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राजनीतिक दलों के लिए बोझ बनता ‘सेक्यूलरिज्म’

संजय मिश्र,

अनजाने ही नीतीश ने वो तान छेड़ दिया जिसके लिए बीजेपी अरसे से लालायित रही…और कांग्रेस जिसके लिए कतई तैयार न थी … यानि सेक्यूलरिज्म पर बहस। बीजेपी की आस तब अधूरी रह गई थी जब मोदी ने सेक्यूलरिज्म माने इंडिया फर्स्ट का राग अलापा था। इस स्लोगन पर थोड़ी हलचल हुई पर मेनस्ट्रीम मीडिया ने बड़ी चालाकी से उस विमर्श से अपने को अलग कर लिया। लेकिन जैसे ही नीतीश ने टोपी और तिलक वाले राजनीतिक बिम्ब को आगे बढ़ाया, व्याकुलता बढ़ गई।

मोदी पर अप्रत्याशित हमले के कारण देश की नजर टिकी सो मीडिया ने नीतीश के अलाप को हाथो-हाथ लिया। पहली बार ऐसा लगा कि इंडिया के सफर में सेक्यूलरिज्म पर थोड़ी-बहुत चर्चा हुई। तरह तरह के विचार सामने आने लगे और अब भी गाहे-बगाहे आ ही रहे हैं। खास बात ये है कि उन तबकों से भी विचार आ रहे हैं जो दक्षिणपंथ के आग्रही नहीं हैं। पानी में मारे गए ढेले से उठी तरंग के समान ये अकुलाहट सतह पर आई। लोग तज-बीज करने पर मजबूर हुए कि ये — मेरा सेक्यूलरिज्म… तेरा सेक्यूलरिज्म का — का कैसा खेल चल रहा है ? मीडिया चेतती तब तक देर हो चली थी। सोशल मीडिया में ये अब भी जगह बनाए हुए है।

कांग्रेस नीतीश की बातों के मायने भांप गई। लिहाजा पार्टी ने मोदी पर हमले के अंश पर चुटकी लेकर किनारा कर लिया। वो भूली नहीं है कमल हासन के उस उद्गार को जिसमें मुस्लिम कट्टरपंथियों से खार खाए फिल्मी सितारे ने किसी सेक्यूलर देश जाकर बसने की चेतावनी दे दी थी। यानि ये कहकर उसने इंडिया के सेक्यूलर होने पर ही सवाल खड़ा कर दिया था। नीतीश भी मोदी को समझाना चाह रहे थे कि राजनीति के सामने टोपी और तिलक धारण करने जैसी मजबूरी का निरंतर निर्वाह करना होता है।

वोट की उम्मीद में ही नीतीश क्यों न कह रहे हों… ये सवाल तो उठता ही है कि क्या इंडिया में सेक्यूलर (शुद्ध आचरण वाला) नहीं रहा जा सकता है ? क्या इसी मजबूरी के तहत सरकारी योजनाओं के शिलान्यास के वक्त नारियल फोड़ी जाती ? क्या इसी खातिर इफ्तार पार्टियों में शरीक होकर मुस्लिम टोपी पहनकर फोटो सेशन करवाया जाता है ? क्या इंडो-पाक क्रिकेट मैच देखने के लिए नेताओं और पत्रकारों के बड़े वर्ग का ड्यूटी से समय निकालना और गौरवांन्वित होने की आतुरता का इजहार करना इसी श्रेणी में आता है ? पंजाब के एक सिख मुख्यमंत्री का गुरूद्वारे में जूते साफ करने पर मचे बवाल की याद है इन्हें ?

बीजेपी के लिए राहत की बात है कि टोपी और तिलक के जरिए नीतीश सर्व धर्म समभाव की वकालत भी कर बैठे। इरादा तो था मुसलमानों को खुश करना और मोदी के टोपी नहीं पहनने वाले प्रकरण की खबर लेना। पर ऐसा करते हुए वो संविधान की मूल भावना के विपरीत भी चले गए। संविधान का मर्म है कि राज सत्ता से जुड़े लोग निजी जिन्दगी में कुछ भी हों… लेकिन सार्वजनिक और सरकारी कामों के समय सेक्यूलर यानि गैर-धार्मिक आचरण का प्रदर्शन करेंगे। टोपी पहनने और तिलक लगाने जैसे धार्मिक व्यवहार से दूर रहेंगे।

असल में राजकाज के निर्वहन का स्वभाव ही सेक्यूलर होता है। मसलन सड़कें बनेंगी तो उस पर सब चलेंगे…. अस्पताल बनेगा तो सभी धर्मों के लोग वहां इलाज कराएंगे। इतना ही नहीं सड़क बननी है और सामने धार्मिक ढांचा है तो उसे व्यापक हित में हटा दिया जाता है। इसी तरह स्कूलों और अस्पतालों के पास लाउड-स्पीकर के इस्तेमाल की मनाही होती है, भले ही वो मंदिर और मस्जिद की ही क्यों न हो ? गौर करने की बात है कि सेक्यूलरिज्म शब्द का जुड़ाव मौजूदा स्थिति से है… सांसारिकता से है, दुनियादारी से है। इसका आध्यात्मिकता से लेना-देना नहीं है। पिछला जन्म हुआ था या नहीं, अगला जन्म होगा या नहीं…. स्वर्ग है या नहीं… सेक्यूलरिज्म में इस तरह के विमर्श की गुंजाइश नहीं। यही कारण है कि इंडिया के संविधान के अनुसार जनता तो धार्मिक रहे पर शासन से जुड़े लोग सेक्यूलर आचरण वाले रहें।

पर इंडिया के राजनेता इस लाइन पर चलना नहीं चाहते। यही कारण है कि इस देश में सबसे अधिक दुष्कर्म सेक्यूलरिज्म शब्द के साथ हुआ है। मोदी के सेक्यूलरिज्म यानि इंडिया फर्स्ट में राष्ट्रवाद की धमक है। उन्होंने स्पष्ट नहीं किया है कि इस राष्ट्रवाद(राष्ट्रहित) के लिए सेक्यूलर मिजाज ही रास्ता है। कांग्रेस समेत सभी गैर-बीजेपी दलों का दुराग्रह है कि जो दल मुसलमानपरस्त नहीं वो कम्यूनल( गैर-सेक्यूलर शब्द का इस्तेमाल नहीं करते वे) हैं। यानि जो सेक्यूलर नहीं वो कम्यूनल ही हो सकता है। यानि सेक्यूलर शब्द का एंटोनिम गैर सेक्यूलर न होकर कम्यूनल कर दिया इन्होंने। भाषाविद ध्यान दें इस पर। यदि सेक्यूलर माने गैर-धार्मिक तो फिर गैर-सेक्यूलर मतलब धार्मिक आचरण वाला हुआ। पर कांग्रेस ब्रांड सेक्यूलरिज्म के अनुसार धार्मिक आचरण वाले कम्यूनल ही होंगे।

जरा दंगा वाली थ्योरी पर भी ध्यान दें। सेक्यूलर जमात कहता कि गुजरात में दंगे हुए तो वहां के सीएम मोदी कम्यूनल हुए। इस थ्योरी के नजरिए से देखें तो सिख दंगे के कारण पूर्व पीएम राजीव गांधी भी कम्यूनल हुए। देश का कौन सा राज्य ऐसा छूटा हो जहां दंगे न हुए हों ? यानि इन राज्यों की सरकारें कम्यूनल हुई। यहां आकर कांग्रेस और उनके चारण पत्रकार फस जाते हैं। नीतीश के प्रवचन ने सेक्युलरिज्म के मौजूदा स्वरूप की सीमाएं उघार दी हैं।

संजय मिश्रा

लगभग दो दशक से प्रिंट और टीवी मीडिया में सक्रिय...देश के विभिन्न राज्यों में पत्रकारिता को नजदीक से देखने का मौका ...जनहितैषी पत्रकारिता की ललक...फिलहाल दिल्ली में एक आर्थिक पत्रिका से संबंध।

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