सूर्य की आराधना और पूजा का महापर्व छठ
पूरे जगत का शक्ति-केंद्र सूर्य सारे ब्रह्मांड में जीवन को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। जिसकी आराधना और पूजा के लिए लोक आस्था के महा-पर्व छठ के चार दिवसीय अनुष्ठान की तैयारी की जाती है। यह पर्व सभी के लिए एक भाव और विश्वास रखता है जिस तरह सूरज की रोशनी किसी के साथ कोई भेद-भाव नहीं करती।
पहले दिन नहाय-खाय,दूसरे दिन खरना (खीर का प्रसाद), तीसरे दिन पहला अर्घ्य (डूबते सूर्य को नमन) ,चौथे और आखिरी दिन उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ यह महापर्व संपन्न होता है।इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता इसकी पूजा विधि में इस्तेमाल होने वालीसामग्रीहै। दूध, चावल,गेहूं सूप,फल-फूल दीया-बत्ती, नारियल,इत्यादि मानव श्रम के परिणाम के विविध रुप हैं जो इस सूर्य की उपासना में संकलित हैं। ऐसी मान्यता है कि दूसरे अनुष्ठानों की तरह इसमें किसी ब्राह्मण अथवा पंडित की आवश्यकता नहीं होती,सबकुछ व्रती(व्रत रखने वाले) ही करते हैं। इसमें मंत्र उच्चारण की जगह छठी मईया एवं सूरज देव को समर्पित विशेष रुप से गाए जाने वाले गीत शामिल हैं।उग हे सूरज देव भइले अरघ के बेरिया…,दर्शन देहु ना हे छठी मइया...जैसे पारंपरिक लोक गीतों को सामुहिक रुप से गाया जाता है।
इस व्रत को रखने वाले बिना अन्न-जल ग्रहण किए सारा अनुष्ठान करते हैं साथ ही अर्घ्य देने के लिए अपनी सुविधानुसार नदियों,जलाशयों,छोटे-बड़े तालाबों और घर की छतों का चयन करते हैं। इस पूजा के लिए लोग निस्वार्थ भाव से नदी,घाट,गली-मुहल्ले,सड़कों की सफाई एवम् बिजली बत्ती की व्यवस्था करते हैं तथा असमर्थ लोगों को पूजा सामग्री दान करतें हैं।
इस पर्व में घर के सभी सदस्य जो नौकरी और व्यवसाय को लेकर विभिन्न जगहों पर बिखरे होते हैं विशेष रुप से घर आते हैं और परिवार की कड़ी मजबूत होती है।परिजनों के साथ इस पर्व में शामिल होने की खुशी उन्हें खींच लाती है।
सूर्य की आराधना का यह पर्व वास्तव में जीवन और जगत के अस्तित्व को समर्पित है।यह पर्व प्रकृति के उस रुप को भी समर्पित है जो संघर्ष और समन्वय को चित्रित करता है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य इस धरती को प्रकाशमान् करने के लिए सतत् संघर्षशील है।