लिटरेचर लव

सिर्फ तुमसे (कविता)

मणिका मोहिनी,

मैं तुम्हारे प्रेम में निमग्न हूँ
सच कहूं तो बहुत ही संलग्न हूँ.

तुम दबे बैठे हो अंगारों के पीछे
हाथ जल न जाएं कहीं, ध्यान से,
नाउम्मीदी की सलाखें तोड़ कर
बेरहम माहौल से तुम बाहर आओ.

देखो, बारिश हो रही है प्यार की
सायं-सायं में छुपा संगीत है
गुलमोहर के फूल चटख रंगों में
झूम-झूम कर बुला रहे हैं तुम्हे.

नृत्यरत है सारी प्रकृति जैसे
बाँध कर रख पाएंगे खुशबू को कैसे
ये हवाएं मदभरी हैं आजकल
ये घटाएं सिरफिरी बेसब्र हैं.

तुम कहीं न भूल जाना रास्ता
दीप राहों पर रखे हैं चाँद ने
भटकनें दिल की पुकारें, आओ तुम
जैसे कभी न मिले, ऐसे मिलें.

अब न जाना दूर इस तपती धरा से
अब न जाना भूल तुम कि कोई है जो
प्यार करता है बिना संकोच के
सिर्फ तुमसे, सिर्फ तुमसे, सिर्फ तुमसे.

***

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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