देश को दहशत में धकेलने की इजाजत नहीं देती पत्रकारिये प्रतिबद्धता
संजय मिश्रा, नई दिल्ली
सेनाध्यक्ष वी के सिंह ने मीडिया में आई उस खबर को बकवास कहा है जिसमें सेना की दो टुकड़ियों की दिल्ली कूच और देश के कुछ हुक्मरानों में उस रात बेचैनी का जिक्र है। नेपाल यात्रा के दौरान जनरल ने भारत में उबाल पर पहुँची कयासबाजी पर विराम लगाते हुए कहा है कि इसमें कोई तथ्य नहीं है। इससे पहले प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री ने भी ऐसी अटकलों को सिरे से ख़ारिज कर दिया। प्रधान-मंत्री ने इसे –अलार्मिस्ट–यानि खतरों से भरी खबर करार दिया। उन्होंने ऐसे समाचारों को ठीक से समझने की लोगों से गुजारिश की।
इन्डियन एक्सप्रेस की खबर पर अब भले ही हर तरफ से खंडन आ गए हो लेकिन इसके साथ ही कई सवाल मुंह बा कर खड़े हो गए हैं। क्या दिल्ली में बैठे नीति-नियंता भारत जैसी आवो-हवा में भी तख्ता-पलट जैसी आशंका पाल सकते हैं ? क्या –स्लीपलेस नाईट — के दौर से उनका गुजरना उनके मन में बैठे चोर से पैदा हुआ ? क्या इन्हीं में से कुछ लोग सेना प्रमुख वी के सिंह को हटाने की कोशिश के सूत्रधार थे ? एक अखबार की रिपोर्ट पर यकीन करें तो सरकार में बैठे एक कांग्रेसी नेता जनरल से जल्द मुक्ति पाने को व्याकुल हैं । ये कहा जा रहा है कि रक्षा सौदों के दलाल वी के सिंह को इतना बदनाम कर देना चाहते हैं कि या तो सरकार उन्हें वर्खास्त कर दे या फिर जनरल खुद ही पद छोड़ दें । रक्षा खरीद के कई मामलों का पेंडिंग रहना इसकी वजह बताया जा रहा है।
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आर्म्स लॉबी क्या हुक्मरानों और मीडिया में इतनी पहुँच बना चुका है कि वो भारत की बेदाग़ सेना-सरकार संबंधों को धूल में मिलाने का दुस्साहस करे ? क्या इस लॉबी को लगता है कि सॉफ्ट स्टेट की छवि पेश करने वाले भारत को हिलाया जा सकता है ? इंडियन एक्सप्रेस के संपादक शेखर गुप्ता ने अपने उस रिपोर्ट का बचाव किया है जिससे ये हंगामा उठ खड़ा हुआ। उन्होंने साफ़ किया है कि तख्ता-पलट जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं हुआ है। लेकिन पत्रकारिये कारणों का हवाला देकर क्या वे इस खबर से होने वाले नुकसान को छुपा सकते हैं ? बेशक पत्रकारिये निष्ठा देशों की सीमा से ऊपर की चीज होती है। इस निष्ठा को धर्म और सभी तरह की आस्था से प्रभावित हुए बिना ही सही तरीके से जिया जा सकता है। लेकिन मर्यादा ये है कि जहाँ पत्रकारिता की जा रही है वहां के –लौ ऑफ़ द लैंड — का सम्मान करने और वहां के लोगों के — थिंकिंग पैटर्न –को सुलझे दिमाग से देखने की जरूरत है।
जाहिर है वैज्ञानिक सोच की पौध विकसित करने के लिए धार्मिक मामलों में पत्रकारिये आक्रामकता पसंद कर ली जाती है। लेकिन देशों की सुरक्षा को दांव पर लगा देने जैसे समाचार खतरनाक किस्म के ही माने जाएंगे। ये सही है कि शेखर गुप्ता भारतीय पत्रकार हैं और एक भारतीय नागरिक के तौर पर उनके राष्ट्र प्रेम पर उंगली नहीं उठाई जा सकती। लेकिन सवाल पत्रकारिये निष्ठा वाले मन का है। कुछ साल पहले की एक खबर को याद करें। बिहार के गया में आत्म-दाह वाली एक खबर विवादों में फंस गई। यहाँ भी पत्रकार की संवेदना पर सवाल उठे। दरअसल आत्म-दाह करने वाले की हिम्मत पत्रकारों के सामने डगमगा गई। लेकिन विजुअल लेने की सनक में पत्रकारों ने उस व्यक्ति को आग लगाने के लिए उकसाया। ये खबर सुर्खियाँ बटोरने में जरूर कामयाब हुई लेकिन अपने साथ कई सवाल छोड़ गई।
क्या पत्रकारों की कोई विचारधारा हो सकती है। मौजूदा आलेख में आपको ये सवाल अटपटा सा लगेगा। लेकिन भारत में आम-तौर पर ऐसे मौके आते हैं जहाँ पत्रकार अपने उस आम लोगों से ही टकराता है जिसका वो पक्षधर होने की कसमें खाता है। अब वामपंथी और सेक्यूलरवादी रूझान को ही लें । देश के अधिकाँश पत्रकार इन विचारधाराओं से इस हद तक लगाव रखते हैं कि वे भूल जाते कि विचारधाराएँ देशों के लिए बनते हैं न कि विचारधारा के लिए देश बनते। पत्रकारिये निष्ठा सीमाओं से ऊपर की चीज होती है पर क्या इस निष्ठा के लिए देशें बनी हैं। या देशों की जन-भलाई के लिए इस निष्ठा को कसौटी पर कसी जाए। इसके लिए ….वे क्यों भूल जाना चाहते कि उनके पास विचारधारा का एक ही विकल्प सामने आकर खड़ा होता है और वो है “ह्यूमनिज्म” । इस नजरिये से भी देखा जाए तो पत्रकारिये प्रतिबद्धता शेखर गुप्ता जैसों को ये इजाजत नहीं देता कि वो किसी राष्ट्र के समस्त नागरिकों को कुछ समय के लिए दहशत में धकेल दे।
Bade paimane par rajnaitik netaon ka bhrastachar mein sanliptata desh ke liye chinta ka vishay hai, neta ashankit hain ki bhari janakrosh ke chalte paschim asiai desh ki tarah kahin yahan bhi nahi to janta sadak par utar jayegi, yaad rahe ki anna andolan sarkar ko nako dam kar rakha tha, dusari taraf sena tatha anya ashankaon se darkar tarah-2 ka hathkanda apna rahi hai, lekhak samayik samsya ko ati sukshm tarike se varnit kiya hai, anekanek dhanyavaad.