे। और एसी की ठंडी-ठंडी हवा खा रहे थे। उन लोगों ने जेपी नड्डा के स्वागत में कुछ उत्साह जरूर दिखाया। हालांकि इसके लिए भी पहले से ही मंच संचालन की जिम्मेदारी संभाल रहे दीघा विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक संजीव चौरसिया को अपनी ओर से कुछ ज्यादा जोर लगाना पड़ा। इसके बाद शुरु हुआ “जन जन की पुकार आत्मनिर्भर बिहार” नारे को मजबूती से स्थापित करने का सिलसिला। पहले वक्ता के तौर पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने जोरदार तरीके से यह बताया कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश विकास के पथ पर अग्रसर है और कैसे उन्होंने खुद बेतिया से सांसद होने के नाते प्रवासी मजदूरों की समस्या का निराकरण किया।

इसके बाद सुशील कुमार मोदी ने मंच पर कमान संभाला और पुरजोर तरीके से यह साबित करने की कोशिश की कि बिहार का विकास 45 साल से अवरुद्ध था। उन्होंने यह समझाया कि श्री कृष्ण बाबू के बाद ही बिहार की स्थिति डांवाडोल रही है। बीच में कुछ समय के लिए कर्पूरी ठाकुर की गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी लेकिन वह भी कई वजहों से ठीक तरीके से काम नहीं कर पायी। इसके बाद कांग्रेस की सरकार बनी तो उसमें लगातार मुख्यमंत्री ही बदलते रहे। 2005 के बाद से बिहार की स्थिति संभली और सुधरी है और विकास की इस गति को बरकरार रखते हुये इसका विस्तार करने के लिए यह जरूरी है कि बिहार को इसी पैटर्न पर आगे ले जाया जाये।
इसके बाद “जन जन की पुकार आत्मनिर्भर बिहार” की बात को आगे बढ़ाने के लिए मुख्य वक्ता के तौर पर जेपी नड्डा सामने आये। उन्होंने बताया कि ,कैसे जब इटली, स्पेन और अमेरिका कोविड 19 के सामने घुटने टेक चुका था तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरी मजबूती के साथ भारत का नेतृत्व करते हुये उसे महामारी के दौर से आगे निकाल रहे थे, कैसे आज भारत पूरे आत्मविश्वास के साथ कारोना से जंग लगभग जीत चुका है, और कैसे देखते देखते भारत में बड़ी संख्या में कोविड अस्पताल स्थापित किये गये। इसके साथ ही उन्होंने बिहार के विकास की चर्चा करते हुये कहा कि बिहार से उनका गहरा ताल्लुक रहा है और वह इस सूबे की बदहाली के खुद ही चश्मदीद रहे हैं।
जिस वक्त जेपी नड्डा अटल बिहारी सभागार के एसी हॉल में सूबे के कद्दावार नेताओं के साथ संवाद कर रहे थे उस वक्त हॉल के बार तीखी गर्मी में एकत्र कार्यकर्ताओं के बीच भिनभिनाहट हो रही थी। वे लोग एक दूसरे से सवाल कर रहे थे कि भाजपा में स्थानीय और जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं की बेइज्जती कब तक होती रहेगी। वे लोग यह कहने से भी नहीं चूक रहे थे कि बार-बार ऊपर से थोपे गये भाजपा नेताओं को धूल चटाने के लिए वे लोग काम करेंगे। वे लोग भाजपा नेताओं के जरखदीद गुलाम नहीं है कि जिन्हें उनके ऊपर थोप दिया जाएगा उसे ही वो लोग वोट देंगे और लोगों से दिलवाएंगे। प्रचंड की गर्मी की वजह से उनकी भिनभिनाहट गुर्राहट में बदलती जा रही थी। चूंकि मीडिया वाले उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी सभागार में जेपी नड्डा के उद्बोधन को कवर करने में व्यस्त थे इसलिए उनका विरोध कहीं दर्ज नहीं हो पा रहा था।
इसी बीच संजय मयुख हॉल के बाहर निकले और उस मंच का मुआयना करने लगे जिस पर चढ़ कर जेपी नड्डा को “जन जन की पुकार आत्मनिर्भर बिहार” के नारों से सजी हुई तकरीबन एक दर्जन गाड़ियों को हरी झंडी दिखाकर रवाना करना था। वहीं पर खड़े एक शख्स की नजर उन गाड़ियों की दशा और नंबर प्लेट पर गयी तो उसने चुटकी लेते हुये कहा,“ये सभी पुराने मॉडल की गाड़ियां हैं और इनमें से अधिकांश का नंबर यूपी का है। नारा तो दिया जा रहा है “जन जन की पुकार आत्मनिर्भर बिहार” लेकिन गाड़ियां इस्तेमाल हो रही हैं यूपी की। यदि हाल रहा हो तो बिहार कैसे आत्मनिर्भर हो पाएगा। नारे गढ़ना और जमीन पर नारों के अनुसार काम करना दोनों दो बातें हैं।
बाहर संजय मयुख द्वारा मंच का मुआयना करने के कुछ देर पर जेपी नड्डा, सुशील कुमार मोदी, संजय जायसवाल,रविशंकर सहित कई कद्दावार जैसे ही मंच पर आये लोगों की भीड़ चारो तरफ से एकत्र हो गयी। “जन जन की पुकार आत्मनिर्भर बिहार” वाली गाड़ियों को रवाना को करने के लिए जैसे ही जेपी नड्डा ने झंडे को हाथ में लिया, मंच चरमारते हुये तेजी से नीचे की ओर खिसकने लगा और जेपी नड्डा समेत तमाम नेताओं के संतुलन भी बिगड़ने लगे। एक समय तो ऐसा लगा कि जैसे सभी कद्दावर नेताओं की भार से मंच धड़ाम से जमीनदोज होने वाला है। लेकिन इन नेताओं की किस्मत अच्छी थी कि मंच थोड़ा नीचे सरक कर थम गया। वहीं खड़ी प्रचार गाड़ियों को रवाना करने की रस्म पूरा करने के बाद जब जेपी नड्डा अपनी लग्जरी गाड़ी पर सवार होकर निकलने लगे तो पहले से धूप में खड़े नाराज कार्यकर्ताओं का एक समूह उनकी गाड़ी के समाने आकर नारेबाजी करने लगा। कार्यकर्ताओं को जेपी नड्डा की कार के आगे से हटाने के लिए भापपा के प्रदेश संगठन मंत्री नागेंद्र को खुद दौड़ कर आना पड़ा। वह कार्यकर्ताओं अपनी पूरी ताकत लगाकर जेपी नड्डा की लग्जरी गाड़ी के आगे से दूसरी ओर धकेल रहे थे और चिल्लाते रहे थे, “ऐसे कैसे संगठन चलेगा? इतनी तो अक्ल होनी चाहिए कि अपनी बात को कब, कहां और कैसे रखनी है।” ऊंची आवाज में बोलने की वजह से उनके पैर लड़खड़ा रहे थे और पूरा शरीर भी कांप रहा था। चेहरा भी पूरी से लाल हो चुका था।
जेपी नड्डा की गाड़ी के जाने के बाद “जन जन की पुकार आत्मनिर्भर बिहार” वाली गाड़ियां एक एक करके भाजपा कार्यालय से बाहर निकलने लगी। इनका लक्ष्य था बिहार के दूर दराज के इलाकों में जाकर वहां के लोगों को आत्मनिर्भर बिहार का पाठ पढ़ाना।

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