पटना,वार्ड नं दस: समस्याओं के ढेर पर विकसित कॉलोनियाँ
पटना का वार्ड नंबर 10 विकास से अछूता है, ऐसा नहीं कहा जा सकता पर इसकी समस्यायें भी अनंत है। एन एच 98 पर बसा यह वार्ड पुराने गावं और शहर का नायाब समीकरण दिखाता है। इस वार्ड में आने वाले मुख्य क्षेत्र हैं पहाड़पुर, पुलिस कॉलोनी, अलीनगर ,धीराचक और दूसरे मुहल्लों के कुछ कटे हुये इलाके । ये गांव वालों की खेती की जमीन पर बसाये गये कुछ कॉलोनियों को अपने में समेटने की वजह से निजी इमारतों की चमक दमक में समस्या रहित होने का अहसास कराते है। पर इनकी समस्याओं की फेहरिस्त लंबी है। अच्छी सड़क, पक्की गलियां तथा पार्क और स्वास्थ केंद्र तो दूर यहां अब तक सप्लाई पेयजल की भी कोई व्यवस्था नहीं है। इस वार्ड क्षेत्र में आंशिक रुप से आने वाले मानिकचंद तालाब, शिव मंदिर रोड , न्यु हरनीचक रोड, मधुसूदन नगर और नवाब पथ रोड अपनी धूल भरी और जर्जर हालत की कहानी खुद कह रहे हैं। ये कुछ नगरीय और गांव की झलक को समेटे हुये क्षेत्र भी नगर निगम की पोल खोलते हुये ही दिखते हैं, खासकर बरसात के मौसम में जब पूरा पटना नारकीय हो जाता है तब इस क्षेत्र के लोगों की तकलीफ को सहजता से समझा जा सकता है। एक ओर धीराचक में खुली नालियां मलमूत्र और बदबू से भरी हुई हैं, तो दूसरी ओर अलीनगर जैसे व्यवस्थित कॉलोनी में भी नालियां जाम हैं और कभी उनकी सफाई नहीं हुई हैं। जो इलाके काट छांट से इस वार्ड में आते हैं उनका दर्द तो और भी ज्यादा है । उनकी सबसे बड़ी त्रासदी तो अपने अस्तित्व को लेकर है कि वे किस वार्ड के तहत आते है । एक ही जगह बसे कुछ मकान के लोग वार्ड न. 10 के लिये अपना मत देते हैं तो कुछ घरों के लोग अपने को इस वार्ड से बाहर पाते हैं। इस वार्ड में आने वाले सबसे बड़े क्षेत्र को अपने में समाहित किये हुये है पुलिस कॉलोनी । लगभग छ सौ से भी अधिक प्लॉटों पर बने मल्टी स्टोरेज घरों की वजह से एक बड़ी आबादी को अपने क्षेत्र में पनाह दिया है इस कॉलोनी ने, पर इसकी भी समस्याएं अनंत ही हैं।
पुलिस कालोनी के खाली प्लाट में कूड़ों का जमावड़ा है। इस कॉलोनी के जिन मैदानों में कभी बच्चे क्रिकेट और फुटबॉल खेलते थे आज वहां नालियों के बहने से जलकुंभरी हो गया है और उसकी बदबू में लोग जीने को विवश हैं। पुलिस कॉलोनी में ज्यादा तर घर पुलिसवालों का ही है। बड़े आलाधिकारी से लेकर छोटे स्तर के अधिकारी सभी का आशियाना यहां है पर एक अच्छी सड़क, नालियों की समुचित व्यवस्था एवं पानी की टंकी का अभाव सहजता से देखा जा सकता है । एक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी ने बताया कि जब तक ड्यूटी करता था तब चैन नहीं था पर अब जब चैन है तो एक सड़क भी नहीं जिसपर सुबह की सैर कर सके। सुबह की सैर के लिये पास ही जैविक उद्यान(जू) जाना पड़ता है । सैर भले हो जाती है पर आवागमन के बीच के लंबे रास्ते के प्रदूषण से स्वास्थ पर बुरा असर ही पड़ता है। इसके बावजूद निजी घरों की चमक दमक को देखकर यह भ्रम फैलाया जाता है कि यह वार्ड विकसित है। इस वार्ड के अंदर आने वाले कुछ कॉलोनियों की चमचमाती इमारतें भले ही लोगों को विकास का अहसास कराती हो पर नालियों की स्थति पूरे क्षेत्र में आज भी सिंधू घाटी सभ्यता की याद दिलाती है।
पहाड़पुर गांव की स्थिति तो अत्यंत ही दयनीय है। पहाड़पुर गांव तो आज भी एक मुक्कमल सड़क के लिए तरस रहा है। कूड़े-कचड़ों का चारो ओर अंबार फैला हुआ है, साथ ही नालियों का गंदा पानी सड़कों पर बह रहा है ।इसे लेकर लोगों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहे हैं। जबकि इसी क्षेत्र के मूल निवासी हैं यहां के वर्तमान पार्षद श्री सुनील कुमार। गांव वालों के अनुसार उन्होंने भी इस वार्ड का वाछिंत विकास नहीं किया । सब से बड़ी समस्या तो बच्चों को लेकर है, जिनके पास खेलने के लिए न तो मैदान है और न ही पार्क । इस गांव को विकसित करने के लिए यहां शहरी विकास के तर्ज पर कुछ नहीं किया गया है, जिसकी वजह से सामाजिक असमानता और आक्रोश आज भी कायम है।
घनी आबादी होने की वजह से धीराचक की संक्रीण गलियां हमेशा मलमूत्रों से भरी रहती हैं। वहीं गलियों में जहां-तहां कूड़ों का जमावड़ा है। यहां तक कि इन गलियों में रात के समय रौशनी की भी उचित व्यवस्था नहीं है, चारो तरफ अंधकार फैला रहता है। इन गलियों के विकास के लिए भी कुछ नहीं हुआ है। लोग इसी दमघोंटू गलियों में जीवन बसर करने को मजबूर हैं। स्थानीय निवासी राजीव कुमार की माने तो समस्याएं गिनवाने नहीं बल्कि देखने और दिखाने की चीज है । उससे भी ज्यादा तो महसूस करने आवश्यकता है ।
इस वार्ड की राजनीतिक गतिविधि को शुरु से ही निजी स्वार्थपूर्ति का साधन बनाया जाता रहा है। यहाँ के गाव के मूल निवासी एवं शहरीकरण के तहत् बसे नौकरी पेशा लोगों के रहन सहन के अंतर को तो देखा और समझा जा सकता है पर सरकारी सुविधायें जिनपर सभी का एक समान अधिकार है, वह समस्यायें इनकी अमुमन एक जैसी हैं। यही कारण है कि यह वार्ड केवल मूलभूत सुविधाओं से ही वंचित नहीं है बल्कि शैक्षणिक, सांस्कृतिक, खेल कूद एवं बच्चों के सहज विकास जैसे कार्यक्रमों से भी कोसो दूर है। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि इनकी समस्यायें ,हरि अनंत हरि कथा अनंता … ही है ।