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टूट रहा है भूख और बेकारी से तबाह ग्रामीण गरीबों के सब्र का बांध: धीरेन्द्र झा

पटना। प्रवासी मजदूरों सहित सभी मजदूरों को 10 हजार रुपये कोरोना लाक डाउन भत्ता देने, सभी ग्रामीण परिवारों को राशन-रोजगार देने, स्वयं सहायता समूह जीविका समेत तमाम तरह के छोटे लोन माफ करने, मनरेगा की मजदूरी 500 रुपये करने व साल में न्यूनतम 200 दिन काम की गारंटी करने, दलित व गरीब विरोधी नई शिक्षा नीति2020 वापस लेने सभी बाढ़ पीड़ितों को तत्काल 25 हजार रुपया मुआवजा की राशि उपलब्ध करवाने, सभी गरीब परिवारों के लिए राशन कार्ड का प्रावधान करने, सभी दलित-गरीब छात्रों को कोरोना काल में पढ़ाई के लिए स्मार्ट फोन देने, मनरेगा को कृषि कार्य से जोड़ने, बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देने के सवाल पर भाकपा-माले व खेग्रामस के बैनर से बिहार के लगभग 300  प्रखंडों पर प्रदर्शन हुआ, जिसमें हजारों की तादाद में दलित-गरीबों की भागीदारी हुई। खेग्रामस के महासचिव धीरेन्द्र झा और पूर्व सांसद रामेश्वर प्रसाद ने कहा है कि कोरोना महा लॉक डाउन में मजदूर,किसानों की उपेक्षा को लेकर पटना-दिल्ली सरकारों के खिलाफ आक्रोश चरम पर है। गांव-पंचायतों में नकदी की भारी किल्लत है। लोग भूख-अधभूखे रह रहे हैं। ऐसी स्थिति में सरकार को सबके लिए जीवनयापन भत्ता की गारंटी करनी चाहिए थी लेकिन बिहार की सरकार राज्य की जनता को कोरोना व बाढ़ की तबाही से जुझने के लिए छोड़कर चुनाव की तैयारी में लग गई है। यह चुनाव पूर्व दलित-गरीबों के आक्रोश का प्रदर्शन है जिसकी अभिव्यक्ति चुनाव में भी होगी। हमने नारा दिया है लॉक डाउन भत्ता और लोनमाफी का करो ऐलान, नहीं तो गांव-पंचायतों में घुसना नहीं होगा आसान।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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