सुशासन में महिलाओं के खिलाफ क्रूरतम अपराधों में इजाफा

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कुछ नवउदारवाद की हवा और कुछ सुशासन के प्रोपगंडा की वजह से बिहारी कल्चर में तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है। अब सूबे में लालू के जंगल राज की तरह युवतियों को सरेआम उठाने का चलन नहीं रहा क्योंकि नई हवाओं ने कुत्सित मानसिकता को अभिव्यक्त करने के लिए नई राह दी है। सूबे में महिलाओं के खिलाफ क्रूरतम अपराधों में तेजी से इजाफा हो रहा है। अब युवतियों को कमरे में बंद करके उनके साथ सामुहिक दुष्कर्म हो रहा रहा है और फिर दुष्कर्म के इस सिलसिले को बरकरार रखने के लिए पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी हो रही है। जी हां, बदलते बिहार की एक भयानक तस्वीर यह भी है। खुलापन का घिनौना असर नाबालिग बच्चियों को झेलना पड़ रहा है। पटना में राजवंशी नगर के एक फ्लैट में जिस तरह से एक नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म करके उसका वीडियो बनाया गया वह तथाकथित सभ्य समाज के मुंह पर एक करारा तमाचा तो है ही, साथ ही यह सुशासन की दिशा और दशा पर भी सवाल खड़े करता है।

शास्त्रीनगर गर्ल्स हाई स्कूल की प्लस टू की एक छात्रा एयरपोर्ट कॉलनी में रहने वाले प्रशांत झा से मुहब्बत करने लगी। समय के साथ दोनों की नजदीकियां बढ़ती गई। फिर एक दिन प्रशांत ने अपने तीन दोस्तों राहुल लांबा, अरमान और रणविजय के साथ मिलकर उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म की योजना बना डाली। प्रशांत उस लड़की को बहला-फुसला कर राजवंशी नगर में स्थित एक फ्लैट में ले आया, जहां पर उसके तीनों दोस्त पहले से ही उनका इंतजार कर रहे थे। इसके बाद शुरु हुआ उनका घिनौना खेल। इन चारों ने मिलकर लड़की के साथ जबरन दुष्कर्म किया और वीडियो बनाते गये ताकि न सिर्फ लड़की के मुंह को बंद रखा जाये बल्कि भविष्य में भी यह सिलसिला जारी रहे। कहा तो यहां तक जा रहा है कि इस मामले में एक अन्य लड़का भी शामिल है, जो किसी ऊंचे रसूख वाले नेता का रिश्तेदार है। राजवंशी नगर के जिस फ्लैट में यह वारदात हुई, वह फ्लैट उसी नेता के नाम पर अलाट है। उक्त नेता के रसूख की वजह से ही पांचवे शख्स का नाम एफआईआर में दर्ज नहीं किया गया है। जंगल राज में लालू के लगुये –भगुये बैखौफ सांड की तरह राह चलती महिलाओं को शिकार बनाया करते थे, सुशासन राज में तौर तरीका थोड़ा बदल गया है, लेकिन पुलिस पहले की तरह ही राजनेताओं के सामने अपना दुम हिला रही है। बहरहाल प्रशांत झा, राहुल लांबा और अरमान को गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन रणविजय अभी भी फरार है। पांचवे शख्स को पुलिस ने पूरी तरह से सीन से बाहर कर दिया है। राजवंशी नगर के जिस फ्लैट में लड़की के साथ दुष्कर्म किया गया, उसके अगल–बगल में कई मंत्रियों और आला अधिकारियों के आवास हैं। इसके बावजूद अपराधियों ने बैखौफ होकर घटना को अंजाम दिया। इसी से अपराधियों के बुलंद हौसले का संकेत मिलता है।

बिहार में बदलती हवाओं का पता महिला वकील संगीता सिन्हा की हत्या से भी चलता है। पिछले महीने संगीता सिन्हा की हत्या अशोक सिनेमा हाल के पास उनके फ्लैट में बड़ी बेहरमी से कर दी गई थी। हत्यारा आज भी पुलिस की पकड़ से दूर है। अब पुलिस कह रही है कि संगीता सिन्हा अपने फ्लैट में ही वेश्यावृति का धंधा करती थी और इस धंधे से उसने अन्य कई महिलाओं को जोड़ रखा था। कोर्ट में हाजिर होकर कुछ महिलाओं ने इस बात की तस्दीक भी की हैं। बहरहाल पुलिस जो कहे, पटना और इसके आसपास के इलाके अब महिलाओं के लिए सेफ जोन नहीं रहे। राजीव नगर में एक स्कूल के महिला प्रिंसीपल को उसके ही घर में बेखौफ हत्यारे मौत के घाट उतार देते हैं और अगल-बगल के लोगो को पता नहीं चलता, पुलिस अंधेरे में हाथ-पांव मारती रहती है।

सुशासन बाबू पूरी तरह से नवउदारवादी नीतियों को अंगीकार किये हुये हैं, और बिहार को नवउदारवाद के मॉडल में ढालने के लिए कमर कसे हुये हैं। लेकिन इसके साइड इफेक्ट को मंद करने की कोई कोशिश नहीं हो रही है। वोट बैंक के गणित को दुरुस्त रखने के लिए   महादलित जैसे तबके का इजाद तो किया जा रहा है, लेकिन समाज को स्वस्थ्य रखने के लिए मनोवैज्ञानिक व सांस्कृतिक स्तर पर कुछ ठोस कदम नहीं उठाये जा रहे हैं। यह सच है कि कोई भी समाज अपराध से पूरी तरह से मुक्त नहीं हो सकता है, लेकिन सही पहल करके इसकी तीव्रता तो कम की ही जा सकती है। नवउदारवाद के कारण जो परिस्थितियां पेश आ रही  हैं, उसका सही मूल्यांकन करने की फुर्सत भी सुशासन बाबू और उनकी टीम के पास नहीं है। कुछ दिन पहले तक सूबे में पुलिस को अतिआधुनिक बनाने का हौवा जोर शोर से खड़ा किया गया था। थानों को हाईटेक बनाने की बात हो रही थी, लोगों से जमीनी स्तर पर पुलिस का जुड़ाव करने की चर्चा चल रही थी। ये सारे ढकोसले अब तार-तार होते दिख रहे हैं। शहर में एक स्कूली लड़की के साथ गैंप रेप, महिला वकील को उसके ही फ्लैट में बेदर्दी से हलाक किया जाना, और एक प्रीसिंपल महिला को उसके ही घर में मौत के घाट उतारा जाना सूबे में सुशासन का संकेत तो कतई नहीं है। पुलिस के आला अधिकारी यह कर तो निकल जाते हैं कि तफ्तीश जारी है, लेकिन सुशासन सरकार को जवाबदेही लेनी ही होगी। चूंकि नीतीश कुमार को दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाने में सूबे की महिलाओं की जबरदस्त भूमिका रही है, इसलिये सुशासन बाबू इस जिम्मेदारी से नहीं भाग सकते। वैसे सूबे में अब यह चर्चा आम है कि नीतीश कुमार सिर्फ अधिकारियों के आंख और कान से देखते-सुनते हैं। फिलहाल महिलाओं को पूरी तरह से सुरक्षित रखने का ख्याल इन अधिकारियों के जेहन से कोसो दूर है, ऐसे में नीतीश कुमार शायद ही कुछ देख और सुन पाये।

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