हार्ड हिट

राबड़ी के हाथ ‘हां जी संस्कृति’ की नुमाइंदगी

परिवारवादी पार्टियों की सबसे बड़ी खामी या खूबी यह होती है वह वहां दूसरे लेवल के नेतृत्व को कभी पनपने नहीं दिया जाता…ऐसे लोगों को बढ़ावा दिया जाता है जिनके नसों में ‘हां जी’ संस्कृति के किटाणुं रेंगते रहते हैं…राबड़ी के हाथ में राजद की कमान भले ही डेमोक्रेटिक तरीके से से सौंपी गई हो, लेकिन यह रीढ़विहीन ‘हां जी संस्कृति’ का प्रतिफल है…लालू का उत्थान बिहार की राजनीति में परिवारवाद के खिलाफ आवाज बुलंद करने के साथ हुआ था…अब उनकी पार्टी पूरी तरह से परिवारवाद के तर्ज पर ही लंगड़ा कर चलने की कोशिश कर रही है….यह तल्ख सच्चाई है कि लालू अपने परिवार से इतर पार्टी के किसी भी दूसरे नेता पर यकीन करने के लिए कतई तैयार नहीं है…उन्हें डर है यदि पार्टी की कमान परिवार से बाहर गई तो, बिहार की राजनीति में उनका पूरी तरह से खात्मा हो जाएगा। अब यह देखना रोचक होगा कि बिहार की जनता परिवारवादी राजद को कितना तवज्जो देती है….जंगल राज का यह कुनबा बिहार में फिर पनपता है या फिर …..??????
पटना में राजद नेताओं की बैठक के बाद  प्रधान महासचिव रामकृपाल यादव ने जोर देते हुये कहा है कि लालू अभी भी हमारे नेता है। पार्टी के सभी नेता एवं कार्यकर्ता लालू और राबड़ी के नेतृत्व में राजद की नीति, सिद्धांत एवं कार्यक्रम को गांव-गांव तक ले जाएंगे। सवाल उठता है की राजद की नीति और सिद्धांत क्या है? अपने अस्तित्व काल से ही राजद लालू परिवार के इर्दगिर्द नाच रहा है।  लोहिया के समाजवाद और सामाजिक न्याय की जो बात लालू किया करते थे, पार्टी में परिवारवाद को बढ़ावा देने की वजह से व्यवहारिक स्तर पर उनके तमाम शब्द अपनी चमक खो चुके हैं। पहली मर्तबा जेल जाने के दौरान उन्होेंने सीएम की कुर्सी पर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बैठा दिया था। और राजद के तमाम नेता ‘त्वमेव व माता पिता त्वमेव’ की मुद्रा में हाथ जोड़ खड़े थे। रामकृपाल यादव किन सिद्धांतों और नीतियों की बात कर रहे हैं इसे बिहार की राजनीति में थोड़ी सी भी दिलचस्पी रखने वाला हर व्यक्ति अच्छी तरह से समझता है। बिहार की जनता लालू और राबड़ी दंपती की की हुकूमत को बुरी तरह से नकार चुकी है, वो भी डेमोक्रेसी तरीके से। इसके बावजूद राजद में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर जरा भी सुगबुगाहट नहीं हुई। और अब जब कोर्ट ने विधिवत चारा घोटाले मामले में दोषी करार दे दिया है राजद के तमाम नेता उन्हें ही अपना नेता मान कर आगे की लड़ाई लड़ने का दम भर रहे हैं। आखिर राजद नेताओं में परिवारवादी संस्कृति को ठोकर मारकर नये सिरे से पार्टी को संगठित करते हुये नये विचारों और कार्यक्रमों से लैस करने की कुव्वत क्यों नहीं है? हर नेता की एक राजनीतिक उम्र होती है, लालू अपनी पारी खेल चुके हैं। इस हकीकत से राजद के तमाम नेता आंखें क्यों चुरा रहे हैं?
राजद के राष्टÑीय प्रवक्ता इलियास हुसैन भी यही कह रहे हैं कि पार्टी की कमान अभी लालू के हाथ में है, राबड़ी देवी उन्ही के दिशा निर्देश में पार्टी का चेहरा बनेंगी। मतलब साफ है राबड़ी देवी एक बार फिर कठपुतली की भूमिका में रहेंगी और लालू जेल से पार्टी को हांकेंगे।  पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पुर्वे  कह रहे हैं कि लालू अभी भी हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष है और आगे भी रहेंगे। मतलब साफ है कि बिहार की जनता द्वारा हाशिये पर धकेल दिये जाने और कोर्ट द्वारा दोषी ठहराये जाने के बावजूद पार्टी की मुख्तारी लालू और उनके परिवार के हाथ में ही रहेगी।
राबड़ी देवी जनता के बीच जाने की बात कर रही है। पार्टी के स्ट्रेटजी लालू की जेलयात्रा को लेकर राबड़ी के माध्यम से सहानुभूति लहर बटोरने की है। अब यह स्ट्रेटजी कितनी कारगार होगी कि यह तो वक्त ही बतएगा। वैसे बिहार की जनता अब थोड़ी सयानी हो चुकी है। लालू युग की समाप्ति तो उसने वोटों से ही कर दी थी।  दो बार आम चुनाव में स्पष्ट कर दिया था कि  समोसे में आलू तो रहेगा लेकिन बिहार में लालू नहीं रहेंगे।

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