लिटरेचर लव
सार्क साहित्य सम्मेलन में मोहब्बत की खुशबू
आगरा। यदि इरादे नेक हों तो दिल की जुबान एक-दूसरे को समझने के लिए काफी होती है। सार्क साहित्य उत्सव में शिरकत करने वाले मुख्तलफ मुल्कों के नुमाइंदों के मुंह से निकलने वाली मुख्तलफ भाषाएं यही अहसास दिला रहा है कि सब एक ही बगीचे में खिलने वाले अलग-अलग रूप और रंग के फूल हैं। इनकी भाषाई खुशबू से पूरी बगिया गुलजार हो रही है। सिंहली, पुश्तो, ऊर्दू, हिन्दी, नेपाली से लेकर अंग्रेजी बोलने वाले तमाम नुमाइंदे सार्क साहित्य महोत्सव को अपने-अपने अंदाज में एक खास तरह के आयाम प्रदान कर रहे हैं, जो शायद सियासी मंचों से कभी संभव नहीं होता।
साहित्य सार्क सम्मेलन में अपनी भाषाओं की खूबसूरती को बरकरार रखते हुये दूसरों की भाषाओं को जिस तरह से तरजीह दिया जा रहा है, उससे स्पष्ट होता है कि प्यार और मोहब्बत को लेकर मानवीय फितरत सीमाओं की घेरेबंदी को सिरे से नकारने की प्रवृति से ओतप्रोत है। इनके जुबान भले ही जुदा हों, लेकिन जज्बात और तहजीब एक ही है। ताज नगरी में इनकी चहचहाहट इस बात की तस्दीक करती है कि तमाम बर्बरता और क्रूरता के बावजूद अदब, कला और तहजीब की दुनिया में ही मानव का मुस्तकबिल सुरक्षित रह सकता है। यही वह दुनिया है, जो इंसान को अमन और प्रेम के साथ रहने की भरपूर आजादी मुहैया कराती है। सियासी तिकड़मों से इतर इस तरह की दुनिया गढ़ने का सुकून फाउंडेशन आॅफ सार्क राइटर्स और लिटरेचर की अध्यक्षा अजीत कौर की आंखों स्पष्टरूप से दिखाई पड़ रहा है।
सार्क साहित्य महोत्सव के आगाज के मौके पर मुख्तलफ मुल्कों के फनकारों और अदीबों को देखकर अजीत कौर के चेहरे पर फैली चमक एक पाक उद्देश्य के लिए वर्षों से उनके द्वारा किये जा रहे अनवरत प्रयत्नों की सफलता की कहानी बयां कर रही है। तभी तो वह जोर देते हुये कहती हैं कि अदीबकारों का मकदस खुद को निरंतर जलाते हुये रोशनी प्रदान करना है। इस मौके पर पाकिस्तान की शायरा फरहीन चौधरी, नेपाल के लेखक सुमन कोएखेल, श्रीलंकाई उपन्यासकार दया दिशा नायक और अफगानिस्तान के कवि और शोधकर्ता एके रसीद को इस वर्ष के सार्क साहित्य अवार्ड से नवाजा गया। एके रसीद और दया सिंह नायक ने यह कह कर कि पुश्तो और सिंहली भाषा की जननी संस्कृत भाषा ही है और यही वजह है कि इन दोनों भाषाओं में संस्कृत के शब्द व्यापक पैमाने पर मिलते हैं एक बार इसी बात की तस्दीक की मानव का उदगम स्थान एक ही है, भले समय के साथ दुनिया के विभिन्न हिस्सों में फैलकर भौगोलिक आधार पर उनके विकास की प्रक्रिया की अलग-अलग रही हो। एके रसीद ने तो यहां दावा किया कि अफगानिस्तान के लगभग हरेक शहर और गांव के नाम संस्कृत से ही लिए गये हैं।
इस मौके पर दिखाई गई केके मोहम्मद और ब्रृज खंडेलवाल की डाक्युमेंट्री फिल्म ने भी लोगों को आपस में गहराई से जोड़ने के लिए एक सेतु का काम किया। मध्य प्रदेश में डाकुओं की मदद से तहस-नहस हो चुके प्राचीन मंदिरों को अथक प्रयास से जोड़ने की कहानी को जिस खूबसूरती के साथ केके मोहम्मद ने फिल्माया था, उसे देखकर तमाम अदीबों और फनकारों के चेहरे खिल उठे थे। निस्संदेह यह सार्क साहित्य सम्मेलन विभिन्न देशों के बीच मेल-मिलाप की धीमी लेकिन एक मजबूत प्रक्रिया को ही चलायमान किये हुये है।
पाकिस्तानी लेखक डॉ. अबदाल बेला का उर्दू उपन्यास ‘दरवाजा खुल गया’ की हिन्दी तर्जुमानी करके लाहौर के संगेमील पब्लिकेशन ने निस्संदेह हिन्दी भाषियों को एक नायाब तोहफा दिया है। किसी उर्दू उपन्यास को हिन्दी में प्रस्तुत करके संगेमील पब्लिकेशन्स ने पाकिस्तान के अदबी इतिहास में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। इस उपन्यास को लिखने में डॉ. अबदाल बेला को तकरीबन 15 वर्ष लग गये और इसकी हिन्दी तर्जुमानी करने में डॉ. केवल धीर को तीन वर्ष लगे। डॉ. अबदाल बेला अपनी पुस्तक ‘दरवाजा खुल गया’ पर रोशनी डालते हुये कहते हैं कि इसमें आजादी के पहले की कहानी को बहुत ही खूबसूरती से बयां की गई है। यह आजादी के पहले के दोनों मुल्कों के इतिहास और संस्कृति को पिरो कर चलती है। इसमें हजारों वर्षों के तहजीब को उकेरा गया है और यह किताब दोनों मुल्कों के बीच विभाजन पर आकर खत्म होती है और अपने पीछे एक लंबी दास्तान छोड़ जाती है।
लाहौर स्थित संगेमील पब्लिकेशन्स व सार्क आर्गेनाइजेशन आॅफ सूफिज्म, इंटरफेथ एंड पब्लिकेशन्स के प्रबंध निदेशक अफजल अहमद कहते हैं कि हम पाकिस्तान के पहले प्रकाशक हैं, जिसने उर्दू के एक उपन्यास को हिन्दी में अनूदित करके प्रकाशित किया है। ऐसा करके हमें जेहनी खुशी मिल रही है। इस नायाब पुस्तक को हिन्दी मेंं लाने के लिए वर्षों से प्रयत्न कर रहे थे, अब जाकर हमारा सपना साकार हुआ है। छह भागों में यह उपन्यास अब हिन्दी जानने वाले लोगों को उनकी अपनी जुबान में उपलब्ध होगा। इसके चार भाग छप चुके हैं और शेष दो भाग जल्द ही छप जाएंगे। अफजल अहमद संगेमील पब्लिकेशन के तहत रामायण और महाभारत का उर्दू में अनुवाद करके उर्दू अदब को विश्व स्तर पर अपने तरीके से समृद्ध कर रहे हैं। रामायण और महाभारत का उर्दू संस्करण पाकिस्तान के उर्दू भाषी लोगों को काफी पसंद आ रही है। अफजल अहमद का इरादा इस रवायत को और भी मजबूत करने का है। हिन्दी और उर्दू को आपस में जोड़कर निस्संदेह अफजल अहमद दोनों मुल्कों के अदीबों के साथ-साथ आम लोगों के बीच बेमिसाल किरदार अदा कर रहे हैं।
सार्क साहित्य उत्सव में रमाशंकर शर्मा की पुस्तक स्मृति पंख का विमोचन किया गया। वस्तुत: इस पुस्तक में मुख्तलफ विषयों पर रमाशंकर के आलेख संकलित हैं। सभी आलेख को संपादित करने का काम वरिष्ठ पत्रकार विवेक कुमार जैन ने किया है। इस पुस्तक पर रोशनी डालते हुये विजय कुमार जैन कहते हैं कि वाकई में इस पुस्तक का संपादन करना एक दुरुह काम था। इस पुस्तक में सामाजिक और ऐतिहासिक घटनाओं को करीने से रखा गया है। यह पुस्तक आपको न सिर्फ इतिहास से करीब लाती है बल्कि इसको पढ़ने के दौरान आप भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति से भी रूबरू होते हैं। इसके साथ ही इसमें देश विदेश की कई घटनाओं का भी जिक्र किया है। देश में आपातकाल को आज भी काला अध्याय के रूप में याद किया जाता है। इस पुस्तक में आपातकाल के पूर्व की घटनाओं का भी सिलसिलेवार उल्लेख किया गया है। आतंकवाद के विभिन्न पहलुओं को भी इसमें गंभीरता से छुआ गया है। साथ ही आगरा के ऐतिहासिक विकासक्रम की व्याख्या भी सलीके से की गई है। यह पुस्तक आपको चुपके से स्मृति की गहन गुफाओं में ले जाती हैं, जहां पर आपको आगरा शहर के साथ-साथ देश के इतिहास और मनोविज्ञान को प्रभावित करने वाली घटनाओं से साक्षात्कार कराता है।
अपने सूफियाना कलाम से पाकिस्तान के सिंध प्रांत के रहने वाले वाहिद बख्श सार्क साहित्य उत्सव में चार चांद लगाने में कामयाब रहे। फकीरी तहजीब को पूरी तरह से आत्मसात करने वाले वाहिद बख्श कहते हैं, ‘एक फकीर सबको प्यार करता है। मालिक करीम की बंदगी ही उसका एक मात्र मकसद होता है।’ भारत की आबोहवा वाहिद बख्श को काफी रास आ रही है। इकतारा हाथ में लेकर जब वह सूफियाना कलाम छेड़ते हैं तो लोगों को अपनी गायकी में पूरी तरह से डुबो ले जाते हैं। उनका परिवार सूफी रवायत की रहनुमाई पिछली चार पीढ़ी से कर रहा है। कट्टरपंथियों द्वारा मौशिकी पर लगाये गये प्रतिबंध पर अपनी तल्ख प्रतिक्रिया में वह कहते हैं कि हम तो अपने कलामों से खुदा की इबादत करते हैं। खुद संगीत से दूर रहने को नहीं कहता है। जो लोग खुदा के नाम पर मौशिकी पर प्रतिबंध लगाने की बात करते हैं, वो पूरी तरह से गलत हैं। संगीत तो पूरी कायनात में रचा-बसा हुआ है। इससे दूर होकर हम न तो खुदा को समझ सकते हैं और न ही इंसानियत को। जो फन इंसान को इंसान से जोड़ती है, उससे भला खुदा कैसे नाराज रहा जा सकता है। वह जोर देते हुये कहते हैं कि सिंध प्रांत सूफीज्म का बहुत बड़ा मरकज है। सूफियों की बदौलत ही सिंध में कट्टरपंथ कमजोर हुआ है। सूफियों की मेहरबानी से सिंध में शांति है। पाकिस्तान में भारतीय फनकारों की मकबूलियत का जिक्र करते हुये कहते हैं कि पाकिस्तान में भारतीय फनकारों को देखने-सुनने के लिए भीड़ एकत्र हो जाती है।
भारत-पाक सीमा पर तनाव की वजह से पाकिस्तान के कई लेखक सार्क साहित्य उत्सव में शिरकत करने नहीं आये। पाकिस्तान की मशहूर शायरा परवीन चौधरी ने बताया कि पाकिस्तान के करीब 10-12 लेखक, जो पहली बार भारत आ रहे थे, सीमा पर तनाव की वजह से यहां नहीं आये। उन सभी लेखकों की यहां आने की तैयारी पूरी हो चुकी थी। यहां तक कि उन्हें वीजा भी मिल चुका था, लेकिन अंत समय में उन्होंने अपना निर्णय बदल दिया। परवीन चौधरी कहती हैं कि नफरत फैलाने वाले अपना काम कर रहे हैं और इसका असर दोनों मुल्कों पर पड़ रहा है। लेकिन हमें भी अपना काम करते रहना है। यदि बदी अपना चलन नहीं छोड़ सकता तो फिर नेकी क्यों छोड़े।
साहित्य जिंदगी की सही तस्वीर तो उकेरती ही है, साथ ही विभिन्न मुल्कों की सीमाओं को भी पार कर जाती है। कम से कम सार्क साहित्य उत्सव में शिरकत करने वाले तमाम साहित्यकारों की रचनाओं को देख-सुन कर तो यही लगता है। उत्सव के दूसरे दिन जिस तरह से मुख्तलफ मुल्कों के साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में जिंदगी के अलग-अलग रंग बिखेरे, उसे सुन होटल ग्रांड में मौजूद तमाम साहित्य प्रेमियों को यह अहसास हो रहा था कि भले ही भाषा और भूगोल की लिहाज से वे अलग-अलग हिस्सों की नुमाइंदगी कर रहे हैं लेकिन उनकी सोच और अनुभूति साझा है। किसी की तहरीर प्रकृति प्रेम से ओत-प्रोत थी तो किसी की जिंदगी की हकीकतों के करीब। हॉल में मौजूद तमाम श्रोता खुद को इन रचनाकारों से जुड़ा हुआ महसूस कर रहे थे और रचनाकार भी श्रोताओं के मन और मिजाज को देखते हुये प्यार और मोहब्बत के नगमों से उन्हें सराबोर किये हुये थे।
सार्क साहित्य उत्सव के दूसरे दिन पहले चरण में डॉ. नजीब अली शाह, बाल बहादुर थापा, प्रनिथ आबायासुंदरे, केवी डॉमिनिक और मोहम्मद नुरूल हुदा ने अपने मुख्तलफ तहरीरों में पर्यावरण से संबंधित मसलों को विस्तार से रखा। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ सीताकांत महापात्रा ने किया। इसके बाद दूसरे सत्र को संबोधित करने वालों में अनिता शर्मा, मारिजी लिपी, मेघराज अधिकारी, रवि थापा और प्रो. गैलेले सुमानासिरी प्रमुख थे। शोध पत्रों के बाद कविताओं का सत्र सबसे बेहतर रहा। भारत, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका, मालदीव और पाकिस्तान के कवियों ने एक के बाद एक अपनी कविताओं से पूरे माहौल को एक नये सांचे में ढाल दिया। पाकिस्तान के कवि अंजुम खालिद, सईद नवीद हैदर हाशमी के साथ -साथ फरहीन चौधरी को लोगों ने बेहद पसंद किया। नेपाल के चंद्रबीर तूंबापो, प्रकाश सुबेदी, रवि थापा, सीमा अवास ने पूरी संजीदगी से अपनी कविताएं पेश कर के लोगों की वाह-वाही हासिल की करने में कामयाब रहे। अफगानी कवि हफीजुल्लाह हामीर जलालजाई, वैलीलुल्लाह, सोमिया रामीश को भी खूब दाद मिला। भूटान के शेरिंग सी डोरजी और पासान शेरिंग ने भी अपनी तहरीर सुनाई कर लोगों के दिलों को छूने में कामयाब रहे। मालदीव के एक मात्र कवि लियागाथ अली और भारत की अनामिका को भी लोगों ने संजीदगी से सुना और सराहा।
शाम को माथुर वैश्य भवन में विभिन्न मुल्कों के प्रतिनिधियों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी जमकर लुत्फ उठाया। पाकिस्तान के वाहिद बख्श के सूफियाना कलाम के लोग कायल हो गये। इसी तरह पवन बाउल ने अपनी शानदार प्रस्तुति से लोगों का दिल जीत लिया। पाकिस्तान की नृत्यांगना मालान्गस और भारत ओड़िसी डांसर कविता द्विवेदी ने अपनी बेहतरीन प्रस्तुति से लोगों का भरपूर मनोरंजन किया।
सार्क साहित्य उत्सव में विभिन्न देशों की महिला प्रतिनिधियों की मजबूत मौजूदगी यह अहसास दिलाने में कामयाब रहा कि यह सदी वाकई में महिलाओं की सदी है। दुनिया में अमन-चैन स्थापित करने में महिलाओं की अहम भूमिका है और अपनी इस भूमिका को वे बखूबी अंजाम दे रही हैं। हर मसले पर जिस बेबाकी के साथ अपने वे अपने ख्यालात का इजहार कर रही थीं, उससे इतना तो यकीन हो ही रहा था कि एक बेहतर दुनिया के निर्माण में अब उनकी भूमिका की अनदेखी नहीं की जा सकती है।
अफगानिस्तान की सोमया ने कहा, ‘अफगानिस्तान में जिंदगी बदल रही है। महिलाएं मुखर हो रही हैं। अब तो वे हर क्षेत्र में सक्रिय हैं। वहां की सरकार भी महिलाओं को आगे लाने के लिए बेहतर प्रयास कर रही हैं। उन्हें सरकारी महकमों में रखा जा रहा है, बेहतर शिक्षा दिया जा रहा है। मुझे इस बात की खुशी है कि आज भारत में आकर मैं अपनी बात रख पा रही हूं। यहां विभिन्न मुल्कों के लोगों से राब्ता बनाने का अवसर मिल रहा है। यह सच है कि अफगानिस्तान एक कठिन दौर से निकला है। अफगानिस्तान में तालिबानों को बढ़ावा विदेशी मुल्कों ने अपने स्वार्थों के कारण दिया था। यदि शुरुआती दौर में उसे अमेरिका और रूस का समर्थन हासिल नहीं होता तो वे कभी भी सत्ता में नहीं आता। अब हम उस दु:स्वपन से बाहर निकल चुके हैं। महिलाओं के लिए यह राहत की बात है। मैं खुद एक पत्रकार हूं। कविता और कहानियां भी लिखती हूं। अब आप समझ सकते हैं कि अफगानिस्तान की महिलाओं के लिए आसमान खुल गया है। अब यह हमलोगों पर निर्भर है कि कितनी ऊंची उड़ान भर सकते हैं।
अफगानिस्तान की जोहरा जहीर ने कहा, ‘वर्ष 2014 में अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज बाहर जा रही है। मुझे डर है कि कहीं फिर तालिबान की वापसी न हो जाए। तालिबान की मौजदूगी आज भी अफगानिस्तान में बनी हुई है। यदि तालिबान की वापसी होती है तो यह अफगानी महिलाओं को लिए सबसे बुरा होगा। मैं कभी नहीं चाहूंगी कि तालिबान फिर से सत्ता में आये। आज अफगानिस्तान की महिलाएं विकास के हर काम में भागीदारी कर रही हैं। खुद भी शिक्षित हो रही हैं और अपने बच्चों को भी शिक्षित कर रही हैं। भारत के साथ अफगानिस्तान के गहरे ताल्लुक रहे हैं। भारत हर कदम पर अफगानिस्तान का बेहतर मित्र साबित हुआ है। भारत की फिल्में अफगानिस्तान में काफी लोकप्रिय हैं। यहां के टीवी चैनल भी अफगानिस्तान में खूब देखे जाते हैं। सच कहूं तो अफगानिस्तान की महिलाएं भारत के धारावाहिकों को देख-देखकर ही फैशन करना सीख रही हैं। अब तो वहां की महिलाएं साड़ी और मंगलसूत्र भी पहने लगी हैं। इस साहित्य उत्सव में शिरकत करके मैं खाफी खुश हूं। अभी अफगानिस्तान को भारत की जरूरत है। अफगानिस्तान में विकास के बहुत सारे कार्य भारत की मदद से चल रहे हैं।
नेपाल की सीमा अवास ने कहा, मैं कविताएं लिखती हूं। अपनी कविताओं में मैं मानवीयता पर जोर देती हूं। आज वास्तविकताओं को टटोलने और उन्हें उकेरने की जरूरत है ताकि हम एक नई दुनिया की रचना कर सकें। हमें एक दूसरे से सीखना होगा। भारत के साथ नेपाल के अच्छे संबंध हैं। लेकिन कुछ मामलों में भारत नेपाल को अपने तरीके से हांकने की कोशिश करता है, जो मुझे अच्छा नहीं लगता है। मैं कई बार भारत आ चुकी हूं। यहां के लोग बहुत ही अच्छे हैं। माओवाद का दर्शन ठीक नहीं है। खून-खराबा करके आप कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। बातचीत के जरिये किसी भी मसले का निपटारा हो सकता है। बंदूक के बल पर की गई क्रांति चाहे जितनी भी अच्छी हो, लेकिन वह मानव विरोधी है। एक इंसान को दूसरे इंसान की हत्या करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। आज पूरी दुनिया आतंकवाद से जूझ रही है। ऐसे में यह और भी जरूरी हो जाता है कि हम शांति के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा दें।
नेपाल ने की शारदा शर्मा ने कहा, मैं मुख्य रूप से शिक्षा पर काम कर रही हूं। औरतों को तो खासतौर पर शिक्षित होने की जरूरत है। मैं कवि भी हूं और नेपाल में अखबारों के लिए भी लिखती हूं। दुनियाभर में घूमने का मुझे बेहद शौक है। लोग जितना एक- दूसरे के करीब आएंगे, उनकी समझ में उतना ही इजाफा होगा। एक- दूसरे की नष्ट करने की मानसिकता से किसी का भला होने वाला नहीं है। भारत और यहां के लोग मुझे काफी पसंद है। नेपाल भी भारत की तरह ही एक धर्मनिरपेक्ष राष्टÑ है। हर धर्म के लोग वहां रहते हैं, आपस में राब्ता रखते हैं और मैं समझती हूं कि धर्मनिरपेक्ष होना कोई गलत बात नहीं है। परस्पर सहयोग की भावना से हम विकास कर सकते हैं, एक दूसरे के करीब आ सकते हैं। यदि हर कोई अपना काम बेहतर तरीके से करे तो फिर कोई समस्या ही नहीं होगी। नेपाल में महिलाओं की स्थिति सुधर रही है लेकिन अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। सबसे बड़ी बात है इस दुनिया को महिलाओं के लिए महफूज बनाने की। इस समस्या से भारत भी दो चार रहा है और नेपाल भी।