बदहाल किसानों की कब सुध लेगी सरकार?
वर्ष 2007 में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने राज्य की 11 चीनी मिलों को बेच दिया था तो उस समय विपक्ष में बैठी समाजवादी पार्टी ने इसे राज्य सरकार का किसान विरोधी कदम बताया था। तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बाकायदा एक संवाददाता सम्मलेन कर मायवती सरकार पर किसानों के हितो की अनदेखी का आरोप लगाया था। अपने बयान में अखिलेश यादव ने कहा था कि सत्ता आने के बाद के बाद माया सरकार के किसान विरोधी इस फैसले की जांच होगी और जो भी दोषी होगा उसके ऊपर कठोर वैधानिक कार्यवाही की जाएगी। पर सत्ता में आने के बाद पहली ही विधानसभा बैठक में मुख्यमंत्री अखिलेश ने ये साफ कर दिया था कि चीनी मिल घोटालों के संदर्भ में कोई जांच नहीं होगी जिसका खुद उनकी ही पार्टी में काफी विरोध हुआ। कई सपा विधायक सरकार के इस निर्णय से खफा हुए। नतीजे के तौर पर सरकार जांच करने को तैयार हुई। आज सत्ता में आये अखिलेश सरकार को 11 महीने हो गए पर अभी तक इस संदर्भ में तस्वीर साफ़ नहीं हो पाई। अब आते हैं उन मुद्दों पर जिनकी बदौलत सपा ने विधानसभा चुनाव में किसानों का विश्वास जीता था। अपने चुनावी घोषणा पत्र में सपा ने कहा था कि सता में आने के बाद वो किसानों के 50 हजार तक के कर्जे माफ़ करेगी और गन्ना का समर्थित मूल्य 350 रूपये प्रति कुंतल करेगी। पर सरकार संभलने के बाद इस काम को करने में सरकार को 11 महीने का समय लग गया जो साबित करता है कि किसानों के हितो को लेकर इस सरकार की मंशा भी साफ़ नहीं है। अब बात करते है सपा के पहली घोषणा की, जिसमें उसने किसानो के 50 हजार तक के कर्ज माफ़ करने का वादा किया था।
पिछले दिनों सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन पर 10 महीने बाद सरकार को किसानों की याद आई। नतीजन सरकार ने तुरंत दिखावटी रस्म आदयगी की। और अपने वायदे के अनुरूप मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने किसानों के 50 हजार तक के कर्ज माफ़ करने की घोषणा की लेकिन साथ ही स्पष्ट कर दिया की ये छूट सिर्फ उत्तर प्रदेश ग्राम्य विकास बैंक से लिए गए कर्जो पर लागू होगी वो भी इस शर्त के साथ की कर्ज लेने वाले किसान 31 मार्च 2012 तक मूल कर्ज का 10 प्रतिशत चुका दिया हो। अब सवाल ये होता है कि क्या सिर्फ उत्तर प्रदेश ग्राम्य विकास बैंक के कर्जो को शर्त के साथ माफ़ करके बड़े पैमाने का पर कर्जदार हो चुके राज्य के किसानों को कर्जे से राहत मिल सकती है? इस सवाल का जवाब खुद किसान देते हैं। उनका कहना है कि हम लोगों के ज्यादातर कर्जे तो राष्टीय बैंको में है। उत्तर प्रदेश ग्राम्य विकास बैंक में तो सिर्फ राज्य के 10 या 20 फीसदी किसानो के ही कर्जे होंगे। राष्ट्रीयकृत बैंको से ही कर्जा लेने की स्थिति को भी ये किसान स्पष्ट करते हैं। इन किसानों का कहना है कि राष्ट्रीयकृत बैंको से कर्ज मिलने में आसानी होती है और कर्ज के समय बैंक अधिकारियों को दी जाने वाली दलाली भी उत्तर प्रदेश ग्राम्य विकास बैंक के अधिकारियों को दी जाने वाली दलाली से काफी कम होती है।
इसी तरह सपा का किसानों से दूसरा वायदा था, गन्ना का समर्थित मूल्य 350 रूपये प्रति कुंतल करने का। हाल ही में मुख्यमंत्री को अपने इस वायदे की भी याद आई और उन्होंने किसानों पर अहसान करते हुए गन्ना के समर्थित मूल्य में लगभग 60 रूपये की बढ़ोत्तरी की। जिसके बाद गन्ने का समर्थित मूल्य अधिकतम 290 रूपये प्रति कुंतल हो गया। यहाँ यह बात काफी महतवपूर्ण है कि गन्ने का अधिकतम मूल्य जो 290 रूपये निर्धारित किया गया है वो सबसे उच्च गुणवत्ता वाले अगैती गन्नों का मूल्य है जो कि ज्यादतर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होते है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इनकी उपलब्धता लगभग न के बराबर है। यानि गन्ने के इस अधिकतम समर्थित मूल्य का फ़ायदा अगर होगा भी तो पश्चिम गन्ना किसानों को। पूरब की गन्ना किसानो को अपना गन्ना 275 रूपये प्रति कुंतल के हिसाब से ही बेचना पड़ेगा क्योकि दोयम दर्जे के गन्ने का समर्थित मूल्य इतना ही तय किया गया है। अब यह साफ़ हो गया कि वायदा पूर्ति के क्रम में सरकार ने जो भी निर्णय गन्ना किसानो के हित में लिए वो नाकाफी है। एक तरह से किसानो को धोखा देने वाले है।
यहाँ बात काफी ज्यादा रोचक है कि जब 2007 में बसपा राज्य की सत्ता में थी तो सपा ने उसे किसान विरोधी बताया था। आज जब सपा सत्ता में है बसपा उसे किसान विरोधी बता रही है। इसी तरह राज्य की दो अन्य प्रमुख पार्टियां कांग्रेस और भाजपा, सपा और बसपा दोनों को ही किसान विरोधी पार्टियां बता रही है। यानि सब एक दूसरे पर आरोप प्रत्यरोप लगा रही हैं। पर आरोप प्रत्यारोप के इस दौर किसान बहुत पीछे छूट गया। किसी भी दल को उसकी चिंता नहीं है क्योकि अगर वास्तव में कोई राजनैतिक दल किसानों का हितैषी होता तो बजाये राजनैतिक बयानबाजी के वो किसानो के साथ सडकों पर उतरता और उनके हितो के लिए लड़ता। पर रोष की बात यही है कि आज की राजनीति भी शब्दों की बयानबाजी तक सिमटी है। आज सत्ताशीन सपा से धोखा खाया हुआ किसान बे-हाल है उसे समझ में नहीं आ रहा है वो किस तरफ जाये। सबकी जबान पर सिर्फ एक ही बात है कि मुख्यमंत्री जी हमारी वफाओं का ये सिला दिया। बकौल किसान हमें उम्मीद थी कि ये सरकार हमारे दर्द को समझेगी और हमारे साथ इंसाफ करेगी। पर इस सरकार ने भी वही किया जो पूर्ववर्ती सरकारे करती आयी। वे सवाल करते हैं कि क्या कभी सूबे में कोई ऐसी सरकार आयेगी जो हमारी आवश्य्कताओं के अनुरूप हमें इन्साफ दे? या दशकों दशक राजनीति के नाम पर हमारा शोषण होता रहेगा है? किसानों के इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है।
पर इस सवाल से एक अहम् सवाल ये भी उठता है कि आखिर किसान बार -बार बार क्यों ठगा जाता है। ये बड़ा सवाल इन अवसरवादी सरकारों से है, जो किसानों को सिर्फ अपना वोट बैंक ही मानती हैं। सरकार को किसान की जिंदगी की रोजमर्रा की उथल-पुथल से कोई लेना-देना नही है। किसानों की कातर निगाहें हर पांच साल में बदलने वाली सरकारों से यही पूछती है ‘निजामो! हमें ही क्यों अपनी कुर्सी हथियाने का साधन मानते हो?’
अनुराग मिश्र
स्वतंत्र पत्रकार
मो-09389990111